गुरु-शिष्य परंपरा पर कलंक ? , स्कूल प्राचार्य पर छात्राओं से अशोभनीय व्यवहार के आरोप, अब जांच की मांग तेज
छिंदवाड़ा // शिक्षा के पवित्र मंदिर और गुरु-शिष्य के मर्यादित संबंधों को शर्मसार कर देने वाला मामला प्रकाश में आया है। जिले के तामिया विकासखंड के एकीकृत शासकीय माध्यमिक शाला पांडूपिपरिया के प्राचार्य पर स्कूल की छात्राओं से अशोभनीय आचरण और अनुचित हरकतें करने के गंभीर आरोप लगे हैं। छात्राओं एवं उनके अभिभावकों का कहना है कि प्राचार्य शिक्षण के दौरान एवं स्कूल परिसर में उनका मानसिक उत्पीड़न करता है, जिससे बच्चियाँ भय और असुरक्षा के माहौल में पढ़ने को मजबूर हैं।
“बेटियों के समान छात्राएं… फिर यह व्यवहार क्यों ?”
समाज में शिक्षक को माता-पिता से भी बढ़कर सम्मान दिया जाता है। कहा जाता है गुरु बिन ज्ञान नहीं, और गुरु का स्थान पूजनीय है — परंतु वासना, सत्ता और पद के अहंकार में जब कोई शिक्षक अपनी मर्यादा भूल जाए, तो यह केवल एक बच्ची का नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के विश्वास का हनन होता है।
प्राचार्य ने आरोपों को बताया निराधार
मामले में आरोपित प्राचार्य कोमल प्रसाद कोरी ने स्वयं को निर्दोष बताते हुए कहा है—
“स्कूल में अन्य शिक्षक भी कार्यरत हैं, उन्हें मेरे व्यवहार पर कोई आपत्ति नहीं है। शिकायत करने वाली छात्राए और उसके अभिभावक निजी दुर्भावना से प्रेरित हैं। , वहीं असल शिकायतकर्ता स्वास्थ्य कारणों के चलते स्कूल में अटैच है उन्हें स्कूल में अनुशासन और उपस्थिति को लेकर आपत्ति रहती है।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि बच्चियों को उकसाकर उनके खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है।
लेकिन सवाल अभी भी खड़े हैं !
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क्या स्कूल की लड़कियों और अभिभावकों की पीड़ा को यूँ ही अनदेखा किया जा सकता है ?
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क्या यह आरोप वाकई किसी व्यक्तिगत, सामाजिक या संस्थागत द्वेष की उपज हैं ?
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क्या प्राचार्य का आचरण शिक्षक धर्म की मर्यादा के अनुरूप है ?
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और अगर यह आरोप सच साबित होते हैं तो क्या केवल निलंबन काफी होगा ?
प्रशासन को चाहिए निष्पक्ष और गहन जांच
यह मामला सिर्फ शिकायत या सफाई का नहीं है — यह बच्चियों की सुरक्षा और शिक्षा संस्थानों की पवित्रता का मामला है।
प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द स्वतंत्र जांच समिति गठित की जाए, जिसमें महिला अधिकारी, बाल संरक्षण समिति के सदस्य एवं शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हों।
अगर दोषी प्राचार्य पाया गया तो — कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो
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न केवल निलंबन
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बल्कि पॉक्सो एक्ट, शासन सेवा नियमों और फौजदारी धाराओं के तहत कठोर दंड दिया जाए।
और यदि शिकायत झूठी पाई जाए — तो षड्यंत्रकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज हो
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शिक्षा संस्थान की साख खराब करने,
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बच्चियों को उकसाने
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और सामाजिक तनाव फैलाने के आरोप में दंड दिया जाए।
आखिर बात इतनी सी है—
या तो प्राचार्य दोषी है,
या फिर यह किसी व्यक्ति विशेष द्वारा रचा गया षड्यंत्र।
दोनों ही स्थिति में सत्य उजागर होना आवश्यक है।
क्योंकि मामला सिर्फ आरोप का नहीं,
समाज के नैतिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण का है।