श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 133 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 133 वी कड़ी.. 

अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष-सन्यास योग

वह सात्विक ज्ञान मनुज जिससे, अविभाज्य तत्व सबमें देखे,

बसती हे परा-प्रकृति सब में, घट घटवासी प्रभु को लेखे।

नानाविध नाना जीव रहे, नाना स्वरूप उनके विभिन्न,

सब जीवों में पर बसती है, देखे वह प्रभु सत्ता अनन्य।-20

वह ज्ञान मनुज जिसके द्वारा देखे संसार विविध सारा,

देहों में वह देखे विभिन्न, जीवों का विविध रूप सारा।

वह नहीं चेतना पर शरीर, देखे, सब कुछ उसकों समझे,

है ज्ञान राजसी हे अर्जुन, जो पृथक न जीवात्मा समझे।-21

 

जो ज्ञान तत्व से रहित रहा, आसक्त कार्य में ही केवल,

उद्देश्य लिये लौकिक सुख का, अति तुच्छ बढ़ता बस छल बल।

पशुवत सोना खाना मैथुन, भय में जिसकी आसक्ति रही,

वह ज्ञान तामसी कहा गया जिसमें न किरण सत की उभरी।-22

 

जो शास्त्र विहित कर्तव्य उचित, आसक्ति रहित जो कर्म रहा,

कर्तापन का अभिमान नहीं, जिसमें न द्वेष या राग रहा।

जिसके द्वारा वह किया गया, उसको न कामना हो फल की,

वह सात्विक कर्म कहा जाता जिससे प्रभु में निष्ठा बढ़ती।-23

 

पर इच्छाओं की पूर्ति हेतु, जो कर्म किये जाते अर्जुन,

जिन कर्मो के संग-संग चलता, करने वाले का करता मन।

जिनको पूरा करने मनुष्य, झेला करता बहु कठिनाई,

वह कर्म राजसी कहा गया, जिसके संग हार-जीत आई।-24    क्रमशः ….