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” राकेश प्रजापति “
मासूमियत का कत्ल: क्या सत्ता का ‘छत्र’ भ्रष्ट तंत्र को बचाएगा ?
कफ़ सिरप त्रासदी: प्रशासन की ‘बलि का बकरा’ नीति पर डॉक्टर भड़के, कल से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर IMA
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जहरीले ‘कोल्ड्रिफ’ कफ़ सिरप से लगभग 35 दिनों के भीतर 20मासूमों की मौत ने न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था को शर्मसार किया है, बल्कि वर्तमान भाजपा सरकार की प्राथमिकताओं पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह महज एक त्रासदी नहीं, बल्कि सरकारी संरक्षण में पल रहे भ्रष्ट तंत्र की सामूहिक हत्या है, जिसे बचाने के लिए अब घटिया राजनीति का पर्दा डाला जा रहा है।
खबरें चीख-चीख कर बता रही हैं कि सिरप में जानलेवा रसायन डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा 450 गुना से अधिक थी। यह शुद्ध रूप से जहर था, जो दवा के नाम पर बच्चों को परोसा गया। सवाल यह नहीं है कि जहर किसने दिया, बल्कि यह है कि बाज़ार में यह जहर बिक क्यों रहा था ?
जहरीले ‘कोल्ड्रिफ’ कफ़ सिरप से बच्चों की मौत के मामले ने अब एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले लिया है। जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी की गिरफ्तारी के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने , 08 अक्टूबर 2025 से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी है, जिसका केमिस्ट एसोसिएशन ने भी समर्थन किया है।
यह हड़ताल सीधे तौर पर भाजपा सरकार के भ्रष्ट तंत्र और जिला प्रशासन की घटिया राजनीति के विरुद्ध है, जिसने अपनी विभागीय विफलता को छिपाने के लिए एक डॉक्टर को बलि का बकरा बनाया है।
1. चिकित्सा सेवाओं पर ताला: डॉ. सोनी की गिरफ्तारी पर IMA का अल्टीमेटम
डॉ. प्रवीण सोनी की गिरफ्तारी के बाद IMA, IDA (इंडियन डेंटल एसोसिएशन) और फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने संयुक्त रूप से एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर प्रशासन को कड़ा संदेश दिया है।
- मूल मांग: संगठनों ने मांग की है कि डॉ. सोनी को तुरंत रिहा किया जाए और उन पर दर्ज प्राथमिकी (FIR) को निरस्त किया जाए। IMA का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन है।
- हड़ताल: IMA परासिया की कॉल पर , 08 अक्टूबर 2025 की सुबह बजे से क्षेत्र के सभी डॉक्टर अनिश्चितकालीन चिकित्सा सेवाएँ बंद कर रहे हैं। उनका साथ देते हुए कैमिस्ट एसोसिएशन ने भी दवा दुकानों को बंद रखने का फैसला लिया है, जिससे स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह ठप हो जाएंगी।
- IMA का रुख: संगठन का स्पष्ट कहना है कि दवा की गुणवत्ता जाँचने का काम डॉक्टर का नहीं, बल्कि शासन और ड्रग इंस्पेक्टर का है। यदि प्रशासन अपनी विफलता के लिए डॉक्टरों को निशाना बनाता रहेगा, तो चिकित्सकीय निर्णय लेने में भय पैदा होगा, जिससे अंततः मरीजों की देखभाल प्रभावित होगी।
2. सरकारी तंत्र की जवाबदेही से भटकाव
यह संकट पूरी तरह से सरकारी नियामक तंत्र की विफलता का परिणाम है। जहरीले सिरप को ड्रग कंट्रोल विभाग ने समय रहते इस जहर को बाज़ार से नहीं हटाया।
- भ्रष्ट तंत्र पर छत्रछाया: विपक्ष पर पलटवार करके और छोटे कर्मचारियों को गिरफ्तार करके मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार यह दर्शा रही है कि वह भ्रष्ट औषधि नियंत्रक विभाग के उच्च अधिकारियों और जहरीली दवा बनाने वाली कंपनी के मालिकों को बचाने की कोशिश कर रही है।
3. मासूमों के कत्ल पर राजनीति: किसे होगा नुकसान ?
यह बेहद दुखद है कि मासूमों की मौत को आधार बनाकर राजनीति की जा रही है। एक तरफ़ सत्ताधारी दल विपक्षी नेताओं पर पलटवार करके अपनी नाकामी छिपाने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ़, डॉक्टरों की हड़ताल से सामान्य नागरिक सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
संक्षेप में: डॉ. सोनी की गिरफ्तारी प्रशासनिक विफलता से ध्यान भटकाने का प्रयास है। IMA और केमिस्ट एसोसिएशन की हड़ताल ने इस मामले को न्यायिक लड़ाई से सार्वजनिक विरोध में बदल दिया है। अब यह सीधे तौर पर मध्य प्रदेश सरकार की संवेदनशीलता और भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की उसकी नीयत का सवाल है।
सत्ता का ‘छत्र’ और बलि का बकरा
मौजूदा नज़ाकत का तकाज़ा था कि सरकार सबसे पहले ड्रग कंट्रोल विभाग के उन निकम्मे और भ्रष्ट अधिकारियों पर कठोरतम कार्रवाई करती, जिनके ‘छत्रछाया’ में यह नकली दवा बाज़ार में आई। यह औषधि नियंत्रक (Drug Controller) की सीधी ज़िम्मेदारी थी कि वे दवाओं की गुणवत्ता की जाँच करते। उनकी घोर उपेक्षा ही इन मौतों का मूल कारण है।
लेकिन, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने क्या किया ?
- छोटे मोहरों पर कार्रवाई: सरकार ने अपनी विफलता से ध्यान हटाने के लिए डॉ. प्रवीण सोनी जैसे स्थानीय शिशु रोग विशेषज्ञ को गिरफ्तार कर लिया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) का विरोध जायज़ है—एक डॉक्टर, जिसके पास बाज़ार में बिक रही वैध दवा की जाँच का अधिकार नहीं है, उसे मुख्य आरोपी बनाकर पेश किया गया। यह कदम स्पष्ट रूप से प्रशासनिक विफलता को ढंकने की घटिया राजनीति है।
- दवा माफिया को मौन समर्थन: जहरीली दवा बनाने वाली कंपनी और उसके मालिकों पर तुरंत और निर्णायक कार्रवाई करने के बजाय, राजनीतिक गलियारों में खामोशी छाई रही। भ्रष्ट तंत्र को पता है कि जब तक सत्ता का ‘छत्र’ उन पर है, तब तक वे बच निकलेंगे।
- संवेदनशीलता का अभाव: एक मासूम बच्ची के दफनाए गए शव को कब्र से निकलवाकर पोस्टमार्टम कराना—यह कार्रवाई सिर्फ़ अमानवीय नहीं, बल्कि परिजनों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला कदम था। यह बताता है कि सरकार और उसका प्रशासन जनता के प्रति कितना असंवेदनशील और अक्षम है।
विपक्ष पर पलटवार की सस्ती राजनीति
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब बच्चों की मौत पर शोक और दोषियों के विरुद्ध न्याय की माँग होनी चाहिए, तब सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए विपक्षी कांग्रेस पर पलटवार करने की सस्ती राजनीति कर रही है। इस त्रासदी को ‘राजनीतिक साज़िश’ बताना—यह दिखाता है कि सत्ता के लिए मानवीय संवेदना और न्यायिक जवाबदेही का कोई महत्व नहीं है।
सीधा सवाल : क्या मध्य प्रदेश की सरकार को यह मंज़ूर है कि ज़हरीली दवाओं का उत्पादन करने वाला माफिया खुलेआम सरकारी तंत्र की छत्रछाया में फलता-फूलता रहे ? क्या सत्ता अपनी भ्रष्ट राजनीति को बचाने के लिए मासूमों के खून पर पर्दा डालना चाहती है ?
इस मामले में केवल दवा पर प्रतिबंध लगाना काफ़ी नहीं है। मुख्यमंत्री को मौजूदा नज़ाकत को समझना होगा और राजनीतिक बचाव के हथकंडों को छोड़कर, तत्काल प्रभाव से औषधि नियंत्रक विभाग के दोषी उच्च अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करना होगा। जब तक भ्रष्ट तंत्र की रीढ़ नहीं तोड़ी जाएगी, तब तक डॉ. सोनी जैसे छोटे मोहरे बलि का बकरा बनते रहेंगे और असली हत्यारे, सत्ता के ‘छत्र’ के नीचे चैन की नींद सोते रहेंगे। इन मासूमों की मुस्कानों के हत्यारों को तलाशना, नहीं, बल्कि उन्हें सज़ा दिलाना, इस सरकार की पहली और अंतिम ज़िम्मेदारी है।