श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 110 वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 110 वी कड़ी.. 

चौदहवाँ अध्याय गुणत्रय-विभाग योग (त्रिगुणमयी माया)

हे पापरहित अर्जुन उनमें, सत गुण सबसे अच्छा होता,

वह विकसित करता बुद्धि ज्ञान, जीवन जिससे सुखकर होता।

निर्मल वह मुक्त विकारों से, कर देता पुरुषों को ज्ञानी,

पर बनता बन्धन का कारण, हो जाते जन जो अभिमानी।-6

 

हे पार्थ रजोगुण काम जनित नर-नारी का है आकर्षण,

नारी का राग पुरुष के प्रति, नारी के प्रति त्यों नर का मन।

तृष्णा आसक्ति बढ़े इससे, इन्द्रियाँ तृप्त न हो पाती,

जीवात्मा कर्म सकाम करे, उसको न मुक्ति मिलने पाती।-7

 

हे पार्थ तमोगुण है ऐसा, सब जीवों को मोहित करता,

अज्ञान जनित यह गुण विशेष देहाभिमानियों में रहता।

निद्रा, प्रमाद, आलस्य उन्हें हरदम रहते घेरे अर्जुन,

विपरीत सत्वगुण के यह गुण, दुष्कर उसके कटना बंधन।-8

 

तीनो गुण है बन्धनकारी, हे अर्जुन कहा गया ऐसा,

सुख की आसक्ति रही सत में, रज में फल पाने की इच्छा।

तम में प्रमाद लाता बन्धन, अज्ञान नयन-पट पर छाता,

जो कुछ भी करता तमोगणी, वह शुभ न किसी का कर पाता।-9

ये तीनो गुण बन्धकारी सुख की आसक्ति रही सत में,

कर्मों के फल की इच्छा ही, बन्धनकारी होती रज में।

तम में प्रमाद लाता बन्धन, उद्धार न उससे हो पाये,

तीनों गुण हैं ये प्रतिद्वन्द्वी, जो प्रबल प्रमुख वह हो जाये।-10

 

हे अर्जुन कभी रजोगुण यह, सत तम को दाब प्रबल होता,

या कभी तमोगुण प्रबल हुआ, सत, रज, गुण को निर्बल करता।

या कर परास्त सबको सतगुण, जब अपनी प्रभुता को पाता,

सब द्वार इन्द्रियों के खुलते, ज्ञानोलोकित जन हो जाता।-11    क्रमशः…