प्रशासन का किसान-विरोधी फरमान ..?

तुगलकी फरमान और किसान हित पर कुठाराघात, पराली जलाने पर प्रतिबंध, अव्यवस्था और असंवेदनशीलता का प्रतीक

✍️ विश्लेषण : राकेश प्रजापति 

छिंदवाड़ा जिला किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति ने जिला प्रशासन की किसान-विरोधी मानसिकता और अकर्मण्यता को नंगा कर दिया है। पराली (नरवाई) जलाने पर प्रतिबंध लगाने का जो ‘तुगलकी फरमान’ जारी किया गया है, वह किसानों के हित पर सीधा कुठाराघात है और यह दर्शाता है कि प्रशासन धरातल की हकीकत से कितना बेख़बर है।

किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पुष्पेन्द्र सिंह ने जो तथ्य सामने रखे हैं, वे आँखें खोलने वाले हैं। उनका कहना है कि जिले के 85 प्रतिशत से अधिक लघु और सीमांत किसान – जिनके पास 5 एकड़ से कम ज़मीन है – उनके पास पराली प्रबंधन के लिए आवश्यक आधुनिक उपकरण (जैसे सुपर हैप्पी सीडर, रीपर, मैनेजमेंट सिस्टम) उपलब्ध नहीं हैं। कृषि विभाग भी उन्हें ये उपकरण उपलब्ध नहीं करा रहा है।

तो क्या चाहता है प्रशासन ? क्या प्रशासन यह चाहता है कि ये 85 प्रतिशत किसान अपना खेत तैयार न कर पाएँ ? क्या यह प्रतिबंधात्मक आदेश किसानों को ‘आपराधिक’ घोषित करने की साजिश है ? पराली जलाने पर एफ.आई.आर. दर्ज करने की धमकी न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि यह किसानों के धैर्य की परीक्षा भी है। इसी तरह की बेजा हरकते बीते दिनों तत्कालीन कलेक्टर शीलेन्द्र सिंग ने  झूठी शान बघारने के लिए 186 से अधिक किसानों के ऊपर मुकदमे दर्ज करबा कर उन्हें जलील करने का काम किया था , वहीँ जन जागरूकता के नाम पर कुछ नही किया ?

आज किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं है, वह पर्यावरण का रक्षक भी है, जो अपनी फसल के अवशेषों का सीमित उपयोग (पशुओं के चारे के रूप में) भी करता है। यह समझना होगा कि इस प्रतिबंध के पीछे तर्क क्या है ? यदि हवा की गुणवत्ता का हवाला है, तो क्या प्रशासन ने कोई व्यावहारिक विकल्प दिया है ? उत्तर है – नहीं।

हम मांग करते हैं कि प्रशासन तत्काल इस किसान-विरोधी आदेश पर पुनर्विचार करे और इसे अविलंब वापस ले।

केवल आदेश वापस लेना पर्याप्त नहीं होगा। प्रशासन को चाहिए कि वह:

  1. जागरूकता अभियान चलाए: किसानों को पराली के दुष्परिणामों और सही प्रबंधन के तरीकों के बारे में शिक्षित करे।
  2. पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए: कृषि विभाग के माध्यम से, आवश्यक कृषि उपकरण (सुपर सीडर, बेलर आदि) सभी किसानों के लिए किराये पर एवं अनुदान पर तुरंत उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

यह वक्त केवल कागज़ी कार्रवाई का नहीं, बल्कि समाधान और सहयोग का है। अगर जिला प्रशासन किसानों के हितों की रक्षा नहीं कर सकता, तो उसे शक्ति करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को इस पूरे मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिला प्रशासन की इस मनमानी और असंवेदनशीलता पर लगाम लगाए।

किसानों को डराना, एफ.आई.आर. की धमकी देना, और उन्हें अपने हाल पर छोड़ देना – यह प्रशासनिक लापरवाही की पराकाष्ठा है। यह तुगलकी फरमान विचारणीय है ?