‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक 235 ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘गीताज्ञानप्रभा’ ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।
उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा‘ धारावाहिक की 235 वी कड़ी..                      अष्टादशोऽध्यायः- ‘मोक्ष सन्यास योग’
‘निष्कर्ष योग’ समस्त अध्यायों का सार संग्रह । मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग (सन्यास) कर्मयोग (त्याग) का अंग प्रत्यंगों सहित वर्णन ।

श्लोक  (२७)

लेकिन आसक्त, कर्मफल की, मन में जो चाह लिए अर्जुन,

इच्छाएँ नई-नई लेकर, आकुल-व्याकुल नित जिसका मन ।

ले चाह भोग की वह लोभी, नित राग-द्वेष में निरत रहे,

वह कर्त्ता ‘राजस’कहा गया, अपवित्र रहे वह शोक करे ।

 

करता है राग उसे प्रेरित, फल पाने रहती उत्सुकता,

रहती है लोभवृत्ति जागी, हिंसा में भी वह रुचि रखता ।

शुचिता का रखता ध्यान नहीं, होता प्रसन्न मनमानी कर,

बिगड़े यदि कोई काम कहीं, दुख मना चले वह सांसे भर ।

 

वह रहा राजसिक कर्त्ता जो, लोभी प्रवृत्ति का होता है,

अपना अधिकाधिक सुख पाने, दुख सारे जग को देता है।

आचार अशुद्ध रहे जिसका, जिसकी गहरी आसक्ति रही,

जो हर्ष-शोक में लिप्त रहा, राजस कर्त्ता की परख यही ।

 

परलोक लोक का सुख चाहे, वह कर्म करे सुख-भोगों को,

पर स्वत्व हड़प लेना चाहे, दे चले कष्ट वह लोगों को ।

रागी वह लुब्ध, फलेशु कर्म, हिंसक लोलुप वह मन मलीन,

राजस कर्ता पुनि पुनि जन्मे, रहता है वह आश्रय विहीन ।

 

वह केन्द्र वासना का बनता, कूड़ा करकट का ढेर बने,

दोषों की पायदान बनकर, वह अपने सुख की वृद्धि करे ।

बगुला जैसा करता शिकार, चूसे वह घृत की माखी को,

जल जाए तेल न दीपक का, वह रखे बुझाकर बाती को

 

जल्दी फल पाने कर्म करे, हो रहे उतावला व्यग्र रहे,

सामर्थ्य नहीं होता फिर भी, वह भाँति-भाँति के यत्न करे ।

किसको कितना दुख पहुंच रहा, इसकी वह फिकर नहीं करता,

वह रहा राजसी कर्त्ता जो कितनों का ही अनहित करता । क्रमशः….