श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 95वी कड़ी.. 

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की 95वी कड़ी.. 

ग्यारहवां अध्याय  : विश्वरूप-दर्शन योग (श्री भगवान का विश्वरूप)

कर युद्ध निशंक अभय होकर, मत द्रोण, भीष्म की कर चिंता,

कर्णादि, जयद्रथ, महारथी, इन सबका हूँ मैं ही हन्ता।

मैं मार चुका इनको पहिले, मन में रंचक संदेह न कर,

जीतेगा युद्ध बैरियों से, उठ अर्जुन युद्ध विजय श्रीवर।-34

संजय उवाच :-

भगवान कृष्ण ने हे राजन् अर्जुन से कहा कि युद्ध करो,

रण में विजयी तुम ही होगे शंका न करों मन में न डरों।

कंपित शरीर भयभीत हृदय, अर्जुन करके पुनि-पुनि प्रणाम

कर जोड़े गद गद वाणी से, बोला केशव हे सुख निधान।-35

अर्जुन उवाच :-

हे हृषीकेश सम्पूर्ण विश्व, सुन रहा आपका संकीर्तन,

हर्षित अनुरक्त सिद्ध प्राणी, कर रहे आपको विनत नमन।

राक्षणगण पर भयभीत हुए, दिशि दिशि में भाग रहे भगवन,

यह उचित आपके योग्य सदा, प्रभु तुमको बारम्बार नमन।-36

 

हे परमात्मन, हे आत्मदेव, ब्रह्मा से प्रथम कि आदिकर्ता,

क्या तुम्हें न नमन करें ये सब, देवों के प्रभु जग के भर्ता।

तुम हे अनन्त हे जग निवास, तुम रहे कारणों के कारण,

तुम अक्षर परम परे जग से, महिमा परमोच्च किये धारण।-37

 

हे प्रभों आप हैं आदिदेव हे पुरुष सनातन पूर्णकाम,

हैं एक मेव जग के आश्रय, विद्या वारिधि हे बल विधान।

सब कुछ के ज्ञाता आप रहे, हैं आप जानने योग्य परम,

सर्वत्र आप ही हे अनन्त हे गुणातीत हे धाम परम।-38

 

हैं आप देव परिव्याप्त वायु, हैं आप स्वयं यमराज प्रभो,

हैं अग्नि देव पावक भगवन हैं वरूण देवता आप प्रभो।

शशि, आप प्रजापति ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा के भी हैं पितृ देव,

सौ सौ हजार प्रभु नमस्कार, पुनि नमस्कार हे परम देव।-39    क्रमशः…