‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 246 ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 246वी कड़ी..                      अष्टादशोऽध्यायः- ‘मोक्ष सन्यास योग’
‘निष्कर्ष योग’ समस्त अध्यायों का सार संग्रह । मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग (सन्यास) कर्मयोग (त्याग) का अंग प्रत्यंगों सहित वर्णन ।

श्लोक  (४२)

शम, दम, तप, शौच, क्षान्ति, आर्जव, विज्ञान, ज्ञान अरु ब्रह्म-कर्म,

विश्वास, भक्ति परमेश्वर की, सात्विक जीवन के सकल मर्म ।

ये कर्म रहे स्वाभाविक ही, ब्राह्मण जिनका पालन करते,

गुण के आश्रित ही कर्म रहे, वे सतगुण को धारण करते ।

 

निग्रह करना अन्तर्मन का, अरु करना दमन इन्द्रियों का,

तप-व्रत का करना परिपालन, अरु शुद्धीकरण इन्द्रियों का।

सारल्य, सहजता, क्षमा भाव, आस्तिकता, वेद-शास्त्र पढ़ना,

ब्रह्मण के हैं ये विहित कर्म, साक्षात्कार प्रभु का करना ।

 

याने प्रशान्तता, तप, संयम, तन की पवित्रता अरु मन की,

सच्चाई, सहनशीलता की, आभा जिसको मण्डित करती ।

परमेश्वर में विश्वास रखे, विद्यार्जन करे, करे अध्ययन,

ब्रह्मण के ये स्वाभाविक गुण, वह करता है प्रभु के दर्शन ।

 

ब्राह्मण बसे आशा की जाती, उसमें नैतिक गुण होंगे ही,

उसका हर तल ऊँचा होगा, ईमानदार वह होगा ही ।

आचार-विचार शुद्ध होंगे, होगा स्वभाव से वह त्यागी,

पथ-भ्रष्ट नहीं होने देगा, उनको जो लोलुप अनुरागी ।

 

सत्ता को त्याग सके उसमें, होता है इतना नैतिक बल,

सदभाव प्रेम का मार्गी वह, व्यवहार करे सबसे निश्छल ।

भूले भटके जग जीवन के सम्मुख ऊँचा आदर्श रखे,

वह अडिग रहे बाधाओं में, भय के आगे वह नहीं झुके ।

 

‘शम’ पहिला गुण जब आत्म तत्व से उसकी बुद्धि मिला करती,

सब कार्य उचित या अनुचित जो, उनका मति यह निर्णय करती।

शम का जो रहा सहायक गुण, ‘दम’अधर्म से रोक रखे

‘तप’ रहा तीसरा गुण अर्जुन, प्रेरित स्वधर्म के लिए करे ।

 

गुण ‘निर्मलता’ का चौथा है, जो मन को शुद्ध पवित्र करे,

जिसके कारण निर्मल मन में ईश्वर का भक्तिभाव उभरे ।

गुण ‘क्षमा’पाँचवाँ होता है, सरगम में पंचम स्वर जैसा,

टेढ़ा-मेढ़ा रहता प्रवाह, पर दरिया सागर को बहता ।

 

है वृत्ति सरल ‘आर्जव’ का गुण, यह छठवाँ मधुर ईख जैसा,

गुण ‘ज्ञान’ सातवां होता है, जो माली के श्रम से सधता ।

यह सत्व शुद्धि के लिए पार्थ, ब्राम्हण करता चिन्तन अध्ययन,

‘विज्ञान’ आठवाँ गुण जिससे, कर्मो का होता संयोजन ।

 

‘आस्तिकता’ का गुण नौवाँ है, आस्था विश्वास जगाता है,

अपने सात्विक कर्मों द्वारा, ब्राहाण ईश्वर को पाता है।

निर्दोष रहे ये कर्म सभी, ब्राहाणस्वभाव से धार चले,

फूलों से वृक्ष सुशोभित ज्यों, या मलयज में ज्यों गन्ध बसे । क्रमशः….