कफ सिरप त्रासदी – डॉक्टर की गिरफ्तारी और सरकारी तंत्र की जवाबदेही
विश्लेषण: राकेश प्रजापति
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक कफ सिरप (कोल्ड्रिफ सिरप) से हुई कई बच्चों की मौत की भयावह घटना को दर्शाती है। यह सिरप जहरीले रसायन डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की अत्यधिक मात्रा के कारण अमानक पाया गया, जिससे बच्चों की किडनी फेल हो गई। इस मामले में, सिरप लिखने वाले एक स्थानीय डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से यह सवाल उठता है कि क्या डॉक्टर ही एकमात्र और मुख्य दोषी है, या इस त्रासदी में सरकारी स्वास्थ्य विभाग, औषधि नियंत्रक तंत्र और नियामक संस्थाओं की जवाबदेही अधिक है।
1. डॉक्टर प्रवीण सोनी की गलती और कानूनी पहलू
डॉक्टर प्रवीण सोनी पर मामला दर्ज होने और उनकी गिरफ्तारी की खबर बताती है कि पुलिस ने उन्हें इस त्रासदी का एक जिम्मेदार पक्ष माना है।
- डॉक्टर की संभावित गलती:
- लापरवाही: यदि यह सिद्ध होता है कि डॉक्टर ने बिना पूरी जानकारी या जांच के यह अमानक सिरप लिखा, खासकर तब जब बाजार में इसके विपरीत असर की खबरें या संदेह मौजूद थे ।
- व्यावसायिक कदाचार: यदि डॉक्टर ने किसी दवा कंपनी के साथ साँठ-गाँठ करके या व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी विशेष सिरप (जिसकी गुणवत्ता संदिग्ध थी) को प्राथमिकता दी हो, तो यह उनके पेशेवर आचरण का उल्लंघन होगा।
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940: डॉक्टर पर आपराधिक लापरवाही के तहत भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 A (लापरवाही से मौत) के तहत मामला दर्ज हो सकता है।
- डॉक्टर का बचाव पक्ष:
- एक चिकित्सक आमतौर पर बाजार में उपलब्ध, लाइसेंस प्राप्त और सरकार द्वारा प्रतिबंधित नहीं की गई दवाओं को ही लिखते हैं। वे ड्रग कंट्रोलर नहीं होते जो दवा के निर्माण या मानक की जांच करें।
- यह मान लिया जाता है कि अगर कोई दवा बाजार में बिक रही है, तो वह मानक (Standard) के अनुरूप है और संबंधित नियामक प्राधिकरण (ड्रग कंट्रोल विभाग) द्वारा अनुमोदित है। डॉक्टर को दवा की सामग्री में जहरीले रसायन की मिलावट की जानकारी नहीं हो सकती।
- मूल जिम्मेदारी: डॉक्टर की मुख्य जिम्मेदारी बीमारी का सही निदान और इलाज है; दवा की गुणवत्ता की जांच करना उनका कार्यक्षेत्र नहीं है।
2. सरकारी तंत्र, औषधीय नियंत्रक और नियामक संस्थाओं की जवाबदेही
विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि डॉक्टर को गिरफ्तार करना ” बलि का बकरा “ बनाने जैसा लग सकता है, जबकि त्रासदी की जड़ें नियामक तंत्र की विफलता में गहरी हैं। दोष मुख्य रूप से निम्नलिखित पर है:
- औषधीय नियंत्रक (Drug Controller) और स्वास्थ्य विभाग:
- असली दोषी: खबर में बताया गया है कि सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा अनुमेय सीमा से 48 % ज्यादा पाई गई। DEG एक ज्ञात जहरीला रसायन है।
- विफलता: ड्रग कंट्रोलर की प्राथमिक जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि बाजार में बिकने वाली सभी दवाएं मानक और गुणवत्ता के अनुरूप हों। यदि अत्यधिक जहरीला DEG इतने बड़े पैमाने पर बच्चों को दिया जा रहा था, तो यह ड्रग कंट्रोल विभाग की घोर विफलता है। विभाग ने या तो दवा के नमूने नहीं लिए, या जांच सही तरीके से नहीं की, या जांच रिपोर्टों पर समय पर कार्रवाई नहीं की।
- लाइफ-सेविंग ड्रग्स का नियंत्रण: जीवन रक्षक दवाओं में मिलावट या अमानकता रोकने के लिए एक मजबूत और पारदर्शी तंत्र की आवश्यकता होती है, जिसमें स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से विफल रहा।
- दवा कंपनी (श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स):
- सीधा आपराधिक कृत्य: अमानक या जहरीले घटकों का जानबूझकर या घोर लापरवाही से उपयोग करना (जैसे DEG का उपयोग सॉल्वेंट के रूप में करना) एक सीधा आपराधिक कृत्य है।
- कानूनी पहलू: कंपनी पर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत गंभीर धाराओं (जैसे धारा 27(a) घातक/जहरीली दवा का निर्माण/बिक्री) के साथ-साथ IPC की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज होना चाहिए। खबर में कंपनी पर FIR की बात है, जो सही दिशा में उठाया गया कदम है।
3. कानूनी पहलुओं का उल्लेख :
इस मामले में निम्नलिखित कानूनी प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए:
- भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या): यह धारा दवा कंपनी के अधिकारियों और ड्रग कंट्रोल अधिकारियों पर लागू हो सकती है, जिन्होंने गंभीर लापरवाही या ज्ञान के साथ ऐसे जहरीले उत्पाद को बाजार में आने दिया।
- धारा 304 A (लापरवाही से मौत) : यह डॉक्टर पर लागू की जा सकती है, यदि उनकी लापरवाही सिद्ध होती है।
- धारा 420 (धोखाधड़ी) और 274-276 (दवाओं में मिलावट/अमानक दवा बेचना): यह कंपनी के अधिकारियों पर लागू होगी।
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940:
- धारा 27(a): अमानक, मिलावटी या जहरीली दवा बेचने/उत्पादन करने पर कठोर दंड का प्रावधान।
- धारा 18(a) और (c): अमानक दवा के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध।
- ड्रग कंट्रोल विभाग के अधिकारियों की भी जांच होनी चाहिए कि क्या वे अपने वैधानिक कर्तव्यों (Statutory Duties) का निर्वहन करने में विफल रहे हैं, जिसके लिए उन्हें विभागीय और आपराधिक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष :
बच्चों की मौत की यह त्रासदी सिर्फ एक डॉक्टर की गिरफ्तारी से समाप्त नहीं हो सकती। यह पूरे सरकारी नियामक और स्वास्थ्य तंत्र की विफलता को दर्शाती है। डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लग सकता है, लेकिन जहरीली दवा बनाने वाली कंपनी और उसे बाजार में बिकने देने वाले ड्रग कंट्रोल विभाग की जवाबदेही कहीं अधिक गंभीर और आपराधिक प्रकृति की है। एक पारदर्शी और सख्त जांच की आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करे कि दवा की मानक जाँच, लाइसेंसिंग और बाजार निगरानी में शामिल सभी दोषी अधिकारियों और कंपनी मालिकों को कठोरतम दंड मिले।