लफ्जों के जायके को चखकर परोसना चाहिए : प्रो. सिंह

तामिया कॉलेज में आयोजित हुई “कोरोना त्रासदी में संप्रेषण कौशल, समस्या समाधान और व्यक्तित्व विकास पर नौवीं राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

अपनी बात न कह पाने वाले आदिवासी छात्रों के लिए विशेष पहल “संप्रेषण की गुणवत्ता खुद को गढ़ने की प्रभावी युक्ति है”,”संप्रेषण कला जीवन को आकार देने का कौशल है.,”लफ्जों में जायका हेतु उन्हें चखकर परोसना चाहिए”,”संप्रेषण कौशल असाधारण सख्सियत निर्माण का सूत्र है “संवाद के पुल से समस्याओं की नदी को पार किया जा सकता है”: प्रो. सिंह

छिंदवाड़ा जिले के  शासकीय महाविद्यालय तामिया में अपनी बात सबके सामने न रख पाने वाले आदिवासी छात्रों में संप्रेषण कौशल क्षमता बढ़ाने हेतु की गई नवीन पहल के अंतर्गत “कोरोना त्रासदी में संप्रेषण कौशल, समस्या समाधान और व्यक्तित्व विकास” पर आयोजित एकदिवसीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए चांद कॉलेज के मोटीवेटर प्राध्यापक डॉ.अमर सिंह ने कहा कि संप्रेषण कौशल जीवन को आकार देने की कला होती है। लफ्जों में जायका हेतु उन्हें चखकर परोसना चाहिए। यह असाधारण सख्सियत निर्माण का सूत्र होती है। शब्दों की गुणवत्ता खुद को गढ़ने की सबसे प्रभावी युक्ति है। संवाद के पुल से समस्याओं की नदी को पार किया जा सकता है।जीवन में नब्बे प्रतिशत मुश्किलें संप्रेषण कौशल के दोष से पैदा होती हैं। प्रज्वलित संप्रेषण कौशल लफ्जों के माध्यम से लमहों को सहेजकर जीवन को आकार देता है। जब तक अंदर के विचारों की जमा बर्फ पिघलेगी नहीं, तब तक मुश्किल दौर से जूझने की अकूत शक्ति का निर्माण नहीं होता है।

संप्रेषण कला को यथोचित रूप से विकसित कर व्यक्ति समस्त अधोगतियों से निजात पा सकता है। संवादहीनता हमें अपना विस्तार जहां में करने में सबसे बड़ी रुकावट सिद्ध होती है। युक्तिपूर्ण बातों से ही बात बनती है। बिना संप्रेषण कौशल के व्यक्ति बिना टिकट लगे लिफाफे की तरह होता है जो कहीं नहीं पहुंचता है। प्रभावी बातचीत कला रिश्तों को मजबूती प्रदान करके हमें सफलता की ओर अग्रसर करती है। अगर हमारा बयां करने का अंदाज अनूठा है तो हम मानव व्यवहार से निर्मित नब्बे प्रतिशत दिक्कतों से बच जाते हैं। प्रो. महेंद्र गिरि ने कहा कि संप्रेषण कला से हमारा नजरिया बनता है जो विपरीत हालातों में हौसला बनाए रखने में मदद करता है। यह कला हमारे रिश्तों को मजबूती प्रदान करती है। बिना संप्रेषण कौशल के हम दूसरे के परिप्रेक्ष्य को नहीं समझ सकते। यह स्वयं को साबित करने का सबसे बेहतरीन हथियार होता है।

जीवन को गहराई में उतारने में यह कौशल काफी मददगार सिद्ध होता है। इसकी सिद्धि से प्रसिद्धि प्राप्त होती है। आयोजन सचिव प्रो. विजय सिंह सिरसाम ने कहा कि संप्रेषण कला दूसरों को अपने पक्ष में कर लेने में चमत्कारिक भूमिका निभाती है। हम जैसे विचारों के बीज अपने दिमाक में डालेंगे, वैसी ही फसल उगेगी। प्रो. मालती बनारसे ने कहा कि संप्रेषण कौशल से निर्मित वैकल्पिक सोच समाधान का हिस्सा बनती है। प्रो.दिनेश ठाकरिया ने कहा कि यह कौशल दुनिया को अपने वश में करने का वशीकरण मंत्र होती है। प्रो. जसवंत जयंत ने कहा कि इसकी जादुई शक्ति से विकट परिस्थितियों को काबू में किया जा सकता है। श्री नवीन यादव के कहा कि व्यक्ति की अंतर्निहित संभावनाओं को पंख लगाने में यह कला रामबाण औषधि का काम करती है। वेबिनार में भारत के बीस प्रांतों के प्राध्यापक प्रतिभागियों ने भाग लिया। अंत में छात्रों द्वारा संप्रेषण कौशल विकास हेतु पूछे गए प्रश्नों का समाधान वक्ताओं द्वारा किया गया। वेबिनार में कॉलेज के समस्त स्टाफ का सहयोग रहा।