” मासूमों की मौत पर सियासत का खेल “
राकेश प्रजापति
छिंदवाड़ा जिले के परासिया, बड़कुही और न्यूटन और आसपास जैसे छोटे कस्बों में फैले मातम के बीच अब राजनीति अपने सबसे घटिया रूप में सामने आ गई है। जिन घरों के आंगन में मासूम बच्चों की असामयिक मौत की चीखें गूंज रही हैं, वहां अब नेताओं के काफिले और कैमरों की भीड़ है। सवाल यह है कि क्या इन आँसुओं को किसी ने सच में पोंछने की कोशिश की, या सिर्फ़ राजनीति की रोटियाँ सेंकी जा रही हैं ?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शनिवार को पीड़ित परिवारों के घर पहुँचे। उन्होंने कहा कि “ नाथ परिवार को पीड़ितों की चिंता करनी चाहिए, राजनीति नहीं।” लेकिन जनता के मन में सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बच्चों की मौत के लिए सिर्फ़ बयानबाज़ी ही काफी है ? प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था, औषधि निरीक्षण तंत्र और अस्पतालों की जवाबदेही कौन तय करेगा ?
दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सरकार को सीधे कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा —“ यह केवल दुर्घटना नहीं, सरकारी हत्या है। अगर मुख्यमंत्री में हिम्मत है तो स्वास्थ्य मंत्री को तत्काल बर्खास्त करें और पीड़ित परिवारों को कम से कम एक-एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता दें। ” पटवारी का यह बयान सत्तापक्ष के लिए असहज करने वाला जरूर है, पर कहीं न कहीं जनता के मन का दर्द भी इसी में झलकता है।
लेकिन असली शर्म की बात यह है कि सरकार के शीर्ष पर बैठे लोग अब इस त्रासदी को कांग्रेस बनाम भाजपा की सियासी लड़ाई में तब्दील कर रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव की यह कोशिश कि “ दोष कमलनाथ परिवार पर मढ़ दिया जाए ” न केवल राजनीति का पतन है बल्कि प्रशासनिक नाकामी को ढंकने का एक बेहद घटिया प्रयास भी है। जनता जानती है कि असली गुनहगार वो सिस्टम है, जिसने जहरीली दवा को बाज़ार में पहुँचने दिया, और फिर जब बच्चे मरते गए, तो सिर्फ़ रिपोर्ट और मुआवज़े की फाइलें बनती रहीं।
19 मासूम ज़िंदगियों की कीमत सिर्फ़ बयानों और आरोपों से नहीं चुकाई जा सकती।
यह सवाल अब हर मध्य प्रदेशवासी के मन में है
— क्या मासूमों की मौत की ये “राजनीतिक रिपोर्टें” कभी इंसाफ़ दिला पाएंगी,
या फिर यह हादसा भी सत्ता की मुरझाई संवेदनाओं के बीच धीरे-धीरे दफन हो जाएगा ?