वह विकास बेमानी है जिसमें प्राणी जगत के अस्तित्व खतरे में पड़ जाय ..

पी. जी. कॉलेज छिंदवाड़ा में प्राणिशास्त्र विभाग द्वारा जैव विविधता संरक्षण में अध्ययन खोज और टिकाऊ विकास पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के मुख्य अतिथि प्रो. एस. ए. ब्राउन ने कहा कि जैव विविधता पर शोध करने की अपार संभावनाएं हैं। इंसानी कौम खुद भी जिंदा रहे और दूसरे प्राणियों को भी जीवित रहने का टिकाऊ पर्यावरण बनाए रखे। जैव विविधता संरक्षण भविष्य के प्राणियों के लिए बीमा पॉलिसी है..
प्रो. राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि जैव विविधता संपदा संरक्षण भविष्य की पीढ़ी के लिए संजीवनी है। प्राचार्य डॉ. पी. आर. चंदेलकर ने कहा कि आज का बुद्धिमान मनुष्य भविष्य की स्वस्थ जीव और वनस्पति हेतु प्रकृति का अनावश्यक दोहन न करे। प्रो. सी.जे. खुने ने कहा कि वह विकास बेमानी है जिसमें सिर्फ जैव जगत के बने रहने की निरंतरता पर विराम लग जाय।
प्रो. सुशांत पुणेकर ने सोशल मीडिया में टिकाऊ बायोडायवर्सिटी के लिए प्राणियों व वनस्पति को सही चित्र के साथ समन्वय स्थापित करके फॉरवर्ड करने पर जोर दिया। नागपुर के बायोलॉजिस्ट डॉ. निरंकुश खुबालकर ने कहा कि जीनोम की जेनेटिक तकनीक पर हो रही खोज जीवों की लुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवित करने तक पहुंच रही है।
औरंगाबाद की डॉ. संगीता डोंगरे ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन भविष्य की पीढ़ी को विरासत में अफरातफरी के सिवा और कुछ नहीं देगा। सागर विश्वविद्यालय की प्रो. मलाबिका सिकदर ने जैव विविधता के संरक्षण के इतिहास पर प्रकाश डाला। शोधार्थी रघुवीर गुप्ता ने बायोजगत में आए बदलाव बताए। विभागाध्यक्ष प्रो. सी. डी. राव ने कहा कि जैव विविधता संरक्षण पर आए शोध पत्रों के निष्कर्ष समाज के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे।
संयोजक प्रो. प्रतिभा पहाड़े ने देश भर से आए रिसोर्स पर्सन , शोधार्थियों  और समस्त कॉलेज स्टाफ का आभार व्यक्त किया। मंच संचालन की महती भूमिका का निर्वहन प्रो. जी. बी. डहेरिया और प्रो. सुसन्नना लाल ने किया।