“मऊ में बाघ की दस्तक — सूझबूझ, वैज्ञानिक निर्णय और जनसहयोग से बची प्रकृति व मानव दोनों की सुरक्षा”
✍️ विशेष विश्लेषणात्मक रिपोर्ट : राकेश प्रजापति
छिंदवाड़ा जिले के मऊ मोहखेड़ क्षेत्र में 24 नवंबर की सुबह एक ऐसा दृश्य सामने आया, जिसने पूरे इलाके की धड़कनों को बढ़ा दिया। खेतों में आराम कर रहे एक वयस्क व स्वस्थ बाघ को अचानक ग्रामीणों ने देख लिया। हलचल बढ़ी, लोग जुटे, और घबराहट में बाघ खेतों के भीतर अरहर की फसल के बीच जा छिपा।
यह घटना उतनी ही संवेदनशील थी जितनी खतरनाक—क्योंकि यहां सवाल था दो जिंदगियों का। एक तरफ प्रकृति का अनमोल रत्न बाघ, और दूसरी तरफ ग्रामीणों की मानवीय सुरक्षा।
लेकिन वन विभाग की सतर्कता, त्वरित कार्रवाई और वैज्ञानिक निर्णयों के कारण यह चुनौती एक सफल संचालन में बदल गई।
घटना की शुरुआत — खतरे की दस्तक, लेकिन संयम का रास्ता
सुबह 5:30 से 6 बजे के बीच जब बाघ को खेतों में घूमते देखा गया, तो ग्रामीणों की भीड़ और हंगामे से बाघ दहशत में आ गया।
परिक्षेत्र सहायक पवन ढेपे और वनरक्षक द्वारा घटना को प्रत्यक्ष देखे जाने के बाद तुरंत परिक्षेत्र अधिकारी सुश्री कीर्तिबाला गुप्ता को सूचना दी गई।
वन अमला कुछ ही मिनटों में मौके पर पहुंच गया और सबसे पहले—
✔ घेराबंदी,
✔ भीड़ नियंत्रण,
✔ नेटवर्क सुरक्षा,
✔ महिलाओं-बच्चों एवं मवेशियों को सुरक्षित स्थलों पर रखना
जैसे सबसे आवश्यक कदम उठाए। वन विभाग व पुलिस की संयुक्त टीम ने मौके की दोनों दिशाओं से बैरिकेड कर आवागमन रोक दिया। यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे न केवल ग्रामीणों की सुरक्षा हुई बल्कि बाघ को भी तनावमुक्त स्थान मिला।
ड्रोन सर्चिंग और कैमरा ट्रैप — आधुनिक तकनीक से संभली स्थिति
बाघ की सही लोकेशन का पता लगाने के लिए ड्रोन कैमरे से सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया। ड्रोन की मदद से यह पुष्टि हुई कि बाघ अरहर के खेत में शांत होकर बैठा है।
फिर रात होने तक कैमरा ट्रैप लगाए गए ताकि बाघ की गतिविधि पर पूरी रात नज़र रखी जा सके।
इससे वन्यप्राणियों के संरक्षण में तकनीक की निर्णायक भूमिका फिर साबित हुई।
वरिष्ठ अधिकारियों का नेतृत्व — SOP आधारित वैज्ञानिक फैसला
छिंदवाड़ा के मुख्य वनसंरक्षक श्री मधु वी. राज, वनमंडलाधिकारी, उपवनमंडलाधिकारी अनादि बुधौलिया एवं पेंच टाइगर रिजर्व की टीम मौके पर पहुँची। घटना की गंभीरता और बाघ की स्थिति को देखते हुए फ़ील्ड निरीक्षण किया गया।
सख्ती से SOP के अनुसार मूल्यांकन के बाद यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया कि—
बाघ को ट्रैंकुलाइज नहीं किया जाएगा क्योंकि:
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बाघ स्वस्थ और शांत अवस्था में था,
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भीड़ नियंत्रित थी,
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आसपास जंगल का नैसर्गिक कॉरिडोर मौजूद था,
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अनावश्यक हस्तक्षेप उसकी आक्रामकता बढ़ा सकता था।
यह निर्णय साबित करता है कि वन विभाग की प्राथमिकता “वन्यप्राणि को न्यूनतम तनाव, मानव को पूर्ण सुरक्षा” होनी चाहिए—और यहाँ बिल्कुल वैसा ही किया गया।
ग्रामीणों को जागरूक किया गया — जनसहयोग बना रक्षा कवच
प्रशासन ने आसपास के गांवों में मुनादी कराई, लोगों से अपील की गई कि वे—
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घरों से बाहर न निकलें
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मवेशियों को बाँधकर रखें
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समूह में खेतों की ओर न जाएँ
यह जनजागरूकता ही थी जिससे रात भर स्थिति पूरी तरह नियंत्रित रही।
बाघ सुरक्षित जंगल लौटा — मानव और वन्यजीव दोनों सुरक्षित
25 नवंबर की सुबह 6:30 बजे बाघ की मूवमेंट का ट्रेल स्पष्ट रूप से मिला— वह रात में खेत छोड़कर प्राकृतिक वन की ओर लौट गया।
डॉग स्क्वॉड ने भी पुष्टि की कि बाघ ने शांतिपूर्वक जंगल का रास्ता पकड़ लिया।
यह परिणाम बताता है कि
✔ समय पर कार्रवाई
✔ वैज्ञानिक निर्णय
✔ लोगों का सहयोग
✔ और पर्यावरणीय संतुलन के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण , मिलकर किस तरह एक संभावित दुर्घटना को टाला जा सकता है।
इस घटना का पर्यावरणीय संदेश —
मानव बसावट और वन्यजीवों के बीच संतुलन ही भविष्य की कुंजी है**
मऊ की यह घटना हमें याद दिलाती है कि—
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जंगल सिकुड़ रहे हैं
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कॉरिडोर बाधित हो रहे हैं
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और वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास से बाहर आने को मजबूर हो रहे हैं
लेकिन साथ ही यह भी सीख देती है कि
सही प्रबंधन, वैज्ञानिक सोच और जनसहयोग के साथ
मानव और वन्यजीव दोनों सुरक्षित रह सकते हैं।
इस पूरे संचालन ने साबित किया कि— “मानव सुरक्षा और प्रकृति संरक्षण एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।”
और जब प्रशासन, वन विभाग और समाज एक दिशा में काम करें,
तो संघर्ष नहीं—सहअस्तित्व संभव होता है।