श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 128 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 128 वी कड़ी.. 

सत्रहवाँ अध्याय : श्रद्धात्रय-विभाग योग (श्रद्धा के तीन भेद)

 

विधि यज्ञ दान या तप की हो, प्रारंभ मन्त्र से की जावे,

‘ओम तत सत’ के उच्चारण से दिव्योपलब्धि बरबस आये।

क्रियायें दिव्य इन्हें अर्जुन, भव बन्धन मुक्ति हेतु करते

इसमें कोई सन्देह नहीं, पाते विभुक्ति जो जप करते।-25

 

परब्रह्म का नाम द्योतक ये, यह भक्ति योग को साध रहा,

निर्देश यज्ञ का वह करता ‘सत’ शब्द सभी को बाँध रहा।

तप दान यज्ञ सब सत्स्वरूप पुरुषोत्तम प्रभु के हेतु रहे,

वह मुक्त बन्धनों से होता, ‘ओम तत सत’ का जो जाप करें।-26

 

सम्पूर्ण यज्ञ का परम, लक्ष्य ‘ओम तत सत’ का आह्वान करे,

क्रियायें सिद्ध सभी होती, ‘ओम तत सत’ का ही गान करे।

हर भांति पूर्णता पा जाते, ‘ओम तत सत’ का कर परायण,

वह परम स्वरूप दिव्य मिलता, ‘ओम तत सत’ का जो करे वरण।-27

 

लेकिन अर्जुन श्रद्धा के बिन, रहते ये कर्म असत सारे,

श्रद्धा बिन किया यज्ञ निष्फल, है व्यर्थ दान तप व्रत सारे।

फल यज्ञ दान तप का उनको, मिलता न यहाँ इस जीवन में,

ये कर्म न उनके सफल हुये, लोकान्तर में जीवान्तर में।-28

 

॥ इति सप्तदशम अध्याय ॥