गोवर्धन पूजा: गोबर के पहाड़ से प्रकृति संरक्षण का विराट संदेश—कृष्ण की शिक्षा को समझने का समय
दीपोत्सव के चौथे दिन, आज पूरे देश के साथ-साथ छिंदवाड़ा जिले में भी गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण द्वारा आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व शुरू की गई एक महत्वपूर्ण परंपरा का प्रतीक है, जिसका गूढ़ संदेश आज के पर्यावरण संकट में और भी प्रासंगिक हो जाता है।
पौराणिक कथा और यादवों का उल्लास:
आज के दिन, ग्रामवासी गोबर का प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। भोग चढ़ाया जाता है और गायों तथा बैलों को सजाया जाता है। यादव समुदाय इस दिन विशेष नृत्य और खुशियों के साथ उस ऐतिहासिक क्षण को याद करता है जब भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद कराकर गोवर्धन पर्वत की पूजा का आह्वान किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्र के कुपित होकर मूसलाधार वर्षा करने पर, भगवान कृष्ण ने अपनी तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ग्रामवासियों और गोधन की रक्षा की थी। यह अद्भुत लीला इंद्र के अभिमान को तोड़ने वाली थी, जिसके बाद इंद्र ने स्वयं पराजित होकर कृष्ण से क्षमा मांगी थी।
कृष्ण का वास्तविक संदेश: संरक्षण ही सच्ची पूजा
वरिष्ठ चिंतकों और जानकारों का मत है कि हम महापुरुषों की शिक्षाओं को केवल प्रतीकात्मक रूप में लेते हैं, जबकि उसका वास्तविक ज्ञान अनमोल है। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजा के माध्यम से स्पष्ट संदेश दिया था: “हमारे गोधन के लिए पर्वत ही सबसे अधिक उपयोगी और आश्रय दाता है, इसलिए इसकी पूजा—अर्थात संरक्षण—करना चाहिए।”
आज के संदर्भ में, कृष्ण की यह शिक्षा है कि हर गाँव के निकट स्थित पहाड़ी या टीला एक ‘गोवर्धन पर्वत’ है, जिसकी पूजा का अर्थ है उसे सघन वन के रूप में संरक्षित करना।
- पर्यावरण शुद्धता: सघन वन गाँव के पर्यावरण को शुद्ध करेंगे।
- पशुधन: पशुओं के लिए सालभर चारा मिलेगा।
- जल संरक्षण: सबसे महत्वपूर्ण—वर्षा का जल पहाड़ों में संचित होकर नदियों और कुंओं को वर्ष भर जल प्रदान करेगा।
यह एक ज्ञात तथ्य है कि नर्मदा नदी का 90% जल डिंडोरी और मंडला के सघन साल वनों से आता है, जो यह प्रमाणित करता है कि वन का उत्पाद ही जल है।
नीतिगत आह्वान:
यदि मध्य प्रदेश सरकार प्रत्येक गाँव में एक ‘गोवर्धन पर्वत’ को सघन वन के रूप में विकसित करने की योजना लाती है, तो यह भगवान कृष्ण की शिक्षा का वास्तविक पालन होगा। यह विचारणीय है कि हम केवल गोबर का छोटा पहाड़ बनाकर पूजते रहें, या कृष्ण के संदेश को अपनाकर हर गाँव को पेयजल, स्वच्छ वायु और स्वस्थ जीवन का उपहार दें।
कृष्ण चरित्र का व्यापक महत्व:
यह गोवर्धन लीला भगवान कृष्ण के विराट चरित्र का एक हिस्सा भर है, जिनका अवतरण द्वापर युग के अंत में हुआ था। ज्योतिषीय गणनाओं की मजबूती से लेकर महाभारत में धर्म की स्थापना हेतु अपनाई गई नीतियों तक—कृष्ण का जीवन हर पहलू पर एक गहन शिक्षा है। उनका स्पष्ट संदेश है कि अधर्मियों को नष्ट करने के लिए छल का सहारा लेना पड़े तो लेना चाहिए, ताकि धर्म बच सके।
गोवर्धन पूजा का यह पर्व हमें अपने अतीत के ज्ञान, पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्य और जीवन में सत्य व धर्म की स्थापना के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण नीति अपनाने की प्रेरणा देता है।