चित्रों के माध्यम से कविता का अनुभव ..

वरिष्ठ चित्रकार ध्रुव की कविता पोस्टर प्रदर्शनी ने किया सभी को आत्मविभोर – छिंदवाड़ा की प्रतिभा को मिला राष्ट्रीय मंच, पर स्थानीय उपेक्षा बनी ?

✍️ राकेश प्रजापति 

छिंदवाड़ा // मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, छिंदवाड़ा जिला इकाई द्वारा विगत दिनों शहर के वरिष्ठ चित्रकार ध्रुव की 58 कविता पोस्टरों की भव्य प्रदर्शनी का आयोजन राजमाता सिंधिया शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सभागार में किया गया। दो दिवसीय इस प्रदर्शनी ने कला, साहित्य और भावनाओं का ऐसा संगम प्रस्तुत किया, जिसने वहां उपस्थित हर छात्रा, प्राध्यापक और साहित्यप्रेमी को आत्मविभोर कर दिया।

प्रदर्शनी का उद्घाटन महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अस्मिता मुंजे ने किया। इस अवसर पर डॉ. विजय कलमधार, श्री श्रीपाद आरोनकर, वरिष्ठ साहित्यकार प्रदीप श्रीवास्तव, ओमप्रकाश नयन सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे। प्रदर्शनी के द्वितीय सत्र में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सीताराम शर्मा की अध्यक्षता में कविता पोस्टर विमर्श भी हुआ, जिसमें पोस्टरों की कलात्मकता और भावनात्मक गहराई पर सार्थक चर्चा की गई।

कविता और चित्र का अद्भुत संगम ..

वरिष्ठ चित्रकार ध्रुव ने हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवियों जैसे निराला, महादेवी वर्मा, मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा, उदय प्रकाश, राजेश जोशी, चंद्रकांत देवताले, भगवत रावत, गगन गिल, विनोद कुमार शुक्ल सहित छिंदवाड़ा के साहित्यकारों विष्णु खरे, राजेन्द्र शर्मा, संपतराव धरणीधर, गोपालकृष्ण सक्सेना पंकज, डॉ. लक्ष्मीचंद, डॉ. विजय कलमधार, ओमप्रकाश नयन, मनीषा जैन, रोहित रूसिया, सुवर्णा दीक्षित आदि की रचनाओं को अपनी तूलिका से जीवंत रूप दिया है।

हर पोस्टर एक कविता नहीं, बल्कि भावनाओं का दृश्यात्मक अनुभव था — जिसमें शब्दों की लय और रंगों की आत्मा एकाकार होते दिखे। छात्राओं ने इन पोस्टरों को देखकर कहा कि “चित्रों के माध्यम से कविता को महसूस करना एक नया अनुभव है।”

कला के साधक ध्रुव — उपेक्षा का शिकार कलाकार ..

ध्रुव ने कला साधना को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। उन्होंने अपनी तूलिका के माध्यम से वर्षों की तपस्या, संवेदना और सृजनशीलता को साकार किया है। देश के अनेक महानगरों — दिल्ली, भोपाल, नागपुर, मुंबई, जयपुर, इंदौर में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन कर राष्ट्रीय स्तर पर छिंदवाड़ा का नाम रोशन किया, पर विडंबना यह है कि जिस जिले ने उन्हें जन्म दिया, वही आज तक उन्हें वह सम्मान नहीं दे सका, जिसके वे हकदार हैं।

स्थानीय स्तर पर उनकी उपेक्षा, जिले की कला-संस्कृति के लिए भी एक गहरा प्रश्न है। क्या हम अपनी प्रतिभाओं को तभी पहचानेंगे, जब वे कहीं और जाकर सम्मानित हों ?

छिंदवाड़ा की सांस्कृतिक धरोहर — एक संदेश

यह प्रदर्शनी केवल कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक संदेश भी थी — कि कविता और चित्रकला मिलकर संवेदनाओं का नया संसार रच सकती हैं। ध्रुव ने जिस समर्पण और मौन साधना से यह कार्य किया है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा।