पत्रकारिता के कोहिनूर मुकुंद सोनी नहीं रहे ..

सच्चाई की कलम खामोश हुई: पत्रकारिता के कोहिनूर मुकुंद सोनी नहीं रहे

✍️ “सच लिखने वाले कभी मरते नहीं, वे समाज की आत्मा में बस जाते हैं…”

छिंदवाड़ा।
पत्रकारिता जगत के लिए आज का दिन बेहद भारी है।
जिले के वरिष्ठ पत्रकार मुकुंद सोनी का कल रात नागपुर में इलाज के दौरान निधन हो गया।
वे लंबे समय से कैंसर से संघर्ष कर रहे थे, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
आखिरी वक्त तक वे कलम और कर्तव्य के प्रति समर्पित रहे।

उनका जाना न सिर्फ छिंदवाड़ा, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के लिए एक अपूर्णीय क्षति है।

तीन दशक की निष्पक्ष पत्रकारिता का सफर

मुकुंद सोनी ने लगभग तीस सालों से अधिक समय तक पत्रकारिता को अपना जीवन समर्पित किया।
उन्होंने कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में कार्य किया और सैकड़ों खोजपरक खबरें लिखीं —
खबरें जो केवल “सूचना” नहीं थीं, बल्कि “बदलाव का माध्यम” बनीं।

उनकी रिपोर्टों ने कई बार प्रशासन को झकझोरा, भ्रष्टाचार को उजागर किया और आम जनता की आवाज़ को मंच दिया।
वे उन विरले पत्रकारों में से थे जो न सत्ता के आगे झुके, न विज्ञापनों के आगे।
उनकी कलम का एक ही उद्देश्य था — सच को जनता तक पहुंचाना।

पत्रकारिता उनके लिए पेशा नहीं, एक तपस्या थी

आज जब पत्रकारिता अक्सर चमक-दमक और प्रभाव के चश्मे से देखी जाती है,
मुकुंद सोनी ने इसे जनसेवा का सबसे ईमानदार माध्यम बनाए रखा।
वे न कभी किसी राजनीतिक खेमें के साथ जुड़े,
न कभी अपने विचारों की स्वतंत्रता पर समझौता किया।

उनका जीवन बताता है कि सच्चा पत्रकार वही है
जो कठिन रास्ता चुनता है, लेकिन सच से मुंह नहीं मोड़ता।

“खबरों में नहीं, खबरों के पीछे की सच्चाई में यकीन रखते थे वे”

मुकुंद सोनी उन पत्रकारों में से थे
जो यह मानते थे कि पत्रकारिता का काम सिर्फ “घटना बताना” नहीं,
बल्कि “उसके पीछे का सच उजागर करना” है।

उनकी हर खबर एक सवाल उठाती थी,
हर शब्द में जनहित की धड़कन होती थी।
वे पत्रकारिता में निष्पक्षता के प्रतीक थे —
न पक्षपात, न समझौता — सिर्फ और सिर्फ सच।

सादगी, संवेदनशीलता और सच्चाई का संगम

वे जीवन में जितने मजबूत थे, उतने ही विनम्र भी।
हर साथी के लिए प्रेरणास्रोत, हर युवा पत्रकार के लिए मार्गदर्शक।
वे कहते थे —

“पत्रकारिता का धर्म है सच्चाई — बाकी सब दिखावा है।”

उनका जीवन इस विचार का मूर्त रूप था।
वे कभी चर्चाओं में नहीं रहे, लेकिन उनके काम ने हमेशा चर्चा पैदा की।

एक खुली किताब की तरह था उनका जीवन

मुकुंद सोनी का जीवन पारदर्शिता और सादगी से भरा था।
वे जो सोचते थे, वही कहते थे,
और जो कहते थे, उसी पर जीते थे।

उनकी कलम ने उन आवाज़ों को भी जगह दी,
जिन्हें समाज ने अक्सर नज़रअंदाज़ किया।
वे पत्रकारिता के उस दौर के सिपाही थे
जहां खबरें बिकती नहीं थीं —
लिखी जाती थीं, जानी जाती थीं, और असर डालती थीं।

अंतिम विदाई, पर अमर रहेगी यादें

आज जब मुकुंद सोनी हमारे बीच नहीं हैं,
तो यह एहसास भीतर तक झकझोर देता है।
लेकिन वे हर उस कलम में जिंदा रहेंगे जो सच्चाई के लिए उठेगी,
हर उस खबर में जो जनता के हक की बात करेगी।

उनकी स्याही शायद सूख गई हो,
लेकिन उनके विचार अब भी ताज़ा हैं —
हर पत्रकार के भीतर, हर पाठक की चेतना में।

श्रद्धांजलि संदेश ..

“पत्रकारिता का एक दीपक बुझा नहीं है,
वह अब हज़ारों कलमों में जल रहा है।”

ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।
उनके परिवार, साथियों और शुभचिंतकों को यह दुःख सहने की शक्ति मिले।

मुकुंद सोनी अब इस दुनिया में नहीं हैं,
लेकिन उनकी पत्रकारिता की आत्मा
हर सच्चे पत्रकार के शब्दों में सदा जीवित रहेगी।

                                                      साथी राकेश प्रजापति