सेवा भाव की मिसाल हैं भिनेश परमार ..

मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। हर साल हजारों श्रद्धालु इस पवित्र नदी की परिक्रमा करते हैं। नर्मदा नदी मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा है, परंतु इसका अधिकतर भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। मध्यप्रदेश के तीर्थ स्थल अमरकंटक से इसका उद्गम होता है। नर्मदा नदी के तट पर कई प्राचीन तीर्थ, आश्रम और नगर हैं। हिन्दू पुराणों में इसे रेवा नदी कहते हैं। हिंदू धर्म में नर्मदा परिक्रमा का बड़ा महत्व है। कहते हैं जिसने जीवन में एक बार मां नर्मदा परिक्रमा कर ली, उसने सब कुछ कर लिया….

माँ नर्मदा की परिक्रमा लोगों का जीवन किस तरह बदल देती है यह हमें अलग-अलग परिक्रमावासियों से मिलकर ही पता चल सकता है। मण्डला जिले एवं शहर से प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में नर्मदा परिक्रमावासी माँ नर्मदा के तटों से गुजरते हैं इनमें से कुछ के अंदर सेवा का भाव बहुत प्रबल होता है ऐसे ही एक माँ नर्मदा परिक्रमावासी संत हैं जिनका नाम भिनेश परमार है ..

ये महाराष्ट्र के तीर्थ स्थल पंढरपुर में पुरे परिवार के साथ निवास करते हैं। इन्होंने माँ नर्मदा की पैदल परिक्रमा ओमकारेश्वर से शुरू की थी और जब यह जबलपुर के समीप पहुंचे तब इनके साथियों ने इन्हें शॉटकट मार्ग अपनाने की सलाह दी लेकिन इनके मन में यह विचार पहले से था कि मण्डला जिले से लगे तटों का दृश्य इन्हें देखना ही है इसी कारण इन्होंने अकेले ही ग्वारी घाट से मण्डला की ओर आना सुनिश्चित किया जबकि इनके साथी सीधे डिण्डौरी की ओर बढ़ गये।

रास्ते भर लोगों से इन्हें बहुत प्रेम और सहयोग प्राप्त हुआ और जब ये मण्डला पहुंचे तब इन्हें महसूस हुआ कि माँ नर्मदा की परिक्रमा का असली आनंद मण्डला के नर्मदा तटों एवं आश्रमों में ही सबसे ज्यादा है और इन्होंने कहा कि लोग लगभग 3500 किलोमीटर की पैदल परिक्रमा करते हैं और 50-60 किलोमीटर बचाने के चक्कर में शॉटकट अपनाते हुये मण्डला को छोड़कर सीधे डिण्डौरी की ओर बढ़ चलते हैं वे माँ नर्मदा सबसे सुदर दृश्य एवं सुखद अनुभवों से वंचित हो जाते हैं ।

भिनेश परमार ने बताया कि परिक्रमा के पश्चात ये आश्रमों में जाकर पहले सेवा करना सीखेंगे तत्पश्चात माँ नर्मदा परिक्रमावासियों की जितनी हो सके सेवा करेंगे। आगे चर्चा में परिक्रमावासी श्री परमार ने बताया कि एमपी की जीवनदायिनी मां नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण सभ्यता और संस्कृति को संजोए हुए है। इस दिव्य और रहस्यमयी नदी की महिमा वेदों तक में मिलती है।

कई युगों से करोड़ों लोगों की प्यास बुझाने वाली इस पवित्र नदी को पूजते आ रहे हैं। नर्मदा नदी के तट पर अनेक तीर्थ स्थल हैं,जहां सदा से साधकों ने तपस्या और भक्ति के परम तत्व का अनुभव किया है। उन्होंने बताया कि नर्मदा नदी की परिक्रमा अध्यात्म से ओत-प्रोत करने वाली है और नर्मदा का तेज बहता पानी उन्हें आनंदित करता है। नर्मदा के किनारे का प्राकृतिक नजारा, पेड़-पौधे और सुरम्य वातावरण ने उन्हें काफी सुख शांति देती है।

हनुमानघाट आश्रम में करवाया कन्याभोज :- परिक्रमा के दौरान ये मण्डला के समीप हनुमान घाट स्थित स्वामी सीताराम आश्रम पहुंचे। जहां बालाघाट एवं छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ से परिवार के सदस्य इनसे मिलने आये हुये थे। इन सभी परिवारजनों ने मिलकर स्वयं भोजन बनाकर कन्याभोज का आयोजन किया। उसी दौरान गुजरात से परिक्रमावासियों का दल भी आश्रम पहुंचा उन सभी को एवं आश्रम में ठहरे अन्य परिक्रमावासियों, संतों को प्रसादी वितरण की।