सरकार गिराने बचाने से जरूरी है लोगों को सुरक्षित रखना..?

सत्तालोलुपता से जन्मे  राजनीतिक घमासान के बीच विधानसभा की कार्यवाही जिस महामारी कोरोना के नाम पर 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी गई उससे निपटने के इंतजाम प्रदेश में दिखाई कितने दे रहे हैं ? आज के लोकतंत्र में चुने गए इन अधमो को इसकी कोई फ़िक्र नही है ? सब के सब लगे है सत्ता की लार चाटने में ? मजबूत विपक्ष होने और प्रदेश की जनता के सबसे बड़े हितैषियो ने कोरोना को सत्ता बचाने का हथियार निरोपित तो जरुर कर दिया है परन्तु प्रदेश की जनता को कोरोना से बचाने के लिए इनके शब्दों को जैसे इस महामारी ने ही कालकलवित कर दिया हो ? ये सब सत्ता की लार चाटने में इतने मशगूल हो गए है की इन्हे प्रदेश की जनता की कोई परवाह नही ? वहीं दूसरी और प्रदेश सरकार मानो धर्मयुद्ध में अपने कर्मो से फंसी अभिमन्यु को बेवस वीरगति को प्राप्त होते देखने के अलाव कुछ नही कर सकने की स्थति में है ….? 

मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सरकार बचाने में दिन-रात लगे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सार्क देशों के राष्ट्र प्रमुखों से बात कर रहे हैं, राज्यों के मुख्यमंत्रियो से बात कर रहे हैं, भाजपा संसदीय दल की बैठक हो रही है।

दूसरी तरफ कमलनाथ सरकार और कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं करती दिख रही। मध्यप्रदेश की करीब साढ़े नौ करोड़ जनता कोरोना संकट से आशंकित है। मप्र देश के हर राज्य के संपर्क में है। मप्र देश के बीचों-बीच है, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से सटा है और केरल, तमिलनाडु से लेकर कश्मीर, बंगाल, बिहार, ओडिशा समेत देश के 90 फीसदी राज्यों को जाने वाली ट्रेनें यहाँ से गुजरती हैं। ट्रक परिवहन भी मप्र से ही गुजरता है। प्रदेश सरकार ने मप्र की सीमा पर कोरोना प्रतिरोध के कोई प्रभावी इंतजाम दिखाई नहीं पड़ रहे हैं । केंद्र सरकार को मप्र के हालात को गंभीरता से लेना चाहिए। सरकार गिराने बचाने से ज्यादा जरूरी  लोगों को सुरक्षित रखना है।