📌 त्वरित टिप्पणी
” राकेश प्रजापति “
छिंदवाड़ा के उधानिकी विश्वविद्यालय से आया यह मामला, जहाँ एक वरिष्ठ डीन पर महिला प्राध्यापक द्वारा गंभीर छेड़छाड़ और मानसिक प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराई गई है, अब एक संस्थान के पतन और सत्ता के घिनौने दुरुपयोग की कहानी बन चुका है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत अधिकारी के कदाचार का मामला नहीं है, बल्कि उच्च शिक्षण संस्थानों में पनप रही उस पुरानी सामंती और दस्यु प्रवृत्ति की ओर इशारा करती है, जिसे पद की आड़ में वैधता मिल जाती है।
डीन का आचरण और ‘दस्यु प्रवृत्ति’
शिकायत में दर्ज बार-बार की अभद्र टिप्पणियाँ, धमकाव और लम्बे समय से चल रही मानसिक पीड़ा अपने आप में चिंताजनक हैं, लेकिन जानकारों के खुलासे इसे और भी गंभीर बना देते हैं। खबर है कि ‘आशिक मिजाज’ बताए जा रहे इस डीन ने केवल स्थायी कर्मचारियों को नहीं, बल्कि अनुसंधान केंद्र में कार्यरत महिला मजदूरों के साथ भी यही घृणित छेड़छाड़ करने की कोशिश की है। यह दर्शाता है कि उनकी प्रवृत्ति किसी एक व्यक्ति या समूह तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी मानसिक विकृति का हिस्सा है, जिसके शिकार कार्यस्थल की सबसे कमजोर और हाशिए पर खड़ी महिलाएं बन रही हैं।
डीन का संबंध भिंड-मुरैना क्षेत्र से होना और उनके आचरण में ‘ दस्यु प्रवृत्ति ‘ का ज़ाहिर होना एक बेहद आपत्तिजनक तुलना है, लेकिन यह सवाल खड़ा करता है कि क्या उच्च पदों पर बैठे लोग अपने पैतृक बल और सत्ता को संस्थागत रूप से इस्तेमाल करने का हक मान बैठे हैं ? डीन जैसे पद की गरिमा ज्ञान और नैतिकता पर टिकी होती है, न कि दबंगई और भय पर।
सुरक्षा की कीमत और संस्थागत चुप्पी
महिला प्राध्यापक का लम्बे समय से प्रताड़ित होना और अंततः सामाजिक प्रतिष्ठा खोने के डर के बावजूद शिकायत करना, हमारी संस्थागत कार्यस्थल सुरक्षा पर एक करारा तमाचा है। यह दिखाता है कि शिकायत प्रणाली (ICC) कितनी कमजोर और निष्क्रिय है, जो एक डीन के सामने टिक नहीं पाई। जिन संस्थानों को युवाओं के भविष्य का निर्माण करना है, वे महिलाओं के लिए एक असुरक्षित और भयभीत करने वाला वातावरण बना रहे हैं।
पुलिस की जाँच के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन को तुरंत और अत्यंत कठोर कदम उठाने होंगे। केवल निलंबन पर्याप्त नहीं है; डीन को तत्काल सेवा से बर्खास्त किया जाना चाहिए और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई को अधिकतम सहयोग देना चाहिए। इसके साथ ही, यह भी जाँच होनी चाहिए कि इस डीन के आचरण को विश्वविद्यालय प्रशासन में किस-किस ने अनदेखा किया और इस संस्थागत चुप्पी के लिए कौन जिम्मेदार है ?
उच्च शिक्षण संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी: ज्ञान और नैतिकता का केंद्र सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि कार्य संस्कृति में दिखना चाहिए। यह मामला एक सबक है कि सत्ता का दुरूपयोग करने वाले किसी भी ‘दबंग’ को शिक्षा के मंदिर में कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए।
पुलिस प्रशासन इस प्रकरण की गंभीरता को जल्द से जल्द जाँच कर आशिक मिजाज डीन को सलाखों के पीछे डाल कर इस उच्च शिक्षण संस्थान की पवित्रता कायम रखे !