ऐडा बन पेड़ा खा रहे हैं सहायक आयुक्त बरकडे….

अंधेरगर्दी नगरी चौपट राजा ! टका सेर भाजी , टका सेर खाजा !! ये कहावत जिले के आदिम जाति कल्याण विभाग  के मुखिया पर अक्षरश; सटीक बैठती है क्या बताये साहब का किरदार ही फ़िल्मी हीरो जैसा है और अभिनय भी ऐसा की बालीबुड के महानायक भी चकरा जाय ?  अपने अभिनय प्रदर्शन के दौरान कई महंगे- महंगे मोबाईल कलेक्ट्रेट के गलियारों में अपना अस्तित्व खो चुके है ! विवादस्पद कार्यप्रणाली शगल बन चूका है , चर्चाओं में रहने के लिए  साहब खुद कुछ न कुछ उछलकूद मचाते रहते है ? ताकि लोगो का ध्यान इनकी ओर रहे ताकि लोगों को लगे की जिले में मात्र यही अधिकारी काम कर रहा है बाली तो निक्क्म्मे है ? क्योंकि काम करने बाले से ही गलतियाँ होती है शायद इनकी यही सोच है तो हम क्या कर सकते है ?

आदिम जाति कल्याण विभाग में नित नए कारनामे सुनाई देते है। यहाँ सब कुछ सम्भब है ? जो अखबारों की सुर्खियां तो जरूर बनते है ! परंतु सड़ चुकी प्रशासनिक व्यवस्था से कार्यवाही की उम्मीद करना , भूतो से औलाद माँगने जैसा है ? फिर भी हम आशावादी है और यह उम्मीद लगाए हुए है कि कुम्भकर्णी नींद से जिले के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जागेंगे ही ! कभी तो इनका जमीर अपने किये पर धिक्कारेगा ? कहाबत है कि कुत्ता भी बैठने से पहले उस जगह को अपनी पूँछ से साफ कर लेता है जहाँ उसे बैठना है । फिर तो ये नीरे इंसान ठहरे अपने आसपास की गंदगी और गंदे लोगो को धिक्कार कर प्रशासनिक प्रदत्त अधिकारों से दंडित करने का काम करेंगे ! इसी उम्मीद में ….?
आदिम जाति कल्याण विभाग में हाल ही में एक संगीन मामले ने भूचाल आ गया मामला जिले के हर्रई विकासखंड के ग्राम बटकाखापा में आदिवासी कन्या आश्रम में बीते फरवरी 2020 में आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त नरोत्तम सिंह बरकड़े के हस्ताक्षर से निकले आदेश पर उक्त आदिवासी कन्या आश्रम में पूजा पिता दीपचंद सिंगोतिया की पदस्थापना कर दी गई ! जिसने बीते सितम्बर माह में विधिबत ज्वाइन भी कर लिया । परन्तु ज्वाइन करने के बाद शायद उक्त महिला का ज़मीर इस बात की इजाजत नही दे रहा होगा कि फर्जी आदेश पर बह निरन्तर नॉकरी करे ? उसने दोबारा पलट के आश्रम की ओर जाना उचित नही समझा ! ज्वाइन के बाद गायब हो जाने पर विकासखंड स्तर पर जिंदा अधिकारियों ने इसकी खैर खबर की तो मामला फर्जीबाड़े का निकला ।

सहायक आयुक्त कार्यालय में उसके नियुक्ति संबंधित कोई भी आदेश जारी नही होना पाया गया । इसके बाद भी सहायक आयुक्त ने इसे गंभीरता से नही लिया ? जो स्थिति को संदेहास्पद बना रहा है ? जबकि उक्त मामले पर आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त नरोत्तम सिंह बरकड़े को तत्काल पुलिया में प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए थी ? उन्होंने उक्त मामले को नजरअंदाज कर अपनी बला हर्रई विकासखंड शिक्षा अधिकारी के कंधों पर डालते हुए उक्त मामले पर Fir करने के आदेश जारी किए ? जो कि सरासर गलत है ? सहायक आयुक्त को स्वयं इसकी Fir करनी चाहिए थी क्योंकि उनके (नरोत्तम सिंह बरकड़े) फर्जी हस्ताक्षर से नियुक्ति आदेश जारी हुआ है न कि विकासखण्ड शिक्षाधिकारी के हस्ताक्षर से ? नरोत्तम सिंह बरकड़े की कार्य प्रणाली हमेशा से ही विवादस्पद रही है। अनेको विभागीय जाँच इनकी शान में चल रही है ? बावजूद इसके इनकी हरकतों में कोई सुधार नही हुआ ? खैर….?
बात यहीं तक रहती तो मामला सुलट भी जाता ? परन्तु विभाग के अंदरखाने से बात पत्रकारो तक पहुँचने से पूछताछ तेज हो गई और पुरानी कब्र से जिन्न बाहर आ गया जो सहायक आयुक्त के चारो ओर मंडराने लगा है और चीख चीख कर सबाल पर सबाल पूछ रहा है कि सहायक आयुक्त नरोत्तम सिंह बरकड़े इस मामले से आप क्यो भाग खड़े हो रहे हो ? और अपनी बलाए अधीनस्थ कर्मचारियों पर क्यो डाल रहे है ? वैसे भी सहायक आयुक्त दूध के धुले थोड़े ही न है ? इनके कारनामे कलेक्ट्रारेट के गलियारों में बड़े चाव से सुनाये व सुनाई देते रहते है ?