प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी

प्रदेश में विधानसभा चुनावों के नजदीक आते ही नेताओं में आरोप प्रत्यारोपों का दौर चरम पर है ! आज ग्वालियर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता  ने प्रेसवार्ता में कहा कि म.प्र. में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने बारह ज्योर्तिलिंगों में एक महाकाल कॉरिडोर को भी नहीं छोड़ा। एक ही आंधी में महाकाल कॉरिडोर के निर्माण की पोल खुल गई। अगर तूफान आ जाता तो क्या स्थिति होती….

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हमने महाकाल लोक निर्माण के समय ही इस बात का विरोध किया गया था कि मूर्तियां अष्टधातु की लगाई जाएं। लेकिन सभी धार्मिक भावनाओं को आहत करते हुए फाइबर की मूर्तियां लगाई गईं। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने कहा कि कई चरणों में प्रारंभ हुए महाकाल लोक कॉरिडोर के निर्माण में हुई अनियमितताओं की शिकायत तराना के विधायक महेश परमार ने लोकायुक्त को की थी। लेकिन वहां पर भी कोई कार्रवाई न कर लोकायुक्त डीजीपी को ही हटा दिया गया।

साल 2022 के दिसंबर में आहूत विधानसभा के सत्र में स्थगन के माध्यम से आरोप लगाया गया था कि 351 करोड़ के निर्माण लोक निर्माण विभाग और नगरीय प्रशासन विकास विभाग द्वारा कराए गए थे। उनमें बिना किसी जांच के ठेकेदारों को भुगतान कर दिया गया।

डॉ. सिंह ने कहा कि विचारणीय प्रश्न यह है कि महाकाल कॉरिडोर के निर्माण में गुजरात की फर्मों का ही वर्चस्व कैसे रहा? गुजरात की फर्में ही प्रदेश भर में ज्यादातर कार्य कर रही हैं। इनमें जलजीवन मिशन, सीवेज लाइन लोक निर्माण विभाग, नर्मदा घाटी विकास आदि विभागों में और उनसे बोलने तक की हिम्मत कोई नहीं कर पाता, फिर जांच करने की हिमाकत कौन करता?
डॉ. सिंह ने कहा कि इस पूरे मामले की न्यायिक जांच कराई जाए। साथ ही प्रदेश के अन्य विभागों में गुजरात की फर्मों द्वारा किए जा रहे कार्यों की गुणवत्ता की जांच कराई जाए। साथ ही तब तक उनके भुगतान रोक दिए जाएं।
डॉ. सिंह ने कहा कि सिंहस्थ से लेकर महाकाल तक हुए भ्रष्टाचार में प्रदेश की भाजपा सरकार आकंठ डूबी हुई है। उन्होंने कहा कि 22 दिसंबर, 2022 को विधानसभा प्रश्न क्र. (1090) के जवाब में नगरीय प्रशासन विभाग ने कहा कि 161 करोड़ 83 लाख का व्यय किया गया। बाद में यह राशि और बढ़ती गई। इस पूरे मामले में खास बात यह है कि एग्रीमेंट तक गुजराती भाषा में किए गए हैं। जबकि मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार मध्यप्रदेश में सारे कार्य हिंदी में होगें। उसके बावजूद हिंदी भाषा का मध्यप्रदेश में अपमान किया जा रहा है।