ऑनलाइन .. भौतिक दुनिया से कट सकता है बच्चों का नाता..

कोरोना संक्रमण के डर से स्कूल कॉलेज बंद चल रहे हैं, ऐसे में सभी बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन माध्यमों से ही चल रही है। लेकिन एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि देश के लगभग 79 फीसदी बच्चे स्मार्टफोन से ही पढ़ाई कर रहे हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के लिए कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल केवल 17 फीसदी बच्चे ही कर रहे हैं।लगभग 60 फीसदी बच्चे एक घंटे से चार घंटे तक का समय ऑनलाइन पढ़ाई के लिए दे रहे हैं। ऑनलाइन पढ़ाई के लिए ज़ूम और व्हाट्सएप ही सबसे लोकप्रिय माध्यम बनकर उभरे हैं। वहीं, मनोचिकित्सकों की चेतावनी है कि ज्यादा देर ऑनलाइन रहने से बच्चों में व्यवहारगत समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

लगभग 400 शहरों के 10 हजार छात्रों पर हुए  विद्यार्थी की इस रिसर्च में यह तथ्य निकलकर सामने आया है कि लगभग एक तिहाई बच्चे अपने स्कूलों के बनाए गए ऑनलाइन सिस्टम पर पढ़ाई कर रहे हैं। सुरक्षा के लिहाज से इसे मौजूदा विकल्पों में सबसे बेहतर कहा जा रहा है। ऑनलाइन क्लास की खामियां भी सामने आने लगी हैं।

सर्वे के मुताबिक 31 फीसदी छात्रों को ऑनलाइन क्लास के दौरान ध्यान केंद्रित करने में समस्या आ रही है, तो 12 फीसदी छात्रों ने कहा है कि ऑनलाइन क्लास के दौरान आने वाली परेशानियों को वे अपने टीचर्स के साथ बेहतर ढंग से साझा नहीं कर पा रहे हैं और उनकी समस्याओं का हल नहीं निकल पा रहा है।

लगभग 60 फीसदी छात्र प्रतिदिन एक घंटे से चार घंटे तक की ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि लगभग 31 फीसदी बच्चे 4-8 घंटे तक का समय ऑनलाइन कक्षाओं को दे रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में उनके ऑनलाइन बने रहने का समय लगातार बढ़ गया है।
ज्यादा ऑनलाइन रहने से बड़ा नुकसान
इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के प्रेसीडेंट डॉ. मृगेश वैष्णव ने अमर उजाला को बताया कि ऑनलाइन एक नया सिस्टम है, इसे स्वीकार करके चलना होगा। लेकिन यह ध्यान रखना पड़ेगा कि ज्यादा देर ऑनलाइन रहने से बच्चों में मानसिक समस्याएं पैदा होने लगती हैं। प्रतिदिन तीन घंटे से ज्यादा ऑनलाइन रहने से उनका वास्तिवक जीवन से संपर्क प्रभावित होने लग सकता है।

वे वर्चुअल दुनिया में ही खोये-खोये से रहने लग सकते हैं। सामान्य जीवन में उनके आत्मविश्वास में कमी आने लगती है। वे हमेशा खालीपन जैसा महसूस करने लगेंगे और अपनी समस्याओं का हल अपने माता-पिता या दोस्तों की बजाय वर्चुअल दुनिया में ही खोजने लगेंगे।

सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली में मनोचिकित्सक डॉ. राजीव मेहता ने कहा कि ज्यादा देर ऑनलाइन रहने से शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है, ज्यादा देर बैठे रहने से पीठ दर्द की समस्या बढ़ सकती है और नींद भी कम आ सकती है। इनकी वजह से बच्चों में चिड़चिड़ाहट बढ़ सकती है। खेलने के समय में कमी आने से उनमें  सामाजिक व्यवहार विकसित नहीं होगा जिससे वे अपने में ही खोये रह सकते हैं।

इस परेशानी से बचाने के लिए छात्रों को तीन घंटे प्रतिदिन और हफ्ते में पांच दिन से ज्यादा ऑनलाइन क्लास नहीं रखी जानी चाहिए। बच्चों को हफ्ते में चार घंटे से अधिक का होमवर्क नहीं मिलना चाहिए। अगर बच्चा तीन-चार घंटे की ऑनलाइन क्लास ले रहा है, तो घर के अन्य सदस्यों को स्क्रीन टाइम (टीवी, कंप्यूटर) का घटा देना चाहिए।

पढ़ाई के समय भी ब्लू फिल्टर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इस दौरान मोबाइल या लैपटॉप को सही पोजीशन में रखना चाहिए जिससे शरीर को कम से कम तकलीफ हो। हर 40 मिनट की क्लास के बाद एक ब्रेक होना चाहिए।

स्कूलों में पढ़ाई अभी भी प्राथमिकता :- इंटरनेशनल यूनाइटेड एजुकेशनल फ्रटेर्निटी के चेयरमैन जयंत चौधरी ने कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं एक विकल्प के तौर पर चलाई जा रही हैं। लेकिन यह कभी भी सामान्य कक्षाओं से होने वाली पढ़ाई का विकल्प नहीं हो सकती। कक्षा में बच्चे सिर्फ सवालों को हल करना ही नहीं सीखते, कक्षाओं में बैठना, शिक्षकों के साथ सीधे किसी विषय पर तार्किक बहस करना और अपने सहपाठियों के व्यवहार से सीखने जैसी बातें ऑनलाइन कक्षाओं में कभी भी नहीं हो सकती।                                       साभार : अमर उजाला