‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 237..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 237 वी कड़ी..                      अष्टादशोऽध्यायः- ‘मोक्ष सन्यास योग’
‘निष्कर्ष योग’ समस्त अध्यायों का सार संग्रह । मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग (सन्यास) कर्मयोग (त्याग) का अंग प्रत्यंगों सहित वर्णन ।

श्लोक  (२९)

ये ज्ञान, ज्ञेय अरु ज्ञाता के, थे भेद प्रकृति के गुणानुसार,

अब अर्जुन ‘बुद्धि’ और ‘धृति’ के, जो भेद करें उन पर विचार ।

‘धृति’ रही धारणा शक्ति उसे, हम अलग’बुद्धि ‘से मान रहे,

‘दोनों के प्रकृति गुणानुसार, हम भेद पूर्ववत जान रहे ।

 

सुनो धनंजय बुद्धि और धृति, रहीं वृत्तियाँ पृथक-पृथक,

निश्चय करने की शक्ति बुद्धि, कहते हैं इसको ही अन्तस ।

यह करण कर्म-संग्रह का है, धृत्ति वृति धारणा कहलाती,

यह केवल सात्विक भाव नहीं, यह भी रे कारण गिनी जाती।

 

गुण के अनुसार प्रकार रहे, इनके भी तीन तीन अर्जुन,

कहता विभाग पूर्वक इनको, हो सावधान अब आगे सुन ।

धृति वृत्ति बुद्धि की ही होती, जो क्रिया-भाव धारण करती,

यह रही बुद्धि के जैसी ही, जो तीन गुणों में है बटती ।

 

है कौन वस्तु ऐसी जग में, जिसमें त्रिगुणात्मक भेद नहीं,

ऐसा क्या कोई काष्ठ रहा, जिसमें बसती है अग्नि नहीं?

उत्तम,मध्यम, निकृष्ट मार्ग, ये तीन खुले रहते जग में,

सांसारिक भय दहलाता है, जीवों को जो चलते मग में ।

श्लोक  (३०)

हे अर्जुन’ बुद्धि सात्विकी’ वह, जो द्वन्द्वात्मक जंग को जाने,

करणीय रहा क्या अकरणीय, यह भेद बुद्धि जो पहिचाने ।

जग की प्रवृत्ति-निवृत्ति उसे, जाने जो, जाने बन्धन क्या?

क्या मोक्ष रहा, कैसे मिलता, क्या अभय रहा, भय होता क्या?

 

समझे जो कर्म अकर्म बुद्धि, जो योग्य कार्य का चयन करे,

त्यागे जो कार्य अयोग्य रहा, करणीय कार्य में प्रवृत्ति रखे ।

समझे किससे डरना उसको, किससे न डरे, यह ज्ञान जिसे,

जाने क्या हेतु मुक्ति के हैं, कहते हैं ‘सात्विक बुद्धि’ उसे ।

 

जिसको है ज्ञात प्रवृत्ति मार्ग, निवृत्ति मार्ग क्या जो जाने,

कर्तव्य रहा क्या अकर्त्तव्य, भय और अभय जो पहिचाने ।

बन्धन का क्या मतलब होता, जाने क्या मोक्ष कहाता है,

वह बुद्धि सात्विक जाने जो, किस तरह मुक्ति जन पाता है।

 

कर्मों में निरासक्त रहना, धर्मानुसार जीविकोपार्जन,

यह सात्विक मार्ग प्रवृत्ति का है, ममता से रहित जहाँ है मन।

कर्मों का, उनके भोगों का, भीतर-बाहर से त्याग रहे,

यह मार्ग निवृत्ति का होता है, जब साधक का वैराग्य सधे ।

 

वर्णाश्रम, प्रकृति, परिस्थिति का, अरु देश काल का ध्यान रखे,

पूरी कर चले अपेक्षा वह, जब अपने कोई कर्म करे ।

वह बुद्धि सात्विकी होती है, जो कर्म शुभाशुभ पहिचाने,

बन्धन से कैसे मुक्ति मिले, जो इस रहस्य को भी जाने ।

 

पानी मिल जाए प्यासे को, वह मरने वाला जी जाता,

तैराक बाढ़ में फंसकर भी, सकुशल दुकूल को पा जाता ।

औषधि मिल जाने से मनुष्य, बीमार ठीक हो जाता है,

दिख जाए सूर्य प्रकाश राह-जंगल में पथिक बनाता है ।

 

हो तत्प लोह की छड़ उसको हाथों में लेना उचित नहीं,

यदि शेर गुफा के भीतर है, भीतर जाना तब ठीक नहीं ।

यह बुद्धि सात्विक होती है, जो निर्णय सही किया करती,

उसमें न रहे संशय कोई, वह नहीं भूल कोई करती ।

 

किस कारण से भयभीत मनुज, भय से विमुक्ति का साधन क्या,

हो अभय प्राप्त कैसे उसको, इसका वह यत्न किया करता ।

काटे वह कर्म बन्धनों को, सत्संग करे, वह करे भजन,

योगादि साधना को साधे, वह करे मुक्ति के हेतु यजन । क्रमशः….