बच्चे कुपोषण से बेहाल, आंगनवाडियां बदहाल ..

बीते दिनों मध्यप्रदेश के चौथीबार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने 17 वर्षों बाद आंगनवाडी में पढने वाले बच्चों की सुध ली। उन बच्चों के लिए खिलौने एकत्रित करने ठेले पर निकले। विडम्बना देखिये आंगनवाडियों में पढ़ने वाले बच्चों को शिवराज जी के फोटों वाले बड़े-बड़े विज्ञापन और समाचार पत्रों की सुर्खियों के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। गंभीर कुपोषण का शिकार मध्यप्रदेश के बच्चों के लिए न तो पोषण आहार उपलब्ध है ना आंगनवाडियों में कोई संसाधन। मध्यप्रदेश के नौनिहालों के भविष्य को भाजपाई सत्ता ने अंधकार में ढकेल कर बस अपनी प्रसिद्धी का उजाला फैलाया। आंगनवाडियों की बदहाली….

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी को जवाब देना चाहिए कि उनके इतने लंबे कार्यकाल के बावजूद मध्यप्रदेश की आंगनवाडियां अपनी बदहाली पर आंसू क्यों बहा रही है। मध्यप्रदेश में कुल स्वीकृत आंगनवाडी 97135 है।
1. 32338 आंगनवाडियों में बच्चों के लिए शौचालय उपलब्ध नहीं है ।
2. बच्चों के लिए अनिवार्य चिकित्सा कीट 50979 आंगनवाडियों में उपलब्ध नहीं है।
3. शिक्षा कीट 24275 आंगनवाडियों में उपलब्ध नहीं है।
4. 8623 आंगनवाडियों में खाने के लिए थालियां तथा 12235 आंगन वाडियों मंें पीने के पानी के गिलास उपलब्ध नहीं है।
5. 18778 आज के समय में अनिवार्य हेंडवाश का कोई कीट नहीं है।
6. 58283 आंगनवाडियों में अनिवार्य रूप से रखे जाने वाला दवाई का कीट उपलब्ध नहीं है।
7. 12705 आंगनवाडियों में कोई भी शिक्षण सामग्री उपलब्ध नहीं है।
8. 17174 आंगनवाडियां के पास कोई पक्का भवन नहीं है।
9. इन आंगनवाडियों में दर्ज 3 से 6 वर्ष के दर्ज 3896977 पोषण आहार लाभार्थी है जिसमें से सिर्फ 3146106 लाभार्थियों को ही पोषण आहार का लाभ मिल रहा है अर्थात 750871 बच्चों को पोषण आहार दिया ही नहीं जा रहा है। मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की है कि वे अगले 18 माह में मध्यप्रदेश से कुपोषण दूर कर देंगे।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी चौहान की घोषणा एक दिन के लिए समाचारों की सुर्खिया तो बन सकती है, मगर कुपोषण की आगोश में समाते मध्यप्रदेश के लाखों बच्चों में व्याप्त गंभीर कुपोषण दूर नहीं कर सकती । सच्चाई यह है कि मध्यप्रदेश में नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (4) जो कि 2015-16 में किया गया था और नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (5) जो कि 2021 में किया गया, यह बताता है कि इस दौरान 6 से 59 महिने के बच्चे जो 68 प्रतिशत खून की कमी के शिकार थे वे बढ़कर 72.7 प्रतिशत हो गए ।

 

अति-गंभीर कुपोषण का शिकार बच्चे नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (4 और 5) के बीच धार में 5.7 प्रतिशत बढ़ गए, रीवा में 10.8 प्रतिशत बढ़ गए, खंडवा में 13.6 प्रतिशत बढ़ गए, देवासं में 38.2 प्रतिशत बढ़ गए, उज्जैन में 82.6 प्रतिशत बढ़ गए, बुरहानपुर में 95.5 प्रतिशत बढ़ गए, खरगोन में 108.8 प्रतिशत बढ़ गए, हरदा में 118.6 प्रतिशत बढ़ गए।
मध्यम गंभीर कुपोषित बच्चे इंदौर में 19.1 प्रतिशत बढ़ गए, बुरहानपुर में 38.8 प्रतिशत बढ़ गए, उज्जैन में 55.2 प्रतिशत बढ़ गए, खरगोन में 29.2 प्रतिशत बढ़ गए, हरदा में 11 प्रतिशत बढ़ गए। इसी प्रकार बच्चों में ठिगनापन 10 जिलों में बढ गया जिसमें सागर, छतरपुर पन्ना, झाबुआ, कटनी, उमरिया, सिंगरौली, शहडोल, सतना एवं बालाघाट है ।
कम वजन वाले बच्चे भी इस दौरान 5 जिलों में कटनी, बुरहानपुर, बालाघाट, उज्जैन एवं सागर में बढ़ गए है ।
मुख्यमंत्री के दावे की सत्यता

 

 

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (4) की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में अति गंभीर (कुपोषित) बच्चों का प्रतिशत 9.2 था जो नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (5) अर्थात 2021 में 6.5 है । इसी प्रकार गंभीर कुपोषित बच्चों का प्रतिशत 25.8 से इस दौरान 19 प्रतिशत हुआ है । इसका आशय है कि प्रतिवर्ष मात्र 1 प्रतिशत से कुछ अधिक का सुधार हो रहा है । इस अति धीमी प्रगती को देखते हुए शिवराज सिंह चौहान के दावे खोखले दिखाई देते है । इतना ही नहीं मध्यप्रदेश में अभी भी 30-35 लाख 5 वर्ष तक के बच्चे कुपोषण का शिकार है। जो कि देश के सभी प्रान्तों में ं सर्वाधिक की श्रेणी में है ।

 

अपर मुख्य सचिव ने खोली मुख्यमंत्री के दावों की पोल
अपर मुख्य सचिव मध्यप्रदेश महिला एवं बाल विकास ने अपने पत्र दिनांक 21/01/2022 में इस बात को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि अति गंभीर कुपोषित बच्चों का मूल्यांकन ठीक तरीके से नहीं किया जा रहा है । इनकी संख्या अपेक्षित संख्या की तुलना में बहुत कम है, जो व्यवहारिक रूप से सही प्रतीत नहीं होती है। इससे अति गंभीर कुपोषित बच्चों की सटीकता से पहचान नहीं होना परिलक्षित होता है । अपर मुख्य सचिव का यह पत्र मध्यप्रदेश में बढ़ते कुपोषण के आकड़ों को कम बताकर उसे खत्म करने के शडयंत्र को उजागर करती हैं ।
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94 करोड़ के खिलौने खरीदने के बावजूद क्यों निकालना पड़ा ठेला: भूपेन्द्र गुप्ता
मुख्यमंत्री की गोद ली आंगनवाड़ी में पोषण रहित खाना
35 फीसद बच्चे कुपोषित, टेक होम राशन नहीं
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मुख्यमंत्री जी ने ठेला निकालकर आठ ट्रक खिलौने आंगन वाड़ी के बच्चों के लिये कथित रूप से इकट्ठे किये हैं।बच्चों के प्रति उनकी चिंता जायज हो सकती है क्योंकि प्रदेश में 10लाख बच्चे कुपोषित हैं।ठिगने बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है।आंगन वाड़ियों को चलाने के लिये सरकार के पास भरपूर बजट तो है ही।कुपोषण दूर करने के लिये केन्द्रीय अनुदान भी मिलता है।फिर भी सरकार इन समस्यायों को 17 साल में हल नहीं कर पाई है।

 

कांग्रेस मीडिया उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता ने प्रेस वार्ता में मांग की कि सरकार बताये जो 94 करोड़ के खिलौने मार्च 2020 तक लघु उद्योग निगम के माध्यम से कमलनाथ जी की सरकार ने प्रदाय किये थे वे कहां गये, कि सरकार को 2 साल में ही ठेला निकालकर मांगीलाल बनने की आवश्यकता पड़ गयी।

गुप्ता ने कहा कि भाजपा सरकार में बड़े-बड़े घोटालों को दबाने के लिये ही भव्य ईवेंट किये जाते हैं ,योजना से अधिक प्रचार पर खर्च होता है ,कहीं यह ईवेंट भी किसी बड़े घोटाले को छुपाने की चेष्टा तो नहीं है?
गुप्ता ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि सरकार के पास लगभग 60 हजार आंगन बाड़ियों को गोद लेने के प्रस्ताव आ चुके हैं,जबकि कुल 97135 आंगनवाड़ियां ही हैं।इनमें से 30हजार में शौचालय नहीं है।10हजार में पीने का पानी नहीं है।लगभग 11 हजार आंगनवाड़ी कच्चे भवनों में लग रहीं हैं।सरकार भवन सुधार या इनफ्रास्ट्रक्चर जैसे स्थाई सुधार के लिये जनसहयोग मांग सकती थी मगर वह जो नियमित गतिविधियों के लिये यह ईवेंट कर रही है।यानि सरकार आंगनवाड़ी चलाने की स्थिति में नहीं है।

 

प्रदेश की सबसे वीआईपी आंगन वाड़ी क्रमांक 741वार्ड 32जो सुनहरी बाग में स्थित है।उसे मुख्यमंत्री जी ने स्वयं ही गोद लिया है।मुख्यमंत्री जी ने 19 मई को इस आंगनवाड़ी का दौरा किया था।18मई को ही इस आंगनवाड़ी में कूलर और पंखा लगा है क्योंकि सरकार 19मई को आ रही थी।इस आंगनवाड़ी में 35 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।किशोरियों को दिया जाने वाला टेक होम सूखा राशन नहीं मिल रहा है।
एक और वीआईपी इलाका चार इमली की आंगनवाड़ी ऋषि नगर में किराये से टीन चद्दर वाले कमरे में चल रही है।इसमें शौचालय नहीं है,पंखा सुधरने गया है और यह एक एनजीओ की गोद में है।ये प्रदेश की राजधानी की वास्तविकता है।

मध्यप्रदेश में 2016 से 2018 के बीच कुपोषण से 57 हजार बच्चों की मौत हुई है।ये काम स्वर्णिम मध्यप्रदेश की 17साल की सरकार का रिपोर्ट कार्ड है।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे बताता है कि प्रदेश में 35ःबच्चे अविकसित हैं जिनमें 19फीसद निर्बल हैं और 72 फीसद एनीमिक हैं। गुप्ता ने कहा कि कमलनाथ सरकार ने पारदर्शी तरीके से विभागों की कार्यशैली को नियमित किया था जबकि वही प्रशासन व्यवस्था 27महीनों में स्वेच्छाचारी होकर भ्रष्टाचार में लग गई है।

 

 

आंगनवाड़ी सेवा स्कीम में वर्ष 20-21 में 1220 करोड़ और 21-22में नवंबर 21तक 694 करोड़ अनुदान मिल चुका है। केंद्र सरकार हर पांच साल में प्रत्येक आंगनवाड़ी को 2लाख रुपये उन्नयन हेतु, 3 हजार मेंटनेंस हेतु, 19 हजार फर्नीचर हेतु, 3 हजार प्रति माह प्री एक्टिविटी (चाक, पैंसिल खिलौने आदि) हेतु देती है। ये पैसा कहां जाता है। यह पता लगाना मुखिया का काम है,मगर ठेले लगाये जा रहे हैं,सामानों की सूची जारी करके मंगवाई की जा रही है। यह सुशासन के नारे के मुंह पर तमाचा है। यह मध्यप्रदेश के शासन के डिलिवरी सिस्टम की कलंककथा है।