सरकारी नौकरी में अब रूचि नही चिकित्सकों की ….

रकारी नौकरी में अब रूचि नही चिकित्सकों की .., संसाधनों की कमी , अत्यधिक दबाब राजनेताओं और नौकरशाहों का , स्वाभिमान को गवारा नही झूठ … MP मेडिकल काउंसिल के मुताबिक प्रदेश में भले ही 57 हजार डॉक्टर काम कर रहे हैं लेकिन असल में इनकी संख्या 18 हजार के करीब है। इस मुद्दें को लेकर कांग्रेस सरकार पर नाकामी का आरोप लगा रही है तो वहीं, चिकित्सा शिक्षा मंत्री कांग्रेस को ही 15 साल के कार्यकाल को लेकर घेर रहे है !सरकारी नौकरी से डॉक्टरों को जरा भी मोह नहीं रह गया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 में 704, 2020 में 1102 और 2021 में 1188 डॉक्टर प्रैक्टिस करने दूसरे प्रदेश चलते बने। यहां तक कि भोपाल के 3 बड़े सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टरों को टोटा है। हमीदिया अस्पताल में ही पिछले एक साल में 10 से ज्यादा डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं। जबकि जेपी अस्पताल के कई विभागों में एक्सपर्ट्स के पद खाली हैं। कमोबेश यही हालत एम्स के भी है ….

बीते 20 सालो से प्रदेश की भाजपा सरकार ने शासकीय महकमे में काम करने बाले नौकाशाहों का विश्वास खो दिया है ! अब लोगों शासकीय नौकरी नही करना चाहते है वह भी नौकरी करने बाले ! उनका मानना है की सरकार में काबिज पार्टी के लोग अत्याधिक दवाब बना कर वो सब कुछ करबाना चाहते है जो एक सच्चे ,ईमानदार के जमीर को ग्बारा नही करता है ! शासकीय तंतर में संसाधनों के बेजा कमी है ! सीमित संसाधनों के होते हुए भी हम लोग बेहतर काम करते आ रहे है परन्तु कोरोना काल में जो कुछ घटा उससे  परिस्थितिया बहुत बदल गई है !

प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में भले ही व्यवस्थाओँ को बढ़ाने की कवायद सरकार कर रही है, लेकिन यह भी सच है की अब भी अस्पताल डॉक्टर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं। सरकार इस कमी को दूर नहीं कर पा रही है, लेकिन इससे भी बढ़ी चिंता की बात ये है कि अब सरकारी अस्पतालों से डॉक्टर्स का भी मोह भंग होता जा रहा है।

प्रदेश में कोरोना काल के दौरान सरकार ने भले ही अस्पतालों में मशीनों से लेकर बिस्तर तक बढ़ाने का काम किया हो लेकिन अब भी डॉक्टर्स की कमी पूरी नहीं हो पाई है। समय-समय पर डॉक्टरों की नियुक्तियां निकालने के दावे होते हैं लेकिन हकीकत ये है कि डॉक्टर्स ने इसको लेकर जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। MP मेडिकल काउंसिल के मुताबिक प्रदेश में भले ही 57 हजार डॉक्टर काम कर रहे हैं लेकिन असल में इनकी संख्या 18 हजार के करीब है। इस मुद्दें को लेकर कांग्रेस सरकार पर नाकामी का आरोप लगा रही है तो वहीं, चिकित्सा शिक्षा मंत्री कांग्रेस को ही 15 साल के कार्यकाल को लेकर घेर रहे है

सरकार और विपक्ष भले ही एक-दूसरे को घेर रहे हों लेकिन हकीकत ये है कि सरकारी नौकरी से डॉक्टरों को जरा भी मोह नहीं रह गया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 में 704, 2020 में 1102 और 2021 में 1188 डॉक्टर प्रैक्टिस करने दूसरे प्रदेश चलते बने। यहां तक कि भोपाल के 3 बड़े सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टरों को टोटा है। हमीदिया अस्पताल में ही पिछले एक साल में 10 से ज्यादा डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं। जबकि जेपी अस्पताल के कई विभागों में एक्सपर्ट्स के पद खाली हैं। कमोबेश यही हालत एम्स के भी है, डॉक्टर्स एसोसिएशन कई बार सरकार को इन हालात से रूबरू करा चुके हैं लेकिन उन नीतियों पर अब तक गौर नहीं किया गया जो डॉक्टरों को पलायन की वजह मानी जा रही हैं।

जरूरत इस बात की है कि नीतियों में उस कमी को दूर किया जाए जो मध्यप्रदेश से डॉक्टरों को दूर कर रही हैं। क्योंकि अगर ऐसे ही डॉक्टर नौकरी छोड़ते रहे तो सरकारी अस्पताल कंपाउंडर और नर्स के भरोसे ही रह जाएंगे। स्वास्थ्य सेवाओं के तरफ सरकार की दिलचस्पी आखिर क्यों नही ? यह चिंतन का विषय होना चाहिए ! वरना हालात बाद से बदतर होने में समय नही लगेगा ….