पारिस्थितिक संतुलन को बरक़रार रखने में बाघों का बड़ा योगदान है ! प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से जहाँ भी बाघों का कुनबा है, वहाँ वनों का घनत्व अन्य जगहों की तुलना में अधिक है साथ ही जैव विविधता का अनोखा संसार प्रकर्ति को जीवंत बनाए हुए है ! हाल ही में जो रिपोर्ट सामने आई है उसने पर्यावरणीय परिस्थितियों को खतरे में डालने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है ! वनाधिकारियों के निकम्मेपन और कामचोरी के चलते यह स्थिति बन गई है ,जो की गंभीर पर्यावरणीय परिस्थितियों को आमंत्रित कर रही है, साथ ही मानवीय जीवन के लिए खतरे की चेतावनी को ओर संकेत भी कर रही है …. राकेश प्रजापति
प्रदेश में बाघों की मौत के मामलों में वनाधिकारियों की लापरवाही और निकम्मेपन के चलते प्रदेश से बाघों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है ? वातानुकूलित कमरों में बैठकर फर्जी आंकड़ों के आसरे वनाधिकारियों ने वन्यप्राणी पर खर्च होने वाली राशि से खुद के आलीशान अय्याशी के महल तैयार खड़े कर लिए है ! जिम्मेदार अधिकारीयों की जाँच कर इन्हें जब तक कड़ी सजा नही दी जाएगी तब तक यह सिलसिला चलता रहेगा ! प्रदेश के वन्यजीव विभाग ने अधिकारियों की लापरवाही और बाघ संरक्षण में रुचि की कमी को स्वीकार किया है।
प्रदेश में लगातार बाघों की मौत पर उठे सवालों के बाद राज्य के वन्यजीव विभाग ने अधिकारियों की लापरवाही और बाघ संरक्षण में रुचि की कमी को स्वीकार किया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (बीटीआर) और शहडोल वन मंडल में 2021 से 2023 के बीच 43 बाघों की मौत के संबंध में वन्यजीव विभाग ने अपनी गलती स्वीकारते हुए अधिकारियों के लापरवाही उजागर की है। विभाग का कहना है कि कुछ अधिकारी अपने कार्य के प्रति लापरवाह थे।
ज्ञात हो कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने राज्य के वन्यजीव विभाग से स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) द्वारा बाघों की मौतों पर उठाए गए सवालों के संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगा था, बीते दिनों प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी इस और प्रदेश सरकार का ध्यान आकृष्ट किया था , तब यह बात सामने आई।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पिछले तीन सालों में 34 बाघों की मौत और शहडोल में 9 मौतों के बाद मध्य प्रदेश के बाघ संरक्षण पर सवाल उठाए गए। इस दौरान गठित जांच समिति की रिपोर्ट में कई खामियों का उल्लेख किया गया। इसमें वन विभाग की लापरवाही मुख्य रूप से सामने आई। जांच में बाघों की मौतों के पीछे शिकारियों का हाथ होने का भी अंदेशा जताया गया था। जाँच में पाया गया कि कई मामलों में तो मृत बाधों का पोस्टमार्टम ही नहीं किया गया। न ही शिकारियों को पकड़ने के लिए कोई ठोस कार्रवाई की गई।
रिपोर्ट में बताया गया कि 2021 से 2023 के बीच बंधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल वन क्षेत्र में 43 बाघों की मौत हुई। जांच में वन्यजीव अधिकारियों की लापरवाही पाई गई। वन्यजीव अधिकारियों की शिथिल जांच, शिकार के मामलों की अनदेखी, पोस्टमार्टम प्रक्रिया में गड़बड़ियां और चिकित्सा लापरवाही के कारण हुई बाघों की मौतें एसआईटी द्वारा उठाए गए मुद्दों में शामिल थे।इन मुद्दों पर गंभीरता के साथ एनटीसीए ने वन्यजीव विभाग से स्पष्टीकरण मांगा था ।
वन्यजीव विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुभरंजन सेन ने एनटीसीए को लिखे पत्र में स्वीकार किया कि कुछ मामलों में वन्यजीव मुख्यालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। जांच में यह भी था कि बंधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 34 बाघों की मौत हुई, जबकि शहडोल वन क्षेत्र में नौ बाघों की मौत दर्ज की गई। ये मौते तब हुईं, जब संबंधित क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक अपने पद पर तैनात थे और घोर लापरवाही बरती गई थी।
इस पूरे मामले के बाद, वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे, जिन्होंने राज्य में बाघों के शिकार की घटनाओं को लेकर अदालत में याचिका दायर की थी, श्री दुबे ने कहा कि वे अब इस मामले में CBI जांच के लिए उच्च न्यायालय का रुख करेंगे। अब देखने बाली बात होगी की सरकार अपनी और से इन निकम्मे लापरवाह अधिकारीयों पर क्या कार्यवाही करती है ?
जानकारों के मुताबिक इस मामले को लेकर पर्यावरणविद माननीय न्यायालयों की शरण लेने का मन बना रहे है !