“छिंदवाड़ा का चंदनगांव — जहां अनैतिकता नहीं, सिस्टम का सड़ांध उजागर हुआ”
विशेष रिपोर्ट : राकेश प्रजापति
छिंदवाड़ा के चंदनगांव में कृष्ण मंदिर के पास स्थित तीन मंज़िला मकान पर हुई पुलिस की ताज़ा रेड केवल एक सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ नहीं—बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे की विफलता, सामाजिक ताने-बाने का टूटना, और तंत्र की चरमराहट का नग्न सच है।
18 कमरे, 20 बेड, संदिग्ध गतिविधियाँ, महीनों तक आती–जाती जोड़ियां,और पुलिस की सिर्फ “खानापूर्ति”। यह सब किसी एक रात का खेल नहीं—यह बताता है कि प्रशासनिक उदासीनता और स्थानीय भ्रष्ट तंत्र ने अपराध को फलने-फूलने दिया।
घटना ने खोला वह ‘घाव’ जिसे वर्षों से ढंका जा रहा था
गुरुवार सुबह की रेड में दो युवक-युवतियाँ, आपत्तिजनक सामग्री और “धंधे” की पूरी व्यवस्था मिली।
पर असली सवाल यह नहीं है कि मकान में क्या मिला। असली सवाल यह है कि इतने महीनों तक यह सब चलता कैसे रहा ?
स्थानीय नागरिकों ने इसे – पुलिस को , जनसुनवाई में , CM हेल्पलाइन में , 5 से ज़्यादा बार शिकायत के रूप में दर्ज कराया।
पर हर बार पुलिस आकर “औपचारिकता” निभाकर लौटती रही।
क्या पुलिस को पता नहीं था ? , या पता था, लेकिन देखने की इच्छा नहीं थी ? , या देखने के बदले ‘कुछ और’ मिल जाता था ?
यही सवाल अब जनता पूछ रही है।
सामाजिक तानाबाना टूट रहा है — अपराध ‘सामान्य’ बन रहा है
चंदनगांव जैसे शांत, धार्मिक और पारंपरिक इलाके में “धंधेबाज मकान” का महीनों तक संचालित होना ! हमारे सामाजिक ढांचे पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
पड़ोसियों का भय , युवाओं का गलत रास्ते पर भटकना , महिलाओं की सुरक्षा पर चोट , परिवारों के संस्कारों का क्षरण
यह केवल एक भवन का मामला नहीं—यह हमारे समाज की मूल्य प्रणाली के धीरे-धीरे मरने की प्रक्रिया का संकेत है।
अनैतिक देह व्यापार तब सबसे तेज़ पनपता है , जब समाज चुप रहता है और तंत्र सो जाता है।
पुलिस व्यवस्था — विश्वास टूटे तो कानून भी कमजोर पड़ जाता है
इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा होता है। मकान पर बार-बार शिकायतें होने के बावजूद— न निगरानी, न निग्रह, न रोकथाम, सिर्फ औपचारिकता।
यानी,
कानून के पहरेदार ही कानून की अनदेखी करते रहे।
यह घटना यह साबित करती है कि स्थानिय स्तर पर “प्रशासन का एक हिस्सा अपराध रोकने के बजाय उस पर आंखें मूंदे बैठा था।” और जब SP के सीधे हस्तक्षेप के बाद ही कार्रवाई हो— तो यह साफ संदेश देता है कि नीचे का पूरा ढांचा या तो कमजोर हो चुका है या समझौते से भरा हुआ है।
भ्रष्टाचार—इस पूरे खेल का सबसे गंदा पक्ष
अनैतिक गतिविधियाँ तब सालों तक पनपती हैं जब— # पैसे का खेल हो , # सिस्टम में मिलभगत हो , # शिकायतों को दबाया जाए , # और अपराध करने वालों को “संरक्षण” मिलता रहे
चंदनगांव की घटना में यही हुआ। यह केवल अपराध नहीं,
यह संगठित अपराध + प्रशासनिक नाकामी + भ्रष्ट मानसिकता की संयुक्त उपज है।
स्थानीय लोग खुलकर कह रहे हैं—
“पुलिस आती थी, देखती थी…और चली जाती थी।”
यह वाक्य सिर्फ एक विभाग पर नहीं,
पूरे प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार है।
NCRB की रिपोर्ट—अपराध बढ़ रहा है, पर रोकथाम घट रही है
ताज़ा रिपोर्टें बताती हैं— देश में देह व्यापार व मानव तस्करी से जुड़े अपराध लगातार बढ़ रहे हैं , पर इन मामलों की दोषसिद्धि दर बेहद कम है .यानी, अपराधी पकड़े जाते हैं, पर छूट भी जाते हैं , क्योंकि जांच कमजोर, गवाह डरे हुए, और तंत्र बिखरा हुआ
छिंदवाड़ा भी इससे अछूता नहीं है। यह घटना दिखाती है कि NCRB की रिपोर्ट सिर्फ आंकड़े नहीं—जमीनी हकीकत है।
आधुनिकता + लालच + बेरोजगारी = अनैतिकता की नई जमीन
आज अनैतिक देह व्यापार सिर्फ मजबूरी नहीं—
सोशल मीडिया # आसान संपर्क #आर्थिक लालच , #तेज़ जीवनशैली , # इंटरनेट आधारित दलालगिरी
इन सबने इसे “छिपे हुए नेटवर्क” में बदल दिया है।
जहाँ लड़के-लड़कियाँ असुरक्षित रूप से फंस जाते हैं
और संचालक मोटा पैसा कमाता है।
चंदनगांव का मकान भी उसी “नए जमाने” के देह व्यापार का हिस्सा था,
जहाँ
धर्म, सामाजिकता और सम्मान—सब तो बस मुखौटे थे
यह सिर्फ अपराध नहीं, यह चेतावनी है
चंदनगांव की घटना हमें बताती है— @ सिस्टम कमजोर है , @ पुलिस की जवाबदेही खत्म हो रही है ,@ समाज का नैतिक ढांचा टूट रहा है
@ भ्रष्टाचार अपराध को संरक्षण दे रहा है ,@ और तंत्र भीतर से सड़ चुका है
अगर इस घटना के बाद भी— पुलिस की जवाबदेही तय नहीं होती ,#प्रशासनिक सुधार नहीं होते , # समाज जागरूक नहीं होता # और जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती
तो ऐसे “धंधेबाज मकान”
छिंदवाड़ा ही नहीं,
हर शहर, हर मोहल्ले में और उग आएंगे।
“यह मकान केवल देह व्यापार का अड्डा नहीं था—
यह उस समाज की तस्वीर था,
जहाँ तंत्र सो रहा था,
भ्रष्टाचार मुस्कुरा रहा था,
और अपराध फल-फूल रहा था।”