श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की तीसरी कड़ी ..

मध्य प्रदेश के नरसिंगपुर जिले की माटी के मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर रमेश कुमार बुधौलिया जी द्वारा रचित ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद ,धार्मिक साहित्यिक धरोहर है, जिसमे डॉक्टर साहब द्वारा श्रीमद्भगवतगीता  का भावानुवाद किया है ! श्रीमद्भगवतगीता के 700 संस्कृत श्लोकों को ‘श्रीकृष्णार्जुन संवाद में मात्र 697 विलक्ष्ण छंदों में समेटा गया है। गीता के समस्त अठारह अध्यायों का डॉ. बुधौलिया ने गहन अध्ययन करके जो काव्यात्मक प्रदेय हमें सौंपा है, वह अभूतपूर्व है। इतना प्रभावशाली काव्य-रूप बहुत कम देखने को मिलता है। जिनमें सहज-सरल तरीके से गीताजी को समझाने की सार्थक कोशिश की गई है।
इस दिशा में डॉ. बुधौलिया ने स्तुत्य कार्य किया। गीता का छंदमय हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करके वह हिंदी साहित्य को दरअसल एक धरोहर सौंप गए।
आज वह हमारे बीच डॉ. बुधोलिया सशरीर भले नहीं हैं, लेकिन उनकी यह अमर कृति योगों युगों तक हिंदी साहित्य के पाठकों को अनुप्राणित करती रहेगी ! उन्ही के द्वारा श्रीमद्भगवतगीता महाकाव्य की छंदोंमयी श्रंखला श्रीकृष्णार्जुन संवाद धारावाहिक की तीसरी कड़ी..       
            
पहला अध्याय : अर्जुन विषाद योग
इन जैसे वीर अनेक रहे, जो नित उद्यत प्राणार्पण को

कृतवर्मा शल्य जयद्रथ सम इंगित पर प्राण विसर्जन को।

कर सके कौन उनकी समता अस्त्रो शस्त्रों से सज्जित थे,

संचालक कुशल प्रहारक ये, रण कौशल कला निमज्जित ये।-9

बलवती रही सेना अपार, फिर भीष्म पिता का संरक्षण,

पैदा न हुआ ऐसा कोई, जो उनसे कर ले विजय वरण।

पाण्डव सेना का बल सीमित, संरक्षक भीम करेगा क्या?

सम्मुख लख भीष्म पितामह को, रण में कोई उतरेगा क्या।-10

 

वार्धक्य पितामह का लेकिन करता है सबको सावधान,

उरूजो जहाँ, काम अपना देखे, रण में सबका हो योगदान।

जिनका सविशेष महत्व सभी, वे क्षेत्र सामरिक रक्षित हो

सबका सहयोग मिले उनको, वे सबके बीच सुरक्षित हो।-11

 

आचार्य द्रोण के प्रति वाणी यह भीष्म पितामह ने सुनकर,

उत्साह बढ़े दुर्योधन का, ऐसा अपने मन में गुनकर।

कर दिया शंख का तुमुल नाद, अनुरूप स्वयं के गौरव के

मानो शंख ध्वनि कर रण में, वे सिंहोचित गर्जन करते।-12  क्रमशः …