‘गीता ज्ञान प्रभा’ धारावाहिक .. 14

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलियाजी द्वारा रचित ‘गीता ज्ञान प्रभा’ 

ग्रंथ एक अमूल्य ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा ज्ञानेश्वरीजी महाराज रचित ज्ञानेश्वरी गीता का भावानुवाद किया है, श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को गीता ज्ञान प्रभा में 2868 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है।

उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला ‘गीता ज्ञान प्रभा ‘ धारावाहिक की 1४ वी कड़ी ..

    द्वितीयोऽध्यायः – ‘सांख्य-योग’

          ‘सांख्य सिद्धान्त और योग का अभ्यास’

श्लोक (६)

मेरे मन में जो कुछ भी था, विस्तार सहित सब बता दिया,

हो गये कुपित क्या आप, न जो मेरी बातों पर ध्यान दिया।

क्या रहा उचित क्या श्रेष्ठ रहा, इसको हम समझ नहीं पाये,

मन ऐसा उलझ गया, भगवन निर्णय हम सही न ले पाये ।

 

हम युद्ध करें या नहीं करे, है बात उचित या श्रेष्ठ कौन?

हम नहीं जानते, युद्ध हुआ तो विजयी होगा पक्ष कौन?

हम नहीं चाहते, जीना पल भर स्वजनों का संहार रचा,

पर आत्मीय धष्टराष्ट्र पुत्र, तत्पर मरने को सैन्य सजा ।

 

यदि जीत हमारी हुई, मारकर इन अपनों को ही होगी,

वह जीत न होगी, घड़ी मृत्यु की सनी रक्त रंजित होगी।

हूं शरण आपकी, हे भगवान निर्णय करने में मैं असफल,

कर्तव्य करें निश्चित मेरा, प्रभु बने रहे मेरा सम्बल ।

श्लोक (७)

क्या करना उचित रहा हमको, सोचूँ पर सोच नहीं पाता.

उत्पन्न हुआ जो मोह, वही मन को अति व्याकुल कर जाता ।

हो जाता तिमिर रोग जिसको, हो जाती दृष्टि क्षीण उसकी,

हो निकट वस्तु चाहे उसके, पर उसको वस्तु नहीं दिखती।

 

हालत मेरी वैसी ही है, मन भरा भ्रान्तियों से मेरा,

अपना हित देख नहीं पाता, यों मोह भीरुता ने घेरा ।

हे कृष्ण आप ही बतलायें, करके विचार क्या उचित रहा,

सर्वस्व हमारे आप रहे हैं, बन्धु, पिता, गुरु, परम-सखा ।

 

संकट के समय आप ही तो, नित रक्षा करते आए हैं,

क्या अपने शिष्यों के हित को, गुरु कभी भुलाने पाए हैं?

अथवा समुद्र ने नदियों का, क्या साथ कभी भी छोड़ा है?

या माता ने अपने सुत से, क्या देव कभी मुख मोड़ा है?

 

हे पुरुषोत्तम, मेरी बातें स्वीकार न जो, छोड़े उनको,

जो धर्म विरुद्ध न हो, वह मार्ग सही प्रभु दिखलायें मुझको।

क्या धर्म रहा, कर्तव्य रहा क्या मेरा मुझको बतलायें,

शरणागत हूँ भगवन, मेरी नौका को तट तक पहुँचायें। क्रमश: ….