रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।संयमन अग्नि में हवन करें, अपनी सम्पूर्ण क्रियाओं का,
परिशुद्ध आत्म ही परम लक्ष्य, जो हैं प्रबुद्ध, उनका बनता।-27
नानाविध नाना यज्ञ रहे, जिनका योगी करते पालन,
अष्टांग योग के साधन से, जीवन उद्यत करते धारण।
स्वाध्याय वेद का करते कुछ, इसलिए कि ज्ञान उपार्जित हो,
प्रज्जवलित यज्ञ की अग्नि रहे हवि उनकी जिनमें अर्पित हो।-28
कुछ प्राणायाम परायण हो, अभ्यास योग का करते हैं,
हो सफल प्राण अपान साध-अवस्थित समाधि में होते हैं।
कुछ इन्द्रिय निग्रह करने को, आहार नियंत्रण में रखते,
वे योगी अपने प्राणों का, ज्यों हवन प्राण में ही करते।-29
ये सभी यज्ञ करने वाले, है ज्ञात यज्ञ का मर्म जिन्हें,
पाते पापों से सहज मुक्ति, यज्ञों का पुण्य प्रसाद उन्हें।
पाते हैं परम धाम शाश्वत, अपकर्मों का होता शोधन,
आत्मोन्नति नित करते जाते ब्रह्मौक्य जगाता उद्बोधन।-30
उनकी गो तृप्ति-परायणता, भव रोगों का वनती कारण,
सन्धान धर्म पथ, यज्ञों का, करता पापों का परिमार्जन,
हे अर्जुन यज्ञ न जो करते, सुखकर न रहे जीवन उनका,
भव जीवन में जब सुख न मिला, तो क्या परलोक सुधर सकता।-31 क्रमशः…