रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।गीता की प्रति मूर्ति बना वह मनुज स्वयं सुख पाता, पार सवत छू देता जिसको वह कंचन बन जाता।
भाव अनन्त अथाह समुद्र सरीखे हैं गीता में, रत्न राशियाँ कितनी ही हैं छिपी हुई गीता में।
ज्ञान, कर्म अरु योग क्षेत्र के मर्म छुपे गीता में, मुक्तामणि ‘पा’ जाता गहरे जाता जो गीता में।
जीवन का कर्तव्य मनुज को गीता ही दर्शाती, धर्म कर्म की उलझी गुत्थी गीता ही सुलझाती।
गीता ही करती है विभ्रम दूर भ्रमित प्राणी का, गीता ही है ज्ञान श्रेष्ठतम शुचितम जग ज्ञानी का।
इसकी शरण शरण है प्रभु की, महिमामय वरदानी, करत है, पुरुषार्थ पूर्ण जीवन में जग का प्राणी।
सब धर्मों को राह धर्म की गीता ही बतलाती, परम सच्चिदानन्द प्रभु से गीता ही मिलवाती।
डॉ. रमेशकुमार बुधौलिया
प्रिय पाठको
आपके प्यार और विश्वास के चलते हमे यह हौंसला मिला की हमने १४ जनवरी २०२५ से निरंतर आज तक १४५ कड़ियों में लगभग (६ माह ) “ श्रीमद भगवत गीता के श्रीकृष्णार्जुन संवाद “ जैसे महानतम ग्रन्थ आप तक पहुचाने का साहस किया है !
हमारे इस प्रयास पर सदैव आपका प्यार और पीठ पर शाबाशी की थाप ने स्नेह लेप लगाने का काम किया है ! इसके लिए हम आपके आभारी है और दिली इच्छा है की आपका प्यार इसी तरह हमारे हौंसलों को बुलंद करता रहेगा ,ताकि हम आध्यात्म के धरातल पर किसी और महानतम ग्रन्थ की यात्रा आपकी अंगुली पकड़ कर पूरी कर सकें !
धन्यवाद
राकेश प्रजापति