अमानक दवाओं का महाघोटाला : सरकार की नाकामी, नीतिगत खामियाँ और जनता की जान ..

अमानक दवाओं का महाघोटाला – सरकार की नाकामी, नीतिगत खामियाँ और जनता की जान से खिलवाड़

✍️ संपादकीय टिप्पणी : राकेश प्रजापति 

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुरक्षा का ढांचा पूरी तरह चरमरा चुका है। कभी एलोपैथिक दवाओं का जहर बच्चों की जान लेता है, तो अब आयुर्वेदिक दवाओं की सात महत्वपूर्ण खुराकों में अमानक तत्वों के उजागर होने से पूरा प्रदेश हिल गया है। ताजा घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि राज्य में दवाओं की गुणवत्ता जाँच व्यवस्था या तो मृत है या फिर पूरी तरह भ्रष्टाचार के शिकंजे में जकड़ी हुई है।

छिंदवाड़ा , बिछुआ से लेकर पूरे प्रदेश तक — एक ही सवाल हर तरफ तैरता दिखाई दे रहा है:

क्या हमारे बच्चे, बुजुर्ग और मरीज अब दवा की हर खुराक के साथ मौत का जोखिम खरीदने को मजबूर हैं ?

अलार्मिंग सच्चाई : 7 आयुर्वेदिक दवाएं अमानक, पहले एलोपैथिक दवाओं से 24 बच्चों की मौत

आयुष विभाग की जांच में बाबूलनाथ और बैद्यनाथ जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों की 7 आयुर्वेदिक दवाएं अमानक पाई गईं। इनमें कासमृता सिरप, गिलोय सत, मुक्ताशुक्ति भस्म, कामदुधा रस, कफकुठार रस, प्रभावल पिष्टी और लक्ष्मीविलास रस शामिल हैं।

यह खुलासा तब हुआ, जब ग्राम बिछुआ में 5 महीने का मासूम बच्चा अमानक दवा की खुराक निगलने से मौत के मुहँ में समा गया।

इससे भी भयावह तथ्य यह है कि इससे पहले छिंदवाड़ा में अमानक एलोपैथिक कोल्ड-ड्रिंक कफ सिरप के कारण 24 मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है।
कितने और सबूत चाहिए यह मानने के लिए कि दवाओं की निगरानी व्यवस्था अब पूरी तरह विफल है ?

अमानक घोषित दवाएँ: स्वास्थ्य विभाग की जाँच रिपोर्ट के आधार पर, कई प्रसिद्ध आयुर्वेदिक कंपनियों की सात दवाएँ अमानक पाई गईं। स्वास्थ्य विभाग ने इन दवाओं की बिक्री पर तत्काल रोक लगा दी है और संबंधित मेडिकल स्टोर्स को इन्हें हटाने के निर्देश दिए हैं।

सरकार की नीतियां बुरी तरह असफल — अब परिवर्तन अनिवार्य

इन दोनों घटनाओं ने सरकार की नीति-निर्माण क्षमता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। दवा उद्योग में यह एक जानी-मानी सच्चाई है कि जब तक दवा की हर खेप (Batch) की गुणवत्ता जांच अनिवार्य और अनिवार्य रूप से लागू नहीं होगी, तब तक अमानक, विषाक्त और नकली दवाएं बाजार में पहुँचती रहेंगी।

परंतु मध्य प्रदेश में अभी तक दवाओं की टेस्टिंग नमूनों तक सीमित है — यानी जो कंपनियाँ चाहें, बाजार में लाखों बोतलें भेज दें, पर जाँच सिर्फ कुछ नमूनों की होती है। यह व्यवस्था स्वयं में दवा माफियाओं को खुला लाइसेंस देने जैसा है।

अब हालात इस स्तर पर पहुँच गए हैं कि:

  • अमानक दवा बनाने वाली कंपनियाँ मुनाफा कमाएँगी

  • सरकारी विभाग फाइलों में खेल खेलेगा

  • और मरेंगे तो जनता के बच्चे ,कानूनी और प्रशासनिक दृष्टि से यह केवल गलती नहीं, बल्कि अपराध है

दवा अधिनियम, 1940 और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के तहत—

▪ अमानक दवा का उत्पादन अपराध है

इसके लिए 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। पर सवाल यह है कि कितनी कंपनियों पर ऐसी कार्रवाई होती है ?

▪ बिना परीक्षण के दवा बाजार में भेजना गंभीर लापरवाही

यह सरकारी विभागों की सीधी-सीधी जवाबदेही है। यदि QC (Quality Control) लैब समय पर रिपोर्ट नहीं भेजती या बैच की टेस्टिंग नहीं करती, तो यह कानून की खुली अवहेलना है।

▪ बच्चा मौत का मामला — सामूहिक हत्या जैसा अपराध

छिंदवाड़ा के 24 बच्चों की मौत केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक मर्डर है। यदि सरकार की नीतियाँ दोषपूर्ण हैं और उनकी वजह से मौत होती है, तो यह IPC की धारा 304A, 336, 420 और 272 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।

सबसे भयावह पहलू – जनता का सरकार पर से विश्वास उठ रहा है

स्वास्थ्य जैसी संवेदनशील व्यवस्था में जब बार-बार गंभीर खामियाँ उजागर होती हैं, तो जनता का विश्वास टूटना स्वाभाविक है। खासतौर पर तब, जब:

  • बाजार में मिलने वाला सिरप बच्चों की जान ले ले

  • आयुर्वेदिक दवा भी अमानक निकल आए

  • और सरकार सिर्फ बैठकों व प्रेस रिलीज़ से काम चला ले

जनता समझने लगी है कि सरकारी नीतियों की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है

अमानक दवाओं से बेगुनाह जेल जाते हैं — असली अपराधी बच निकलते हैं

अमानक दवा की एक घटना के बाद सामान्यतः

  • दवा दुकानदार पकड़ा जाता है

  • डॉक्टर पर केस बनता है

  • स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी जांच में उलझ जाता है

जबकि असली अपराधीदवा कंपनी, आपूर्तिकर्ता, सरकारी गुणवत्ता नियंत्रण अधिकारी और नीति-निर्माता – प्रायः बच निकलते हैं।

इससे न्याय की भावना भी खत्म होती है और सिस्टम के प्रति अविश्वास और गहरा हो जाता है।

क्या अब भी सरकार जागेगी ? — आवश्यक नीति परिवर्तन

राज्य को निम्न परिवर्तन तुरंत लागू करने चाहिए:

1. हर दवा की हर खेप का अनिवार्य परीक्षण

कोई भी दवा बिना बैच-टेस्टिंग पास किए बाजार में न जाए।

2. सभी दवा कंपनियों का वार्षिक प्रामाणिकता ऑडिट

दवा निर्माण संयंत्रों की गुणवत्ता ऑडिट अनिवार्य हो।

3. दोषियों पर निर्णायक कानूनी कार्रवाई

अमानक दवा बनाने वाली कंपनियों के लाइसेंस तत्काल रद्द हों।

4. सरकारी QC लैब को स्वायत्त और पारदर्शी बनाना

सभी टेस्टिंग रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएं।

5. स्वास्थ्य विभाग में जिम्मेदारी तय हो

अमानक दवा की एक खेप आने पर विभागीय अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई हो।

अंत में — अगर अभी नहीं बदला तो जानें जाती रहेंगी

राज्य में दवाओं को लेकर जो अराजक स्थिति बनी है, वह केवल लापरवाही नहीं बल्कि खतरनाक नीतिगत विफलता है।
सरकार को समझना होगा कि—

दवा सिर्फ व्यापार नहीं, यह लोगों की जिंदगी है।
दवाओं की असफलता का मतलब है मौत।

अमानक दवाओं का यह सिलसिला अब रुकना चाहिए, वरना वह दिन दूर नहीं जब जनता सरकारी अस्पतालों और दवा दुकानों दोनों पर से भरोसा खो देगी — और यह किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए सबसे बड़ी हार होगी।

विधि सलाहकार : एड. अनुपम गड़ेवाल