प्रशासनिक ‘विफलता’ पर फूटा IMA का गुस्सा ..

कफ़ सिरप त्रासदी : भाग दो 

प्रशासनिक ‘विफलता’ पर फूटा IMA का गुस्सा, डॉ. सोनी की गिरफ्तारी को बताया सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन का उल्लंघन

MP के छिंदवाड़ा/परासिया क्षेत्र में जहरीले ‘कोल्ड्रिफ’ कफ़ सिरप से बच्चों की मौत के हृदय विदारक मामले में नया और विस्फोटक मोड़ आ गया है। जहाँ एक तरफ़ जिला प्रशासन पर अपनी विफलता छिपाने के लिए डॉक्टर को ‘बलि का बकरा’ बनाने का आरोप लगा है, वहीं दूसरी तरफ़, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA), इंडियन डेंटल एसोसिएशन (IDA) और दवा विक्रेता संघ ने एकजुट होकर डॉक्टर की गिरफ्तारी के विरोध में चिकित्सा सेवाएँ ठप करने की चेतावनी दी है।

1. IMA का कड़ा रुख: गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन

स्थानीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को 04 अक्टूबर 2025 की रात को कफ़ सिरप के प्रतिकूल प्रभाव के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी पर विरोध जताते हुए, IMA, IDA और फार्मासिस्ट एसोसिएशन, परासिया ने एसडीएम को एक संयुक्त ज्ञापन सौंपा है, जिसमें साफ कहा गया है कि:

  • गिरफ्तारी अवैधानिक: डॉ. सोनी की गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार गलत है, जो सामान्य मामलों में चिकित्सक की तत्काल गिरफ्तारी को प्रतिबंधित करते हैं।
  • दोष प्रशासन का: IMA का स्पष्ट कहना है कि दवा के अमानक (Sub-standard) या जहरीले होने की कोई खबर चिकित्सकों को नहीं होती। यह सुनिश्चित करना शासन और दवा निरीक्षक (Drug Inspector) का काम है कि वे दवाओं की गुणवत्ता की जाँच करें और अमानक पाए जाने पर डॉक्टरों को सूचित करें
  • चिकित्सकीय निर्णय पर असर: संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि डॉक्टरों को इस प्रकार की घटनाओं में बार-बार घसीटा गया, तो इससे चिकित्सकीय निर्णय लेने में भय और झिझक उत्पन्न होगी, जिसका सीधा असर मरीजों की देखभाल पर पड़ेगा।

ज्ञापन में स्पष्ट माँग की गई है कि डॉ. प्रवीण सोनी को तुरंत रिहा किया जाए और उनके विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी (FIR) को निरस्त किया जाए।

2. स्वास्थ्य सेवाएँ बंद करने की चेतावनी

संगठनों ने जिला प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि 07 अक्टूबर 2025 दिन मंगलवार सुबह 8:00 बजे तक डॉ. प्रवीण सोनी को रिहा नहीं किया जाता है, तो IMA, परासिया द्वारा क्षेत्र की अनिश्चितकालीन चिकित्सा सेवाएँ बंद कर दी जाएँगी। इस दौरान सिर्फ़ प्रशासन से अनुमोदित कानूनी व्यवस्था ही लागू रहेगी।

3. ‘बलि का बकरा’ बनाम नियामक तंत्र की विफलता

IMA का ज्ञापन दोनों ही एक ही महत्वपूर्ण प्रश्न की ओर इशारा करते हैं: असली दोषी कौन ?

जवाबदेही का पक्ष      IMA का निष्कर्ष कानूनी पहलू
डॉक्टर प्रवीण सोनी लापरवाही का आरोप; लेकिन IMA का कहना है कि उन्हें दवा के जहरीले होने की जानकारी नहीं थी। गिरफ्तारी प्रशासनिक दबाव में। IPC 304A (लापरवाही से मौत) तभी सिद्ध जब घोर उपेक्षा साबित हो।
सरकारी तंत्र (ड्रग कंट्रोल) घोर विफलता। अमानक सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा 480 गुना ज्यादा थी। यह दवा नियंत्रक की आँखों के सामने बाजार में बिकती रही। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत ड्रग इंस्पेक्टर और संबंधित अधिकारियों पर कर्तव्यों की उपेक्षा का गंभीर मामला बनता है।
दवा कंपनी मुख्य दोषी। जहरीली दवा का उत्पादन और बिक्री। IPC 304 (गैर-इरादतन हत्या) और ड्रग्स एक्ट की धारा 27(a) के तहत कठोरतम कार्रवाई अपेक्षित।

डॉ. सोनी की गिरफ्तारी से यह संदेश जाता है कि जिला प्रशासन बच्चों की मौत के लिए एक आसान और त्वरित समाधान पेश करना चाहता है, जबकि नियामक तंत्र (ड्रग कंट्रोल विभाग) और जहरीली दवा बनाने वाली कंपनी के उच्च अधिकारियों पर कार्रवाई करने से बच रहा है, या देर कर रहा है।

4. धार्मिक भावनाएं आहत करने का मलाल 

इस पूरे मामले में एक अन्य संवेदनशीलता भी जुड़ी है, जहाँ जिला प्रशासन ने अंतिम संस्कार किए गए एक बच्ची के शव को कब्र से निकालकर पोस्टमार्टम करवाया। इस असंवेदनशील और विलंबित कार्रवाई ने भी परिजनों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और प्रशासन के गैर-पेशेवर रवैये को उजागर किया है।

अंतिम निष्कर्ष: यह मामला केवल एक चिकित्सा त्रासदी नहीं, बल्कि प्रशासनिक विफलता, नियामक निष्क्रियता और नागरिक अधिकारों के उल्लंघन का एक गंभीर उदाहरण बन गया है, जहाँ न्याय की गुहार लगाने वाले मजबूर हैं।

विश्लेषण : राकेश प्रजापति