युवाओ के साथ बदलाव की तैयारी में कांग्रेस ..

मध्यप्रदेश में पहली बार एक साथ 27 विस सीटों पर उपुचनाव होने हैं। फिलहाल प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा बने हुए पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया व सुरेश पचौरी, नौ बार के विधायक डॉ. गोविंद सिंह समेत अग्रिम पंगती के नेता 70 पार कर चुके हैं। प्रदेश में बीते कई दशकों से इन नेताओं का ही कांग्रेस की राजनीति में दबदबा बना रहा है। यह बात अलग है कि बीच-बीच में पार्टी ने कुछ मौकों पर युवाओं को आगे किया है , लेकिन उन्हें ज्यादा अवसर नहीं दिए गए , इससे उन्हें अपनी काबिलियत दिखाने का मौका नही मिल पाया । 

सयानी हो चुकी कांग्रेस भाजपा से निपटने की काट में अब नेतापुत्रो को सामने रख युवा जोश भरने की तैयारी शुरू कर दी है। प्रदेश में कांग्रेस के रणनीतिकार लगभग सभी नेता रिटायरमेंट की अवस्था पार कर चुके हैं।धीरे -धीरे इनका प्रभाव भी कम हो चूका है जो अब ये भी भारी मन से स्वीकार कर रहे है ? हाल ही में राजस्थान से सचिन पायलट के बागी तेवर से सहमी कांग्रेस और इससे ठीक पहले मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा का दमन थामना कांग्रेस के लिए सरकार जाने से ज्यादा बड़ा झटका था ! इस सदमे से अभी तक कांग्रेस उबर नही पाई है ? और भाजपा के कांग्रेस के विधायको को एक एक कर तोड़ रही है इसकी काट भी कमलनाथ खोज नही पा रहे है , दवी जुवान से कांग्रेस नेताओं का मानना है की कमलनाथ खुद के कानो से कुछ सुनते ही नही है ? नौकरों के कानो को उन्होंने अपनी बैसाखी बना रखी है ? और नौकर वही बात मालिक को बताते है जो उन्हे ठीक लगती है ? उनकी इसी कार्यप्रणाली ने १५ साल बाद सत्ता में  लौटी कांग्रेस का पतन १५ महीनों के कालखंड में तब्दील कर दिया ! इससे युवाओं में बड़ी निराशा के दौर से गुजरना पड रहा है उन्हें छोटे से छोटे कामो के लिए कमलनाथ के निजी नौकरों की मजबूरी में चाकरी करनी पड़ती है क्योंकि कमलनाथ और नाकुलनाथ दोनों पिता पुत्र से मिलना तभी संभव है जब नौकर चाहेंगे , अगर मुलाक़ात हो भी जाए तो भी दिनों पिता पुत्र कामो के लिए कार्यकर्ताओं को उन्ही नौकरों के हवाले कर देते है ! जिससे कार्यकर्ताओ में बड़ी नाराजगी है ? कमलनाथ के गृह जिले में भी बगावत की चिंगारी धधक रही है ? कई पार्टी नेताओ ने नौकरों की चाकरी से अच्छा पद त्याग दिया है ? बगावती की चिंगारी कभी भी दवानल में बदल सकती है ? कमलनाथ और नाकुलनाथ दोनों पिता पुत्र को वक्त रहते इसे सम्हालना होना नही तो भविष्य में नाथ परिवार को छिंदवाडा जैसी परम्परागत सीट से भी हाथ धोना पड सकता है !

नेता फिर से पार्टी को प्रदेश में जवान बनाने के लिए अपने पुत्रों को ही आगे करने के मंसूबे बनाए हुए हैं। इस बदलाव की सबसे बढ़ी वजह प्रदेश में तीन साल बाद होने वाले विधानसभा के आम चुनावों को माना जा रहा है। दरअसल पार्टी ने अभी से प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए मिशन 2023 पर काम करना शुरु कर दिया है।

प्रदेश में कांग्रेस द्वारा की जा रही युवा नेतृत्व को सवारने की कोशिश के बीच इतना तो तय है कि पार्टी को परिवारवाद के कलंक से मुक्ति नहीं मिल पायेगी ! अभी पार्टी में जो दिग्गज हैं, वे विरासत से राजनीति में आए हैं। यह बात अलग है कि पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन वे अब तक राजनीति में एक धीर – गंभीर छवि बनाने में असफल रहे हैं ,  मीडिया में गैर जिम्मेदाराना टिप्पणियों से विवादित हैं। इसी के ठीक उल्ट प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पूर्व मंत्री पुत्र जयवर्धन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सांसद पुत्र नकुलनाथ भी बराबरी से ताल ठोक रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुभाष यादव के पुत्र अरुण यादव को पार्टी में भी मौका मिल चुका है, लेकिन वे अब भी प्रदेशव्यापी प्रभाव नहीं बना पाए हैं। वंशवाद की इस कंदरा में अब कांतिलाल भूरिया के पुत्र भी हैं। यह बात अलग है कि वे अपना पहला ही चुनाव हार चुके हैं।और कमलनाथ बेटे को जिताने के चक्कर में २८ सीटें गवां चुके है ?

मप्र कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि कांग्रेस में पीढ़ी बदलने का रिवाज नहीं है, बल्कि हर पीढ़ी को साथ लेकर चलने की परंपरा है। दूसरे दल की तरह कांग्रेस में बड़ी उम्र के नाम पर नेताओं को किनारे नहीं किया जाता है, बल्कि उनके अनुभव और युवाओं की ऊर्जा से जनसेवा और विकास का लक्ष्य पूरा किया जाता है।