मासूमों की मौत ने झकझोरा सिस्टम को — सरकार का सख्त रुख, पर सवाल अभी बाकी हैं ….
छिंदवाड़ा जिले से आई वह खबर जिसने पूरे देश को विचलित कर दिया — अब तक 10 मासूम बच्चों की मौत, कई गंभीर हालत में अस्पतालों में भर्ती। इन मासूमों ने न तो राजनीति जानी, न ही नीतियां — पर उनकी मौत ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था और औषधि नियंत्रण प्रणाली की वास्तविक स्थिति उजागर कर दी।
मृत बच्चों के परिवार अब भी सदमे में हैं, जबकि जिला और राज्य प्रशासन ने जांच और कार्रवाई की गाड़ी तेज़ी से आगे बढ़ाई है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस घटना को “अत्यंत दुखद” बताते हुए कोल्ड्रिफ कफ सिरप की बिक्री पूरे प्रदेश में प्रतिबंधित कर दी है। साथ ही अमानक दवा की छापामारी, जप्ती, और दोषियों को किसी भी कीमत पर न छोड़ने की बात दो टूक कही है।
कड़ी कार्रवाई, पर गहरी चिंता भी ….
मुख्यमंत्री डॉ. यादव की ओर से घोषित यह सख्त कार्रवाई निश्चित रूप से त्वरित और आवश्यक है। सरकार ने मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने तथा उपचाररत बच्चों का पूरा इलाज राज्य सरकार द्वारा कराने की घोषणा की है।
जाँच में सामने आया है कि तमिलनाडु की सरकारी प्रयोगशाला ने कोल्ड्रिफ सिरप को “नॉट ऑफ़ स्टैण्डर्ड क्वालिटी (NSQ)” घोषित किया है। रिपोर्ट में पाया गया कि सिरप में 48.6 प्रतिशत डाइएथिलीन ग्लाइकॉल मौजूद था — यह वही जहरीला रसायन है जिसने कई अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी मासूमों की जान ली। यह रसायन मानव शरीर के लिए अत्यंत विषैला और घातक होता है, विशेष रूप से बच्चों के लिए।
राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट के बाद पूरे प्रदेश में उक्त दवा की बिक्री, वितरण और आवाजाही पर तत्काल रोक लगा दी है। औषधि नियंत्रक डॉ. दिनेश कुमार मौर्य ने औषधि निरीक्षकों को निर्देश दिया है कि सभी नमूनों को जब्त कर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा जाए, और दोषी दवा कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
प्रशासन की धीमी प्रतिक्रिया पर सवाल कायम …
फिर भी सवाल यह है कि इतने दिनों तक यह सिरप बच्चों को कैसे मिलता रहा? क्या दवा वितरण तंत्र में कोई निगरानी नहीं थी? क्या स्थानीय स्तर पर प्रशासन की सुस्ती ने मासूमों की जानें लीं?
छिंदवाड़ा में जब पहले दो-तीन बच्चों की मौत हुई, तभी स्वास्थ्य विभाग को सक्रिय होना चाहिए था। लेकिन कार्रवाई तब हुई जब मौतें दो अंकों में पहुंचीं।
यह देरी, यह उदासीनता और यह निरीक्षण की कमी — वही पुरानी बीमारियां हैं, जिनकी कीमत अब नौ नहीं, दस मासूमों की जान बन चुकी है।
सिस्टम की परीक्षा अब शुरू हुई है..
सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं, लेकिन यह केवल शुरुआत है। असली जवाबदेही तभी तय होगी जब इस घातक लापरवाही की जड़ तक पहुंचा जाए —
कौन सी प्रयोगशाला से दवा पास हुई?
कौन अधिकारी वितरण की जिम्मेदारी संभाल रहा था?
स्थानीय स्तर पर निगरानी क्यों विफल रही?
इन सवालों के जवाब ही बताएंगे कि यह एक दुर्घटना थी या एक सिस्टम की विफलता।
जनविश्वास की बहाली जरूरी है….
मध्यप्रदेश सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। लेकिन जनता अब केवल कार्रवाई नहीं, परिणाम चाहती है।
जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती, जब तक ऐसे सिरप फिर से बाजार में न लौटें — तब तक यह अध्याय अधूरा रहेगा।
छिंदवाड़ा की घटना ने यह साफ कर दिया है कि दवाओं की गुणवत्ता और निगरानी कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं रह सकती — यह जीवन-मरण का सवाल है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सख्त रुख सही दिशा में कदम है, पर अब जरूरी है कि यह रुख स्थायी बने। क्योंकि जो दवा इलाज के लिए बनी थी, वही अगर ज़हर बन जाए — तो यह केवल त्रासदी नहीं, शासन की सबसे बड़ी असफलता कहलाएगी।