कविता पोस्टरों की गूंज के बाद खालीपन में डूबा कलाकार ध्रुव — रंगों और जिंदगी की दोराहे पर ठहरा एक सृजनधर्मी मन
✍️ त्वरित टिप्पणी : राकेश प्रजापति
छिंदवाड़ा // म. प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन, छिंदवाड़ा जिला इकाई द्वारा आयोजित दो दिवसीय कविता पोस्टर प्रदर्शनी की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि उसके पश्चात कलाकार ध्रुव की आंखों में एक गहरी खामोशी उतर आई।
58 कविता पोस्टरों से सजी प्रदर्शनी में जहां छात्राओं, प्राध्यापकों और साहित्यप्रेमियों ने उनकी कला की मुक्तकंठ से प्रशंसा की, वहीं प्रदर्शनी के समापन के बाद सभाकक्ष में पसरे सन्नाटे के बीच कलाकार ध्रुव खाली दीवारों को निहारते खड़े रह गए — जैसे रंगों से सजी जिंदगी अचानक फीकी पड़ गई हो।
प्रदर्शनी की दीवारों से कविता और चित्र के मेल का जो समृद्ध स्वर फूटा था, वह अब कमरे के कोनों में गूंजता हुआ कलाकार के मन में उतर आया है। रंगों की खाली शीशियां, फटा हुआ कैनवास और सूखी तूलिका मानो यह कह रही हों — “अब फिर से किसी नए मिलन की प्रतीक्षा है।”
ध्रुव का मन अगली प्रदर्शनी के विषय और सोच में उलझा हुआ है। वे जानते हैं कि कल्पनाओं और सृजन के इस मिलन को फिर से जीवंत करने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना होगा। मुफलिसी और संघर्ष के बीच जीते इस कलाकार की पीड़ा यही है कि रंगों को जीवंत बनाए रखने के लिए अर्थ की भी आवश्यकता होती है —
“बिना अर्थ के न जीवन चल सकता है, न ही चित्र जन्म ले सकता है।”
देश के विभिन्न महानगरों में अपनी कला का प्रदर्शन कर सराहना बटोर चुके ध्रुव ने छिंदवाड़ा का नाम राष्ट्रीय मंचों पर रोशन किया है। पर विडंबना यह है कि अपने ही शहर में उन्हें वह सम्मान, प्रोत्साहन और स्नेह नहीं मिला जिसके वे सच्चे हकदार हैं।
प्रदर्शनी में मिली वाहवाही से मन तो पुलकित हुआ, पर जेहन में एक टीस भी रह गई — कि तारीफों के परितोषक से न तो जिंदगी चलती है और न ही कैनवास पर रंग चढ़ते हैं।
अब कलाकार ध्रुव अपनी अगली कला यात्रा की तैयारी में हैं —जहां वे शायद फिर से अपने भीतर के उजालों और अंधेरों को रंगों में ढालेंगे, और कविता को फिर से चित्र में बोलने देंगे।