महात्मा गांधी की हत्या पर दुनिया की प्रतिक्रिया..?

बापू आपकी हत्या को 75 साल हो चुके हैं लेकिन इतने सालों में हम आपकी उस भाषा को नहीं समझ पाए जिसे आप रोजमर्रा की आसान भाषा में बोलते हुए अचानक किसी दूसरी दुनिया के धरातल पर पहुँच जाते थे। आपकी भाषा सामान्य ज्ञान और तर्क के परे जाकर एक गहरी आस्था से जुड़ जाती थी। आपकी इस भाषा को समझ पाना शायद अब हमारे लिए संभव नहीं।
बापू, हमने आपको प्रत्यक्ष नहीं देखा लेकिन हमने जितना पढा है उससे यही लगता है कि आप एक असम्भव संभावना हो। हम इतना ही संकल्प लेते हैं कि हम आपकी पार्थिव विदाई के बावजूद आपको मरने नहीं देंगे। हम अपनी आस्था की स्याही से जो लिखते रहते हैं, वह स्याही कभी सूखेगी नहीं। यही हमारा संकल्प है..

30 जनवरी बहुत ही दुखद दिन है। यह सपनों के टूटने और आशाओं के बिखरने का दिन है। कन्नड़ के प्रसिद्ध कवि ने लिखा कि 30 जनवरी 1948 को भारत में जो हुआ, उसके बाद क्या हुआ यह तो मैं नहीं जानता पर एक बात निश्चित रूप से समझ गया था कि 31 जनवरी की सुबह सूरज नहीं उगेगा….
31 जनवरी की सुबह सूरज भी उगा और भारत, राष्ट्रपिता की अर्थी से निकलकर आगे भी चला । गांधी का मतलब भी यही है अंधकार से आगे निकलकर चलना। मौत में से निकलकर जिंदगी को खोजना। 30 जनवरी 1948 को जो हुआ हम सब भारतवासी उसे रोक नहीं सके। यह दिवस इस बात का संकल्प भी है कि आगे हम ऐसा न होने दें। प्रायश्चित का मतलब यही है कि उसके साथ एक संकल्प भी जुड़ा हुआ है वो सिर्फ पछतावा ही नहीं है।

31 जनवरी को जब बापू की अर्थी जा रही थी तो दिनकर ने लिखा कि यह लाश मनुष्य की नहीं , मनुष्यता के भाग्य विधाता की है। यह बापू की अर्थी नहीं यह भारतमाता की अर्थी है। मानवता की जो कब्र होगी वही गांधी की समाधि होगी।

लौटो, छूने दो एक बार फिर
अपना चरण अभयकारी,
रोने दो पकड़ वही छाती,
जिसमें हमने गोली मारी।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या पर क्या थी भारत और दुनिया की प्रतिक्रिया?

देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करने वाले महात्मा गाँधी की आज 73वीं पुण्यतिथि है| 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी। बापू के हत्या के बाद जहा देश भर में मातम का माहौल छा गया था, वही दुनिया भर में ग़ांधीजी की मौत से सनसनी फैल गई थी| दुनिया भर के दिग्गज हस्तियों ने गाँधी जी की हत्या पर अपनी प्रतिकिया व्यक्त की थी।

जानिए किसने क्या कहा ?

जवाहरलाल नेहरू ने लिखा :-‘’यह एक महाकाव्यात्मक जीवन का महाकाव्यात्मक अंत था। it was an epic end of an epic life. गांधी का जीवन घटनापूर्ण और नाटकीय था शायद ही उनकी जिंदगी का कोई ऐसा दौर रहा हो जिसे हम समतल कह सकें । फिर यह कैसे मुमकिन था कि गांधी की मौत एक साधारण मौत हो । बिस्तर में, बुढापे से, बीमारी से और जर्जर होकर एक बूढ़े आदमी की मौत, गांधी की मौत को भी नाटकीय ही होना था। एक नाटकीय जीवन का नाटकीय अंत ।’

आकाशवाणी से प्रसारित अपने संदेश में प. नेहरू ने कहा-

‘’The light has gone and there is darkness everywhere.I don’t know what to tell you and how to say that our beloved leader Bapu as we call him the ‘’ Father of Nation” is no more.’’

(हमारे बीच से रोशनी चली गयी है और सर्वत्र अंधेरा छा गया है | मैं कैसे और किन शब्दों में कहूँ कि हमारे पूज्य बापू जिन्हें हम राष्ट्रपिता भी कहते हैं अब हमारे बीच नहीं रहे ।)

तत्कालीन वायसराय लार्ड माउन्टबेटन ने गांधी जी की हत्या पर अपने शोक संदेश में लिखा :-” ब्रिटिश हुकुमत अपने काल पर्यन्त कलंक से बच गई , आपकी हत्या आपके देश, आपके राज्य और आपके लोगों ने की है। यदि इतिहास आपका निष्पक्ष मूल्यांकन कर सका तो वो आपको ईसा और बुद्ध की कोटि में रखेगा । कोई कौम इतनी कृतघ्न और खुदगर्ज कैसे हो सकती है जो अपने पिता तुल्य मार्गदर्शक की छाती छलनी कर दे । ये तो नृशंस बर्बर नरभक्षी कबीलों में भी नहीं होता है, और उस पर निर्लज्जता ये कि हमें इस कृत्य का अफसोस तक नहीं है ।”

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने कहा : – गांधी ने सिद्ध कर दिया कि केवल प्रचलित राजनैतिक चालबाजियों और धोखाधडि़यों के मक्कारी-भरे खेल के द्वारा ही नहीं, बल्कि जीवन के नैतिकतापूर्ण श्रेष्ठतर आचरण के प्रबल उदाहरण द्वारा भी मनुष्यों का एक बलशाली अनुगामी दल एकत्र किया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना झंडा चुका दिया :- न्यूयार्क के ’पीएम’ नामक समाचारपत्र में एल्बर्ट ड्यूत्श ने वक्तव्य दिया। ’’जिस संसार पर गांधी की मृत्यु की ऐसी श्रद्धापूर्ण प्रतिक्रिया हुई। उसके लिए अभी कुछ आशा बाकी है।’’

उपन्यास लेखिका पर्ल एस. बक ने गांधीजी की हत्या को ’ईसा की सूली’ के समान बतया

जापान में मित्रराष्ट्रों के सर्वोच्च सेनापति जनरल डगलस मैकआर्थर ने कहा-

’’सभ्यता के विकास में, यदि उसे जीवित रहना है। तो सब लोगों को गांधी का यह विश्वास अपनाना ही होगा कि विवादास्पद मुद्दों को हल करने में बल के सामूहिक प्रयोग की प्रक्रिया बुनियादी तौर पर न केवल गलत है बल्कि उसीके भीतर आत्मविनाश के बीज विद्यमान हैं।’’

सर स्टैफर्ड क्रिप्स ने लिखा :-  ’’मै किसी काल के और वास्तव में आधुनिक इतिहास के ऐसे किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं जानता, जिसने भौतिक वस्तुओं पर आत्मा की शक्ति को इतने जोरदार और विश्वासपूर्ण तरीके से सिद्ध किया हो।’’

गांधी की कहानी के लेखक लुई फिशर ने कहा :- गांधी जी के लिए शोक करने वाले लोगों को यही महसूस हुआ। उनकी मृत्यु की आकस्मिक कौंध ने अनंत अंधकार उत्पन्न कर दिया। उनके जमाने के किसी भी जीवित व्यक्ति ने, महाबली प्रतिपक्षियों के विरुद्ध लंबे और कठिन संघर्ष में सच्चाई, दया, आत्मत्याग, विनय, सेवा और अहिंसा का जीवन बिताने का इतना कठोर प्रयत्न नहीं किया और वह भी इतनी सफलता के साथ। वह अपने देश पर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध और अपने ही देशवासियों की बुराइयों के विरुद्ध तीव्र गति के साथ और लगातार लड़े परंतु लड़ाई के बीच भी उन्होंने अपने दामन को बेदाग रखा। वह बिना वैमनस्य या कपट या द्वेष के लड़े।

The Mahatma के लेखक अमरीकी पत्रकार और गांधी हत्याकांड के चश्मदीद बिसेन्ट सिएन ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि मुझे पूर्वभाष हो गया था कि गांधी की हत्या हो सकती है और मैं एक अजीब हताशा की ओर बढ़ती अवस्था में यह जानने के लिए कि सत्य क्या है, आघी दुनिया पार करके उनके पास बिड़ला हाउस आया था। मेरी उम्मीदों या सम्भावना के एकदम विपरीत मेरा जिस व्यक्ति से सामना हुआ, वह दैवीय करुणा की साक्षात अभिव्यक्ति थी। मैंने उस महात्मा रूपी वटवृक्ष को अपनी आंखों के सामने ढहते देखा। शायद वे मेरे पूर्वाभाष को सच सिद्ध करने के लिए मेरा ही इंतजार कर रहे थे।

31 जनवरी, 1948 को ‘हिंदुस्तान स्टैंडर्ड’ समाचार पत्र का मुख्य पृष्ठ कोरा पड़ा था और उस पर सिर्फ इतना लिखा था, ‘गांधी जी अपने ही लोगों द्वारा मार दिए गए, जिनकी मुक्ति के लिए जीए। विश्व इतिहास का यह दूसरा क्रूसीफिक्शन भी एक शुक्रवार को किया गया-ठीक वही दिन जब आज से एक हजार नौ सौ पंद्रह साल पहले ईसा मसीह को मारा गया था. परमपिता, हमें माफ कर दो।’

न्यूयार्क की 12 साल की एक लड़की ने रसोईघर में किया था मौन :- न्यूयार्क में 12 साल की एक लड़की कलेवे के लिए रसोईघर में गई हुई थी। रेडियो बोल रहा था और उसने गांधीजी पर गोली चलाए जाने का समाचार सुनाया। लड़की, नौकरानी और माली ने वहीं रसोईघर में सम्मिलित प्रार्थना की और आँसू बहाए। इसी तरह सब देशों में करोड़ों लोगों ने गांधीजी की मृत्यु पर ऐसा शोक मनाया, मानो उनकी व्यक्तिगत हानि हुई हो।

प्रिय बापू आपको दिल से सादर नमन ….