हो गई है जगत में दुआओं की कमी, इसलिए मां को खुदा ने अपने पास बुलाया है..

म. प्र. आंचलिक साहित्यकार परिषद की छिंदवाड़ा इकाई द्वारा आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी में अपनी राष्ट्रीयता से ओतप्रोत रचना को पढ़ते हुए वरिष्ठ कवि रत्नाकर रतन ने पढ़ा “लहर लहर लहराए तिरंगा, इसी में कौमी शान रे, गीतों की धरती पर जागा, सारा हिन्दुस्तान रे..परिषद के अध्यक्ष आकाशवाणी छिंदवाड़ा के पूर्व उद्घोषक तिवारी ने कहा कि मातृभाषा के निर्बल होते ही चिंतन दुर्बल हो जाता है। हमें मातृभाषा के प्रकाश को जन जन तक ले जाना चाहिए….

काव्य गोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. अमर सिंह ने कहा कि कोई एक भाषा दूसरी भाषा की दुश्मन नहीं होती है, बल्कि सखी सहचरी होती है। अगर अंग्रेजी ने अपने प्रभुत्व का आतंक मचा रखा है उसे हिंदी की समृद्धि की मिसाइल से रौंदा जा सकता है..

वरिष्ठ कवि के. के. मिश्रा ने झूठी शान पर प्रहार करते हुए कविता पढ़ी, “तुम जो नित नई ऊंचाइयां पा रहे हो, भला बताओ जमीं क्यों छोड़े जा रहे हो। कवि रमाकांत पांडे ने पढ़ा” राष्ट्र नाम होता नहीं ऊंचा, कायरों की भीड़ से”। कवि लक्ष्मण प्रसाद डहेरिया ने स्वार्थ पर करारा प्रहार करते हुए कहा “कल के लुटेरे आज सरदार हो गए, हम मुफलिसी में और लाचार हो गए।” कवयित्री श्रीमती सविता श्रीवास्तव ने बुंदेली बोली में कविता पढ़ी,”घर में चील्हा भुजिया जब खात थे, बेई दिन हमें बहुत सुहात थे।” कवि शिवेंद्र कातिल ने उम्मीद जगाते हुए कहा “खता की है तो हौसला भी होगा, एक दिन मेरे पक्ष में भी फैसला होगा।”

परिषद के सचिव रामलाल सराठे गणेश वंदना करते हुए कहा, “हे युगशिल्पी, भव निर्माता, गणपति, गजपति विनायक, अन्याय, पीर और शोषण मुक्त राष्ट्र कर दे। कवयित्री प्रीति जैन शक्रवार ने विवाद की जड़ पर प्रहार करते हुए कविता पढ़ी “अपने अंदाज में ये धरती के सीने पे पड़ी दरारें हैं, वे परिणाम हैं उस घर्षण का जब उस रजस्वला स्त्री के केश पकड़कर रौंदा गया था।”
युवा कवि प्रत्यूष जैन ने वेदना की बारिश भरी कविता यों पढ़ी “सृष्टि का कण कण हमारे साथ रोना चाहिए, वेदना के मेघ से बरसात होनी चाहिए।” “हो गई है जगत में दुआओं की कमी, इसलिए मां को खुदा ने अपने पास बुलाया है।”
कवि इंद्रजीत सिंह ठाकुर ने प्रकृति से जुड़ाव की कविता यों पढ़ी, “ओरी गौरैया नन्ही सी चिरैया, उड़ उड़ आना रे, अंगना में झींट दिए हैं चावल, चुग चुग जाना रे।”

पद्मा जैन पद्मिनी ने सबक सिखाती कविता पढ़ी “गलती पे गलती जो करे गलती, उसे शैतान कहते हैं, जो गलती कर सुधर जाए, उसे इंसान कहते हैं।” शब्दों को सहेजने की तमीज की कवयित्री श्रीमती अनुराधा तिवारी ने कहा ” छिंदवाड़ा हम सबका प्यारा, ये हमारा अभिमान है, सतपुड़ा की वादी में बसा प्रकृति का वरदान है।”

वरिष्ठ कवि नेमीचंद व्योम ने हिंदी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा “गति न टरें गजराज की, भौंके कितने श्वान, दिग्दिगंत जीतन चली, हिंदी जगत महान।” नंद किशोर दीक्षित ने कविता यों पढ़ी, “पाहुन बनके बादल आए, तन मन का संताप मिटाने, रोम रोम पुलकित बसुधा का , हरियाली की चादर डाले।” मंच संचालन करते हुए कवि राजेंद्र यादव ने कहा “जीवन गुजर जाए तानों पर, लानत है ऐसी संतानों पर।” “जीवन भर तो किया उपेक्षित, क्या कौओं को बांट रहे हैं।” कवि अंकुर बाल्मीकि ने कविता यों पढ़ी, “विकृतियों को आकृति देने का बीड़ा उठा रहे हैं सब।” युवा कवि चित्रेश श्रीवास्तव हिंदी की उपादेयता पर कविता पढ़कर सबको रोमांचित कर दिया।