श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 112 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 112 वी कड़ी.. 

चौदहवाँ अध्याय गुणत्रय-विभाग योग (त्रिगुणमयी माया)

सतगुणी पुरुष जब देह तजे, स्वर्गदिक लोको में जाते,

पर रजोगुणी मरकर फिर से, इस मृत्युलोक में ही आते।

नरकों में गिरते जाते हैं जो तमोगुणी पुनि पुनि गिरकर

जो चाहे वह उद्धार करे, अपने गुण से ऊपर उठकर।-18

 

तीनों गुण में सब कर्म बँटे, आवर्तन गुण का है गुण मे,

जिस समय तुझे यह दीखेगा, कर्ता न रहा कोई इनमें।

अरू देखेगा परमेश्वर को, इन सभी गुणों से परे पार्थ,

मेरी है परा प्रकृति कैसी, उस क्षण होगा तू इसे प्राप्त।-19

इस जीवन में ही जीवात्मा, अमरत्व प्राप्त करता अर्जुन,

वह जन्म मृत्यु वृद्धावस्था, जग के दुःख से हो मुक्त अमन।

जब देह-जन्म के कारण ये, गुण तीन प्रकृति के वह लांघे,

अरू शुद्ध सत्व में निष्ठा हुआ, अपने में तत्व ज्ञान साधे।-20

अर्जुन उवाच :-

तब अर्जुन ने की जिज्ञासा हे प्रभो पुरुष के क्या लक्षण ?

किस तरह आचरण वह करता, जो लांघ चुका हो तीनो गुण ?

होना अतीत तीनों गुण से, किस साधन से संभव करता ?

बतलायें प्रभु वह गुणातीत, कैसे बनता, किससे बनता ?-21

श्री भगवानुवाच :-

जीवात्मा प्राकृत देहबद्ध, आधीन रहे माया-गुण के,

व्यापार सभी जग जीवन के, गुण के आश्रित होकर चलते।

हे अर्जुन पाये वह प्रकाश, अथवा प्रवृत्ति या मोह मिले,

लेकिन जो पुरुष न माया के, इन गुण से कोई द्वेष करे।-22

 

इच्छा न करे निवृत्ति हेतु रहकर उनमें ज्यों उदासीन,

कर रहे कार्य अपना सब गुण, यह समझे स्थिर मति प्रवीण।

सुख दुख में सदा समान रहे, आकर्षित हो न विकर्षित हो,

समबुद्धि रहे उसके आगे, मिट्टी पत्थर या कंचन हो।-23    क्रमशः….