डायरिया से महिला की मौत: प्रशासन की लापरवाही से जनता भुगत रही मौत की सजा
राजोला में दूषित पानी बना मौत का कारण, मृतका के परिजनों ने शव रखकर जताया आक्रोश
छिंदवाड़ा// जिले में स्वास्थ्य और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की लापरवाही अब जानलेवा रूप ले चुकी है। हाल ही में 24 मासूम बच्चों की मौत के बाद भी जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारी जैसे गहरी नींद में हैं। उनकी निष्क्रियता का खामियाजा अब आम जनता अपनी जान देकर चुका रही है।
ग्राम राजोला में दूषित पानी से डायरिया और हैजा जैसी जानलेवा बीमारियां फैल चुकी थी 400 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे और अब भी गाहे-बगाहे मामले सामने आ रहे है।कल ही हालात इतने बिगड़े कि एक महिला ने दम तोड़ दिया। लेकिन सवाल यह है कि — आखिर पीएचई (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) से जवाब-तलब क्यों नहीं किया गया ?
बारिश के बाद कुओं में साफ-सफाई और जर्मिष्ट जैसी दवाओं का छिड़काव करना उनकी जिम्मेदारी थी। क्या जिला प्रशासन ने कभी जांच की कि ये दवा डाली भी गई या नहीं ? जवाब है — नहीं। स्वास्थ्य अमला इतना लापरवाह क्यों बना हुआ है !
जिम्मेदार अफसर बेहोशी में, जनता मौत के मुंह में ..
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) और सिविल सर्जन की जिम्मेदारी है कि वे आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं दें, लेकिन दोनों ही केवल फाइलों में सक्रिय हैं। ज़मीनी हकीकत यह है कि अस्पतालों में मरीज तड़प रहे हैं, दवाएं नदारद हैं, और डॉक्टर सरकारी ड्यूटी छोड़ अपने प्राइवेट क्लिनिकों में चांदी कूट रहे हैं।
डॉ. संदीप जैन इसका ताजा उदाहरण हैं — जिन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाना चाहिए। जो मुख्यमंत्री की सुरक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को जूते की नोक पर रख धड़ल्ले से शासकीय आदेशों की धज्जियाँ उड़ाता है , ऐसे अजगरो को सरकारी अमला क्या मानवीय निवाले चराने के लिए पाल रहा है ? अगर वरिष्ठ अधिकारी निर्णय लेने में देरी न करे तो व्यवस्थाओं को सुधारने में देर नहीं लगेगी और जिले की जनता असमय मौत के मुंह में जाने से बच जाएगी । मुख्यमंत्री की सख्त हिदायतों के बावजूद ऐसे लापरवाह डॉक्टर खुलेआम जनता की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर सांसद विवेक बंटी साहू जिले की जनता को बेहतर और उनके द्वार तक स्वास्थ्य सेवाए पहुँचाने के लिए सौ दिवसीय स्वास्थ्य शिविर जगह-जगह लगवा रहे है ताकि जिले की जनता को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सके , परन्तु उनके किए गए सार्थक प्रयासों पर मिट्टी डालने का काम प्रशासनिक अमला कर रहा है ! जिससे जिले के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है !
प्रशासन बन गया अफसरों की ढाल ..
जिला प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह होने के बजाय, नाकारा अफसरों को बचाने में जुटा है। जनता के गुस्से का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मृतका के परिजनों ने शव को जिला अस्पताल परिसर में रखकर प्रदर्शन किया। यह चेतावनी है — अगर अब भी हालात नहीं सुधरे, तो जनता का यह आक्रोश दावानल बन जाएगा।
जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी पर भी सवाल ..
जिले के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारीयों , जनप्रतिनिधियों और प्रभारी मंत्री का यह नैतिक दायित्व है कि वे जनता की तकलीफों को समझें। लेकिन जब वे भी आंख मूंदकर बैठे हैं, तो यह जिम्मेदारी किसी ऐसे व्यक्ति को सौंप देनी चाहिए जो जिले के प्रति ईमानदार हो।
अगर अब भी चुप्पी बरकरार रही, तो जनता सड़कों पर उतरने से नहीं चूकेगी।
सावधान! यह आग अब भड़क चुकी है — और यह केवल एक महिला की मौत नहीं, बल्कि प्रशासनिक बेपरवाही की परिणति है।