रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।अनुसरण विश्व सारा करता, उद्धारक बनते महापुरुष।-21
हे पार्थ न त्रिभुवन में मुझको, कर्तव्य रहा जिसको करना,
न पदार्थ रहा ऐसा कोई, दुष्वार कि जो मुझको मिलना।
मुझको न अभाव रहा, कोई न रही कोई आवश्यकता,
फिर भी मैं तत्पर कर्मो में, अपने जो कर्म सतत करता।-22
इसलिये कि यदि मैं सावधान, रह सका न अपने कर्मों में,
तो सजग न होंगे सब मानव, अपने कर्मों में धर्मो में।
अनुसरण करेंगे सब मेरा, मेरे ही पथ पर जायेंगे,
मेरे पीछे-पीछे होंगे, आदर्श मुझे बतलायेंगे।-23
हे पार्थ न यदि मैं कर्म करूँ, तो लोक सभी ये मिट जायें,
भर जाये वर्णसंकरों से, सब लोक शान्ति सुख घट जायें।
कारण मैं वर्ण संकरों का, तब तो हे अर्जुन बन जाऊँ,
सम्पूर्ण प्राणियों की, जग की, सुख-शान्ति विनाशक कहलाऊँ।-24
जिस तरह फलाकांक्षा को लेकर, अज्ञानी कर्म-निरत होते
वैसे ही ज्ञानी कर्म करे, जग-शिक्षा हेतु विरत होके।
अज्ञानी देखे इन्द्रिय सुख, ज्ञानी लखता प्रभु के सुख को,
अज्ञानी खुद को सुख देखे, ज्ञानी लखता जग के दुख को।-25 क्रमशः …