आर्थिक संकट या घोटाले में फंसा निगम..?

📌 त्वरित टिप्पणी ..

      राकेश प्रजापति 

नगर पालिक निगम छिंदवाड़ा की हालत ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसी है – न विकास दिखता है, न व्यवस्था, केवल भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन की गंध चारों तरफ फैली है। भाजपा की सरकार केन्द्र , प्रदेश और निगम तीनों जगह होने के बावजूद यहां विकास कार्य ठप्प पड़े हैं। हालत यह है कि कर्मचारियों को वेतन बांटने तक लाले पड़ रहे हैं और निगम आर्थिक संकट की दलदल में धंस चुका है। निगम महापौर विक्रम आहके अपने स्तर पर निगम के कंगाल होने की व्यथा प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर देश की राष्ट्रपति तक सुना चुके है, बावजूद इसके परिणाम शिफर ..

जब नगर निगम की तिजोरी खाली है, तो उसका सबसे आसान इलाज निगम ने जनता की जेब काटना समझा। संपत्ति कर, जलकर और सफाई कर में 10 से 100 %  तक की अवैधानिक बढ़ोतरी कर दी गई। यानी जो विकास न कर पाए, वो जनता पर बोझ लाद दो। जनता जाए तो जाए कहां ?

संपत्ति कर काउंटर पर हाल ही में उजागर घोटाले ने तो निगम की नाक ही कटवा दी। राजस्व अधिकारी की जांच रिपोर्ट साफ कहती है कि एक महिला रोज़गार सहायक ने कर्मचारियों की आईडी का दुरुपयोग कर करीब 5.34 लाख रुपये वसूले लेकिन निगम कोष में जमा नहीं किए। इसे कहते हैं—‘घर का भेदी लंका ढाए’। निगम आयुक्त चंद्रप्रकाश राय ने भी मामले की गंभीरता स्वीकार करते हुए एफआईआर की अनुशंसा कर दी है, लेकिन सवाल है कि इतनी बड़ी अनियमितता के पीछे असली ‘मछली’ कौन है ? क्या केवल छोटे कर्मचारी ही बलि का बकरा बनेंगे ?

कांग्रेस का पलटवार : इधर, कांग्रेस के नगर निगम अध्यक्ष धमेंद्र सोनू मागो ने सीधे भाजपा पर निशाना साधा है। उनका आरोप है कि भाजपा नेताओं के संरक्षण में नगर निगम घोटालों की प्रयोगशाला बन चुका है। जनता के टैक्स की रकम पर खुलेआम ‘चोरी और सीनाजोरी’ हो रही है। मागो का कहना है कि घोटाले की असली जड़े बड़े चेहरों तक जाती है, लेकिन जांच हमेशा ‘ऊपर से नीचे, नीचे से रफा-दफा’ कर दी जाती है।

सबसे बड़ा सवाल : जिम्मेदारों की चुप्पी क्यों ?

यह पहला घोटाला नहीं है, न आखिरी। सवाल यह है कि जब नगर निगम की गाड़ी ‘ढाक के तीन पात’ की तरह बार-बार भ्रष्टाचार में अटक रही है, तो जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन आखिर मौन क्यों हैं ? क्या यह मौन सहमति है ? क्या यही सरकार  का सुशासन और पारदर्शिता है ?

👉 छिंदवाड़ा की जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि “ जब रखवाले ही लुटेरे बन जाएं, तो चौकीदार पर भरोसा किसे ? ”