केन्द्रिय जल शक्ति मंत्री करेंगे Ceo गजेंद्र सिंह नागेश को सम्मानित ….

जलवायु परिवर्तन प्रबंधन पर समर्पित जल प्रहरी होंगे सम्मानित ….जलवायु परिवर्तन, पेयजल संकट प्रबंधन पर समर्पित जल प्रहरी समारोह में देश भर के 50 से अधिक जल संरक्षणकर्ता सम्मानित किए जाएंगे। समारेाह का आयोजन 29 मार्च, 2023 को नई दिल्ली में होगा। जिसमे वर्तमान जिला पंचायत Ceo सिंगरौली गजेंद्र सिंह नागेश को सम्मानित कोया जाएगा  ….
समारोह में दिल्ली, बिहार, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचाल प्रदेश, जम्मू, झारखंड, पंजाब, त्रिपुरा, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना के एक-एक जल प्रहरी जहां चयनित हुए हैं वहीं हरियाणा, कर्नाटक, उत्तराखंड से दो-दो जल प्रहरियों के नाम अंतिम सूची में शामिल किए गए हैं।
जल प्रहरी समारोह का आयोजन सरकारी टेल द्वारा जल शक्ति मंत्रालय के संयुक्त तात्वाधान में किया जा रहा है। सरकारी टेल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमेया साठे ने बताया कि उत्तर प्रदेश के 11, राजस्थान, मध्य प्रदेश के आठ व महाराष्ट्र के 10 जल प्रहरी पूरे देश व दुनिया में अपने जल संरक्षण क्रियाकलापों के लिए सम्मानित किए जाएंगे।
जस्टिस एसएस चौहान की अध्यक्षता में कई वरिष्ठ अधिकारियेां वाली 13 सदस्यीय ज्यूरी द्वारा इस वर्ष के लिए करीबन 455 आवेदनों में से यह नाम सम्मान समारोह के लिए निधाॢरत किए गए हैं। समारोह के संयोजक अनिल सिंह ने बताया कि कार्यक्रम में नेशनल वाटर मिशन, यूनोप्स, सीडब्ल्यूसी जहां सहभागी हैं वहीं मुख्य अतिथि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह, केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल व सांसद मनोज तिवारी, उन्मेश पाटिल आमंत्रित अतिथि हैं। जल प्रहरियों में कई स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, जिला अधिकारियों के अलावा गैर सरकारी संगठन व निजी संस्थान शामिल हैं। कार्यक्रम में नीदरलैंड, फिनलैंड, माल्टा, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान सहित कई देशों के राजदूत भी आमंत्रित हैं।

कार्य जिन्हें सराहा गया :- देवगढ़ बावड़ी समूह :जीर्णोद्वार कार्य
प्रस्तुत प्रविष्टि जल संरक्षण के ऐसे प्रयास की है, जिसमें शासकीय एजेन्सी के साथ सामाजिक आवेष्टन तथा जनसहयोग के द्वारा विरासतीय महत्त्व की जल संरचनाओं का पुनरुद्धार कार्य किया गया है।
छिंदवाड़ा जिले के  मोहखेड़ जनपद में सतपुडा पहाड़ियों के मध्य में बसा देवगढ़ नाम का इतिहास में उल्लेखित प्राचीन राज्य मुख्यालय है, यहां आर्कोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया का अधिसूचित स्मारक है। इसी देवगढ़ में किले के अलावा तराई के विस्तृत भू-भाग में सैकड़ों की संख्या में बावड़ियां और कुएं पाए जाते हैं।-“आठ सौ कुएं, नौ सौ बावड़ी और हजार मंदिर” यहां पर जनश्रुति है।
जल संरक्षण के कार्य के रूप में वर्ष 20_21 से 21_22 तक देवगढ़ की लगभग 400 साल पुरानी जल संरचनाओं जिसमें लगभग 46 बावडियॉं और 14 कुओं की खोज, उनका सर्वे, तथा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के मार्फत उनके जीर्णोद्धार कार्य है। जनश्रुति में उल्लिखित कुएं और बावडियां देव एवं कोसम इन दोनों नदियों के समानांतर तराई में फैली हुई है। शायद बावडियों की इतनी प्रचुरता विश्व में किसी भी स्थान में नहीं पाई गई है।
देवगढ़ में बावडियॉं का निर्माण शाहवंशीय शासकों मुख्‍यत: जाटवाशाह (1570-1620) एवं उनके बंशज, बख्‍त बुलंदशाह (1686-1709) के समय में हुआ था ।

कोविड 19 काल में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना) द्वारा प्राचीन जल स्‍त्रोतो का जीर्णोद्वार श्रेणी के अन्‍तर्गत बावडियों, कुओं एव तालाब का जीर्णोद्वार कार्य स्‍वीकृत किया गया। प्रारंभिक तौर पर 7 बावडियों का जीर्णोद्वार कार्य 23/04/2020 को स्‍वीकृत किया गया । ग्राम के ही महिलाओं और पुरुषों जो मनरेगा के जॉब कार्ड धारी थे, के मस्टर रोल जारी हुए तथा कार्य शुरू किया गया। भारी-भरकम पत्थरों को उठाना, हटाना पुनः स्थापित करने का कार्य हितग्राहियों ने पूरी तल्लीनता ,एकाग्रता और एकनिष्ठा से किया। कोविड 19 की प्रथम लहर में देवगढ़ में भी अनेकों लोग लौट कर आए , मनरेगा से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना एक महती आवश्यकता थी और इसी चुनौती को हमने एक अवसर के रूप में लिया।

प्रतिदिन 200 से 400 तक श्रमिक बंधुवर भिन्न-भिन्न बावडियों में अपने मस्टरोल के अनुरूप उपस्थित होते रहे और असाध्य और दुर्गम कार्य को अंजाम देते रहे ।अनेक बावडियॉं में नीचे कुंड के पास जोड़ों में जामुन की लकड़ियों के चौकोर जोड़ पाए गए। जामुन का हमारी परंपराओं में जल को शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है ।
उत्खनन की पूर्णता के बाद इनके जीर्णोद्धार और जुडाई का कार्य विरासतीय महत्त्व को देखते हुए सीमेंट के स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों जिसमें सुर्खी और बेल के साथ चूने का उपयोग किया गया। जुलाई-अगस्त 2020 में वर्षाकाल में इनमें से अनेक बावडियॉं बनकर तैयार हो गई।

पुरानी बावडियों के जीर्णोद्धार का यह कार्य मुख्य रूप से देवगढ़, कलकोट एवं विजयगढ़ के साथ शक्‍करझिरी, चौकीगढ़ राजेगांव जैसे सरहदी गांव जो देवगढ़ से 15 किलोमीटर की परिधि में होंगे मैं भी किया गया। इस कार्य से एक और तो जल मिट्टी एवं पहाड़ों का संरक्षण का कार्य हुआ दूसरी और स्थानीय लोगों को पेयजल एवं कृषि के उपयोग हेतु जल की उपलब्धता हो सकी। जल के प्रवाह के साथ स्थित बावडियों के जीर्णोद्धार से पर्वतीय क्षेत्र के भूमि की जल भरण क्षमता का व्यापक रूप से विस्तार हुआ देव एवं कोसम नदी का स्‍वमेव पुनर्जीवन हो गया। अधिकांश बावडियॉं निजी खेतों में थी, पंचायत स्तर पर जल समितियों का गठन किया गया तथा लोगों को इस बात के लिए तैयार किया गया कि जल के सामुदायिक उपयोग को सुनिश्चित करेंगे।

ग्राम के लगभग सभी 411 परिवारों को इन बावडियों के जल की उपलब्धता हो सकी है । पानी की उपलब्धता के साथ ही देवगढ़ में मनरेगा से 59 हितग्राहियों के नंदन फलोद्यान में लगे संतरे के पौधों से उनकी आमदनी 80 हजार से 2.25 लाख तक सालाना बढी।
बावडियों के जीर्णोद्धार कार्य सेभूमि की जल भरण क्षमता का विस्‍तार हुआ, साथ ही ग्राम में बागवानी एवं सब्‍जी की उपज का विस्‍तारहुआ।देबगढ़ एक विरासत ग्राम के रूप में उभरने के साथ किसानों की आय में वृध्दि परिलक्षित हुई है।