क्या नरोत्तम है बरकड़े ….?

पूर्व वनमंडल छिन्दवाड़ा के आशिक मिजाज रेंजर सुरेंद्र राजपूत का अपने अधिनस्त महिला कर्मचारी के साथ छेड़छाड़ और लैंगिक शोषण का मामला उजागर होने के बाद जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों के निकम्मेपन और महिला शोषण बाली सोच पूरी तरह उजागर हो गई है। इसी सोच के चलते कामपिपासू रेंजर को संरक्षण प्रदाय करने का दुष्परिणाम दिखाई पड़ने लगा है । समाज के अंदर और खासकर कामकाजी महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर पुरुष अधिकारियों द्वारा छेड़छड़ ,शोषण ओर लैंगिक अपराधों में सलंग्न कामपिपासुओ के हौसले इन दिनों बुलंद है ? और हो भी क्यो ना ? जब जिम्मेदार हाथों ने चूड़ियाँ मसलने व कुचलने का बीड़ा जो उठा रखा है ? इसी के चलते इन दिनों कामपिपासू नागों ने अपने बिलों से बाहर आकर डसना या तान्डव मचाना शुरू कर दिया है । इसी तारतम्य में बीते दिनों जल संसाधन विभाग के ड्रॉप्समेन दिलीप उइके की छेड़छड़ के चलते सरेआम महिलाओं द्वारा चप्पलों से पिटाई दूसरी घटना कलेक्टर परिसर में आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक संचालक सी के दुबे द्वारा होस्टल अधिक्षका के साथ छेड़छड़ की धटना ने जिले को शर्मशार कर दिया है ? इसके काले कारनामो की पूरी फेहरिस्त अजाक्स संगठन ने कलेक्टर ,एस पी के नाम ज्ञापन के माध्यम से सौप कर एंट्रो सिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने की मांग की है ! परंतु  जिम्मेदार विभागीय अधिकारी मौन की मुद्राओं में ध्यानस्थ समाधि को प्रस्थान कर गए लगते है ? तो क्या यह समझा जाए कि विभागीय वरिष्ठ अधिकारियों की शह पर इन कुकर्मो को अंजाम दिया जा रहा है ? ये कुकर्मी बेख़ौफ़ ओर बेशर्मी के साथ समाज मे छुट्टे धूम रहे है ? इससे यह सिद्ध हो जाता है कि इन्हें न तो कानून का कोई डर है और न समाज की चिंता ? चिंता है तो बस वासनात्मकग्नि को कैसे भी शांत किया जाय ?
रेंजर सुरेन्द्र राजपूत के मामले में Dfo अखिल बंसल का रुख साफ है कि वह इस वासना के पुजारी के पक्ष में हवन कुंड की आग में हाथ सेक रहे है ? परंतु सहायक संचालक सी के दुबे के मामले में भी क्या सहायक आयुक्त नरोत्तम सिंह बरकड़े (हंसमुख लाल ) की भी मौन स्वीकृति है ?
सूत्र बताते है कि रेंजर सुरेंद्र राजपूत ओर सहायक संचालक सी के दुबे एक ही थाली के चट्टे बट्टे है ! दिनों ही के नाम अनेको महिलाओं के साथ संबंधों से कोई इंकार नही कर सकता ? दोनों ही ने भ्रष्टाचार कर आकूत संपत्ति अर्जित कर रखी है ? दोनो ही के बड़े बड़े बच्चे है ? दोनों बड़े ढीट और बेशर्मी की दुशाला ओढे एक दूसरे की प्रतिमूर्ति नजर आते है ? मालिक ने गजब की एकरूपता तासीर और फितरत बक्शी है ? फिर भी मानसिक रूप से वासना के अभिभूत ये बेचारे कुकर्म करने को बाध्य है ?
सूत्र बताते है कि आदिम जाति कल्याण विभाग में भी इस तरह के नगीने काम नही है ? यहाँ तो दौलत,रुतबे और शोहरत पाने के लिए महिलाओं का बेजा इस्तेमाल होना पुरानी बात है ? यह सिलसिला सहायक आयुक्त श्रीमती जैन के समय मे कुछ कम हो गया था ? परंतु इससे पहले और फिलहाल(हंसमुख लाल) मसला चरम पर है ? जहां जिसे मौका मिलता है बाजी मारने में कोई पीछे नही रहता है ? हास्टल अधिक्ष्ल क्या मण्डल संयोजक और तो और सहायक आयुक्त पर भी महिलाओ के साथ छेड़छाड़ , र्लैंगिक शोषण के मामले हो चुके है और होने बाकि थे ..?

यहाँ किससे अपेक्षा करे कोई भी निष्कलंक चेहरा नजर फिलहाल तो नजर नही आता है ? मुखिया खुद दूसरी नाव का माझी है ? न्याय के तटबांध दूर दूर तक नजर नहीं आ रहे है ? यहाँ पर दाल में काला नही बल्कि पूरी दाल ही काली है ? यहाँ का दस्तूर ही निराला है ? तो क्या नरोत्तम अपने नाम के अर्थ को सार्थकता प्रदान कर पाएंगे ? मनुष्यो में सर्वश्रेष्ठ होने का गौरब हासिल कर पाएंगे ? विष्णुजी जी की तरह बहतरीन उच्चस्तरीय मानवीय मापदंडों की पुनर्स्थापना कर अपने नाम कुल ओर पूर्वजो के मान को बरकरार रखने की चुनौती बरकड़े के समक्ष मुहँ बायें खड़ी है ? या फिर किसी षडयंत्र की साजिश का शिकार है सी के दुबे ? सी के दुबे के कृत्य की हम भर्त्सना करते है ? परन्तु सवाल अनेक है बस हमे उनके उचित उत्तरों के लिए प्रतीक्षा ओर अन्वेषण करना होगा ?