लोग पेड़ के पत्ते खाने से खुद को नहीं रोक पाते

ग्वालियर में एक 600 साल पुरानी इमली का पेड़ है। इसे दुनिया में लोग चमत्कारी पेड़ के नाम से भी जानते हैं। इसकी कहानी जानकार देश-विदेश से यहां आने वाले लोग इमली के पेड़ के पत्ते खाने से खुद को नहीं रोक पाते हैं। आइए आपको इसकी कहानी बताते हैं।

gwalior six hundred year old miraculous imli tree at tansen tomb, people came to chew leaves

600 साल पुराना यह इमली का पेड़, पत्तियों के किस्से देश-विदेश में मशहूर, चबाने आते दूर-दूर से लोग
सुर सम्राट तानसेन की नगरी में एक चमत्कारी पेड़ है। तानसेन संगीत समारोह का ग्वालियर में शुभारंभ हो गया है। इसके साथ ही इस पेड़ की चर्चा भी शुरू हो गई है। इमली का यह पेड़ 600 साल पुराना है। समय के साथ-साथ इसके किस्से भी पूरी दुनिया में मशहूर है। पेड़ की सुरक्षा के लिए 10 फीट लंबी लोहे की दीवार है, इसकी वजह से पेड़ को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।

इमली की पत्तियां खाने से रोक नहीं पाते लोग

वहीं, इन इमली की पत्तियों की मान्यता के बारे में जो भी सुनता है, वह खुद को इन इमली की पत्तियां खाने से रोक नहीं पाता है। यह इमली की पत्तियां मामूली ना होकर बेहद खास उस वक्त हो जाती हैं, जब लोगों को पता चलता है कि इसी पेड़ के पास बैठकर संगीत सम्राट तानसेन ने रियाज किया था और यही उनको दफना भी दिया गया था।
इसकी पत्तियां खाने से आ जाती हैं आवाज

दरअसल, हजीरा इलाके में स्थित तानसेन की समाधि स्थल के नजदीक खड़ा यह इमली का पेड़ अपने आप में नायाब होने के साथ-साथ चमत्कारी भी बताया जाता है। इसे चमत्कारी इसलिए कहा जाता है कि इसकी पत्तियां खाने से ना केवल गूंगे बोलने लगते हैं बल्कि उनकी आवाज भी सुरीली हो जाती है। यह दावा हमारा नहीं बल्कि उन लोगों का है, जिन्होंने इस इमली के पेड़ की पत्तियों का स्वाद चखा है।

इमली के पत्ते खाने देश-विदेश से आते लोग

देश-विदेश के लोग इस इमली के पत्ते को खाने की चाहत में तानसेन की समाधि स्थल पर पहुंचते हैं और इमली के पत्ते को खाकर अपनी आवाज सुरीली कर लेते हैं। नवभारत टाइम्स.कॉम से बातचीत करते हुए जयपुर और झुंझुनूं से आए लोगों ने बताया कि उन्होंने इस इमली के पेड़ के बारे में काफी सुन रखा था और इमली के पेड़ की खासियत जानकर खुद को यहां आने से रोक नहीं पाए। यहां आकर उन्होंने इमली के पेड़ के पत्ते खाए हैं।
मियां तानसेन को आ गई थी आवाज

यहां के पुजारी सैयद जिया उल हसन का दावा है कि इमली के इस पेड़ के पास बैठकर संगीत सम्राट तानसेन ने रियाज किया था और संगीत सम्राट तानसेन को यहीं पर दफन भी किया गया था। इन पत्तों के खाने से लोगों की आवाज सुरीली हो जाती है।
संगीतकारों के लिए तीर्थस्थल है यह

बताया जाता है कि इस पेड़ को सन 1400 के आसपास लगाया गया था। संगीत के साधक दूर-दूर से ग्वालियर में इसके पत्ते खाने और आते हैं। इसके नीचे साधना करते हैं। कई कलाकार यहां से इमली के पत्ते मंगवाकर खाते हैं। छह सौ सालों से यह पेड़ संगीतकारों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। साभार :नाभटा