मप्र की शिक्षा व्यवस्था पर संकट :15 हजार शिक्षकों को SIR में झोंका ..

मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर संकट! 15 हजार शिक्षकों को SIR में झोंका, उमंग सिंघार ने घेरी सरकार

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की शुरुआत ने एक बड़ा राजनीतिक और शैक्षणिक विवाद खड़ा कर दिया है। 4 नवंबर से प्रदेश के 65 हज़ार BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर वोटर्स की जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं, लेकिन इन BLO में 15 हज़ार से ज़्यादा शिक्षकों को शामिल किए जाने पर विपक्ष ने सरकार पर सीधा हमला बोल दिया है।

मप्र सरकार में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कड़ा रुख अपनाते हुए आरोप लगाया है कि यह फैसला प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को ‘ठप’ करने जैसा है और यह सीधे-सीधे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है।

शिक्षक कमी से जूझते स्कूल, पढ़ाई हुई ठप

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने आंकड़े बताते हुए सरकार के फैसले पर सवाल उठाए:

  • सिंगल टीचर स्कूल खतरे में: प्रदेश में 6 हज़ार से ज़्यादा स्कूल ऐसे हैं जो मात्र एक या दो शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं। यदि इन स्कूलों से भी शिक्षकों को SIR की ड्यूटी में लगा दिया गया, तो स्कूलों में ताले लगने जैसी स्थिति बन सकती है।
  • प्रभारी प्राचार्य तक ड्यूटी पर: कई जगहों पर तो प्राचार्य और प्रभारी प्राचार्य तक को SIR की ड्यूटी में शामिल कर लिया गया है, जिससे स्कूल का प्रशासनिक और शैक्षणिक कार्य पूरी तरह प्रभावित हो रहा है।

सबसे गंभीर चिंता बोर्ड परीक्षाओं को लेकर है। उमंग सिंघार ने कहा कि:

  • साइंस-मैथ्स शिक्षक भी चुनावी काम में: 12वीं कक्षा के गणित और विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी SIR में शामिल किया गया है, जबकि नियमों के अनुसार इन्हें चुनावी कार्यों से दूर रखा जाना चाहिए।
  • परीक्षा और प्रकाशन की तारीख एक: SIR का अंतिम प्रकाशन 7 फरवरी 2026 को होना है, और यह संयोग देखिए कि उसी दिन एमपी बोर्ड की परीक्षाएं भी शुरू हो रही हैं। इसका सीधा अर्थ है कि परीक्षा के ऐन वक्त तक शिक्षकों का पूरा ध्यान चुनावी कार्यों पर लगा रहेगा, जिसका सीधा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ेगा।

नीमच में निलंबन, शिक्षकों में भय का माहौल

SIR की ड्यूटी को लेकर शिक्षकों पर दबाव भी बढ़ गया है। नीमच जिले में BLO बनाए गए पाँच शिक्षकों को निर्वाचन कार्य में ‘लापरवाही’ का दोषी मानते हुए तुरंत निलंबित कर दिया गया है।

इस घटना के बाद प्रदेश के शिक्षक संगठनों में भारी नाराजगी है और एक डर का माहौल पैदा हो गया है। शिक्षकों का कहना है कि एक तरफ तो वे बच्चों को पढ़ाएं और दूसरी तरफ अनिवार्य चुनावी ड्यूटी करें, ऐसे में दोनों मोर्चों पर न्याय करना असंभव है।

उमंग सिंघार ने स्पष्ट सवाल किया है कि जब प्रदेश पहले ही शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है, तो स्कूलों को कमजोर करने वाला और बच्चों का भविष्य दांव पर लगाने वाला यह फैसला आखिर किसके हित में लिया गया है ? यह कार्रवाई स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सरकार की प्राथमिकता में शिक्षा पीछे और चुनावी कार्य आगे है।