लोलुपता में विपक्ष सत्ता हथियाना पर उतारू : डॉ अशोक मर्सकोले

आज कांग्रेस के सभी विधायक भोपाल आ पहुंचे , इस यात्रा के दौरान महाकौशल अंचल से जिला मंडला के विधानसभा क्षेत्र निवास के विधायक डॉ अशोक मर्सकोले के मन में जो चल रहा था उससे उनका मन व्याकुल ही नही बल्कि दुखी भी था ! आइये जानते है उन्ही की जुवानी ये व्यथा भरी कहानी…..

मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले की निवास विधानसभा के कांग्रेस के विधायक डॉ अशोक मर्सकोल आज रविवार को जयपुर से भोपाल पहुचे … अपने उदगार में कहा हैं कि विपक्षी राजनीति के सत्ता लोलुपता ने वर्तमान में मध्यप्रदेश के मतदाताओं से निर्वाचित कमलनाथ की सरकार को अपने अनेकानेक कुचक्रों को चलाते हुये आदर्शों नेतिक सिद्धान्तों को दासी बनाने में कही कोई कोर कसर शेषता नही छोडना अब शेष है। डॉ मर्सकोल के शब्द संसार मे जो कहा और जो देखा उस पर उनकी कलम यू व्यक्त कर रही हैं।

वर्तमान का राजनीतिक परिदृश्य जिसमें केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके पदाधिकारियों की सोच! जैसा कुछ वर्षों में महीनों में सत्ता के लिए संविधान और लोकतंत्र की बली चढ़ाते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था को राजनीतिक रास्ते से राजशाही रूप में सत्ता को हासिल करना जिसमें अपनी विचारधारा और वरिष्ठता के मान सम्मान को रोंदकर सत्ता सुख हासिल करना हो गया, कश्मीर बिहार गोवा मणिपुर कर्नाटक महाराष्ट्र और अब मध्यप्रदेश सिर्फ़ सत्ता सुख लालसा उसको चाहे कैसे भी हासिल करना पड़े बस सत्ता सुख सत्ता!! पर क्या सही है?? आप लोग माने या ना माने, यह लोकतन्त्र के लिए खतरा है! जिस दिन भारत से संविधान और लोकतन्त्र को मिटाया गया, उस दिन हम समेटना भी चाहेंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे, सब अपने अपने क्ष्रेष्ठता के अहम के तले लड़ते लड़ते मर मिटेंगे। और दिखेगा सिर्फ़ और सिर्फ़ असुक्षा और अशांति भरी राख का ढेर। और यह कभी भी संविधान के मूल्य “” हम भारत के लोग….. स्वतंत्रता…. न्याय… ..समता…. राष्ट्र की एकता और अखंता वाली बंधुता”” के विपरीत हमेशा कार्य व्यवस्था देश के मान सम्मान के लिए खतरा होगा।

जिस दिन लोकतांत्रिक मूल्यों को या उसका राजनीतिक सत्ता सुख के सांविधानिक व्यवस्था की बली चढ़ी!!!!उस दिन से देश की एकता! सुख और शांति! में अस्थिरता निश्चित है! और इस स्थिति में लोकतन्त्र के चारो स्तंभ भी अपने अपने जड़ों को तलासते रह जायेगे पर नहीं ढूंढ़ पाऐगे! अतः लोकतंत्र के लिए चारों स्तंभ का निष्पक्षता आवश्यक है।

आज की राजनीतिक परिस्थिति में सांविधानिक व्यवस्था के विरुद्ध एन केन प्रकारेन सत्ता हासिल करने का लक्ष्य भविष्य में वैसे ही साबित होगी जो कल को गलत संदेश को बढ़ावा देगी आगे बढ़कर उदाहरण “किसी को बंदूक हाथ लगने पर अपनी मर्जी से जैसा चाहे चलाए” ! इससे कैसे और किसका भला होगा ? सत्ता की लड़ाई की आग अगर शुरु होगी?? तो किसका घर! आंगन !जलेगा पता नहीं?? क्योंकि आग की लपट नाम जात धर्म रिस्ता देखकर नहीं चलती, आग जब अपना काम करती है तो सामने वाली चीजों को राख बना देती है,, !!

फिर इस आग में जले का इंसुरेंस कंपनसेशन भी नहीं होगी। यह आग तो बस जलती जायेगी चलती जायेगी, और आगे बढ़ते बढ़ते आग अंगार और राख की गरम लपट के अलावा कुछ भी नहीं होगा!!

सारे सपने आपने !हमने! जो संजोए! राख के खंडहरों के बीच में कहीं खो जायेंगे !!! फिर ना जात! ना धर्म! ना देश की एकता ना अखंडता बचेगी! ना वह लक्ष्य जो आप पाना चाहते हो और ना ही उसका घमंड कहीं कुछ भी नज़र नहीं आए! आज हम सुरक्षित है पर अगले पल क्या और किसकी वज़ह से कुछ हो जाएगा वह खयाल का मौका नहीं मिलेगा।

अतः मेरी नज़र में संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान ही असली देश का सम्मान है देश भक्ति है!!! यदि देश में शांति और सुकून ना हो तो देश भक्ति कैसे विकसित होगी किसके लिए होगी।

अतः मैं तो लोकतन्त्र और संविधान का सम्मान और उसका पालन ही असली देश भक्ति समझता हूं! राजनीतिक विचारधारा अलग हो सकती हैं पर लोकतान्त्रिक व्यवस्था से बाहर नहीं हो! इसी में सबकी भलाई है।

राजनीतिक सत्ता सुख की अनुभूति से ऊपर संविधान और लोकतंत्र का सम्मान और पालन करना और कराना ही चारों स्तंभ और उससे जुड़े लोगों को आवश्यक होना चाहिए, ब्रेकिंग न्यूज़ तो बनती रहती है पर कहीं ब्रेकिंग न्यूज भी हमारे मूल्यों की राख पर तो नहीं बन रहे हैं यह देखना होगा! न्यायपालिका कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया का लोकतंत्र व्यवस्था के पक्ष या विपक्ष में नैतिक दायित्व या समर्थन का निर्वहन प्रश्न चिह्न दर्शाता है।

अतः देश बचाना है तो लोकतंत्र के चारो स्तंभों को व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर संविधान और लोकतान्त्रिक मूल्यों का मान सम्मान और पालन के नैतिक पक्ष के साथ जनता के बीच सकारात्मक सोच और संदेश देना होगा और देश को संकट से निकालना होगा।

डॉ अशोक मर्सकोले विधायक निवास, जिला मंडला मध्यप्रदेश।