छिंदवाड़ा—अब भाजपा की रणनीति का अलग “युद्धक्षेत्र”
राजनैतिक विश्लेषण : राकेश प्रजापति
बिहार चुनाव में सफलता के बाद मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने संगठन को नए ढांचे में ढालते हुए तीन नए संभागों का गठन कर दिया है। 13 नए संभागीय प्रभारियों की नियुक्ति के साथ यह पुनर्गठन सिर्फ संगठनात्मक कवायद नहीं माना जा रहा—बल्कि 2028 विधानसभा और 2029 लोकसभा चुनावों की लंबी रणनीति का पहला संकेत माना जा रहा है।
सबसे बड़ा बदलाव—छिंदवाड़ा अब स्वतंत्र संभाग
छिंदवाड़ा को जबलपुर से अलग कर एक स्वतंत्र संभाग का दर्जा देना राजनीतिक हलकों में सबसे ज्यादा चर्चा का कारण है। इसका मतलब साफ है— भाजपा ने कमलनाथ के गढ़ को अब अलग “फोकस ज़ोन” बनाकर मिशन मोड में काम शुरू कर दिया है।
यह जिम्मेदारी राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी को सौंपी गई है, जिन्हें संगठन का सशक्त और सक्रिय चेहरा माना जाता है।
कमलनाथ—छिंदवाड़ा की पहचान, और पहचान से आगे…
छिंदवाड़ा जिले का नाम बीते चार दशकों से कमलनाथ की पहचान के साथ ही जुड़ा है। 1980 में पहली बार यहां से सांसद बनने के बाद कमलनाथ ने छिंदवाड़ा को राष्ट्रीय राजनीति में एक अलग पहचान दिलाई।
औद्योगिक विकास से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण और आदिवासी क्षेत्रों में आधारभूत बदलाव—कमलनाथ के कार्यकाल ने धीरे-धीरे इस जिले को उनका अभेद्य गढ़ बना दिया।
1996 को अपवाद मानें तो कमलनाथ को इस जिले में कभी कोई हरा नहीं सका। यहां कांग्रेस ने लगातार अपनी पकड़ बनाए रखी—जब तक कि 2024 लोकसभा में नकुलनाथ को हार का सामना नहीं करना पड़ा।
इसके बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि—
“छिंदवाड़ा में कमलनाथ की जड़ें आज भी बेहद गहरी हैं, और उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता कम नहीं हुई है।”
यही वह कारण है जिसने भाजपा को 2028 के चुनावों के लिए अभी से शतरंज बिछाने पर मजबूर किया है। पार्टी को डर है कि यदि समय रहते पैठ नहीं बनाई गई, तो कमलनाथ फिर से जिले में अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं।
छिंदवाड़ा पर भाजपा का फोकस—चुनावी मजबूरी या रणनीतिक चाल ?
भाजपा की रणनीति अब स्पष्ट दिखने लगी है—
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छिंदवाड़ा को अलग संभाग बनाना,
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एक मजबूत सांसद को प्रभारी बनाना,
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जमीनी कैडर में नए चेहरे उतारना,
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संगठन को बूथ स्तर पर पुनर्गठित करना, ये सभी कदम यह संकेत देते हैं कि पार्टी छिंदवाड़ा में 2024 की ऐतिहासिक जीत को स्थायी बढ़त में बदलने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक जानकार इसे “कमलनाथ प्रभाव” को कमजोर करने की संगठित कवायद बता रहे हैं।
मूल संदेश स्पष्ट—2028 की तैयारी, कमलनाथ की वापसी रोकना
भाजपा को अच्छी तरह पता है कि छिंदवाड़ा सिर्फ एक जिला नहीं, बल्कि एक “राजनीतिक प्रतीक” है।
यहां जीत का मतलब—कमलनाथ के राजनीतिक वर्चस्व पर सीधी चोट।
और हार का मतलब—मध्य प्रदेश में कांग्रेस को नया ऑक्सीजन।
यही वजह है कि पार्टी ने यहां किसी भी संभावित “कमलनाथ पुनरुत्थान” को रोकने के लिए अभी से मोर्चाबंदी शुरू कर दी है।
निष्कर्ष : छिंदवाड़ा को अलग संभाग का दर्जा देना महज संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि भाजपा की दीर्घकालिक चुनावी रणनीति का निर्णायक कदम है। कमलनाथ के प्रभाव को कम करने और उनकी संभावित वापसी को रोकने के लिए भाजपा ने इस जिले को एक अलग युद्धक्षेत्र घोषित कर दिया है।
आने वाले समय में छिंदवाड़ा की राजनीति न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय राजनीतिक समीकरणों पर भी असर डाल सकती है।