सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में बसा सुदूर आदिवासी अंचल पातालकोट ,इसे प्रकर्ति ने बड़े फुर्सत से सवांरा है ! ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में गगन चुम्भी वृक्ष , कल-कल करते झरने एकाएक हर किसी को अपनी और देखने के लिए मजबूर करते हैं ! इन्ही सुंदर और मनोहारी पर्वत श्रृंखलाओं की कोख में विकासखंड के छोटे छोटे मांजरे-टोले बसे हुए हैं ! जिनमें निवास करने वाले भोले-भाले आदिवासी बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ अपनी ही जिंदगी मस्ती के साथ जी रहे हैं, बाहरी वातावरण इनको प्रभावित नहीं करता ! यह प्रकृति पुत्र प्रकृति के अनेक विपदा और विभीषिकाओ से प्रकृति इन्हें मानो खुद ही बचा लेती है……….राजा खान की रिपोर्ट
मेहनती लोग, देसी खानपान और झरने का प्राकृतिक पानी बड़ी वजह….कोरोना की पहली लहर हो या दूसरी पातालकोट तक नही पहुंच पाई। जिले में जहाँ इस महामारी की जद में आने से लोग तिल- तिल कर मौत की आगोश में समा रहे थे परन्तु यहाँ का आलम एकदम अलमस्त प्रक्रति की सुरमयी तानो से संगीतमाय स्वरलहरियों की गूंज में बाहरी वातावरण से चीखे मानो विलुप्त सी हो गई हो ..!
ऐसा नही है की यहां से लोग बाहर नही आये,नीचे से लोग अपनी जरूरतों के लिए लगातार शहर गए फिर वापस आये भी मगर कोरोना इन्हें छू तक नही पाया। मुख्य पातालकोट में तीन गांव चिमटीपुर,रातेड़ और कारेआम आते है, यहां मूलतः भारिया जनजाति के लोग निवास करते है। पिछले डेढ़ साल में यहां सिर्फ सामान्य मौत ही हुई थी। पहली लहर में यहां 80 लोगों के सेम्पल लिए गए थे जिसमें एक भी संदिग्ध नही मिला सभी रिपोर्ट निगेटिव ही आई।वहीं दूसरी लहर में 48 सेम्पल लिए गए उसमे भी एक भी संदिग्ध नही मिला नतीजा सभी रिपोर्ट निगेटिव रही।……..
शुद्ध देसी खानपान :- यहां के लोगों का खानपान एकदम देसी है।जिसे शहरी लोग सिर्फ बीमारी पर लेते उसे यहां के भारिया परिवार प्रतिदिन यूज करते है। यहां के लोगों का मुख्य आहार मक्के की रोटी, पेजा(मही और मक्के का दलिया) बल्हर की दाल और जंगल मे पाई जाने वाली भाजी के साथ यहां के भारिया चावल की जगह कुटकी और समा का इस्तेमाल करते हैं।यही लोगो का प्रतिदिन का भोजन है। यहां के लोग लगभग महुए की देशी दारू का इस्तेमाल भी करते हैं।
पहाड़ी झरने का पीते है पानी :- यहां के लोग पेयजल की आपूर्ति बारहमासी गिरने वाले पहाड़ी झरनों से करते है। रातेड़ में पीएचई द्वारा झरनों से गांव तक पाइपलाइन बिछाकर गांव के नजदीक टंकी रखवा दी गई है। वहीं कारेआम में झरने के पानी को एक बड़े टांके में स्टोर किया जाता है जिसे ग्रामीण पानी भरते है। इस पानी मे अलग ही सोंधापन है , यह पानी काफी दूर से पहाड़ी पथरीली जगह से होकर आता है।
पवन श्रीवास्तव, पर्यावरण विद तामिया पातालकोट बताते है कि प्रकृति की गोद मे रहकर यह लोग मूलतः प्राकृतिक संसाधनों पर ही आश्रित है। यही वजह है कि आज तक यह लोग कई तरह की गम्भीर बीमारियों से बचे हुए है।
डॉ. चिरंजीवी पवार, मेडिकल ऑफिसर ने बताया कि पातालकोट में पिछले सत्र और अभी तक लगभग डेढ़ सौ सैम्पल लिए गए,जिसमे अभी तक किसी मे भी कोविड के लक्षण नही मिले है।